कर्मों का फल – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant


दीपू अपने माता-पिता का एकलौता पुत्र था। देखने में गोरा, लंबा और हृष्ट-पुष्ट था। उसने बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त किया था। परन्तु उसका स्वभाव गंदा था। उसकी पत्नी रितिका एम.ए. तक पढ़ी- लिखी थी। देखने में श्याम वर्ण की परन्तु उच्च विचार की धनी थी। धार्मिक कार्यों तथा एक दूसरे की सहायता करने में उसे अतिशय आनंद मिलता था। दीपू का स्वभाव उसकी पत्नी के स्वभाव से बिल्कुल अलग था। उसे शराब तथा अन्य नशीले पदार्थो की लत थी। उसकी पत्नी उसे हर हमेशा इस लत से
मना करती रहती थी परन्तु वह मानने को तैयार ही नहीं था। वह तो बात ही बात में लड़ाई करने के लिए तैयार हो जाता था। जिसके फलस्वरूप दीपू के माता-पिता भी उसके कुकृत्य से बहुत परेशान रहा करते थे। घर का माहौल धीरे-धीरे और कलुषित होते जा रहा था। घर के बच्चे भी बिगड़ते जा रहे थे। कुछ समय के उपरांत दीपू की तबीयत खराब होने लगी और उसका शरीर शिथिल पड़ने लगा। चलने- फिरने में उसे कठिनाई महसूस होने लगी। अंततः वह परिवार को छोड़कर चल बसे। यही तो कर्मों का फल है।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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