चित्र- ४
बूँदें पावस की
एक गाँव था, रूपसपुर। वह अपने नाम के अनुकूल हीं प्राकृतिक सौंदर्य वाला था। वहाँ के निवासी भी प्रकृति के सानिध्य में काफी प्रेम से अपना गुजर-बसर करते थें। बाग, बगीचे, तालाब, पोखर, हरे-भरे खेत एवं विविध पेड़ पौधे वहाँ की सुन्दरता में चार चाँद लगाते रहते थें। जिसकी मनोरम छटा में स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध, युवक-युवतियाँ सभी सानंद अपनी क्रिया-कलाप करते थें।
इस साल गर्मियों की बात है। भीषण गर्मी के कारण सारे जल-स्रोत सुख चुकें थें। पेड़-पौधें सभी झुलस रहे थें। सभी ग्रामवासी परेशान थें। इतनी भयंकर गर्मी उन लोगों ने पहले कभी नहीं देखा था। जून आधा महीना गुजर गया था। सभी बेसब्री से पावस का इंतजार कर रहे थें। तभी मानसून का प्रवेश होता है। पहले हीं दिन झमाझम खूब बारिश होती है।
पावस के आगमन और पहली फुहार से धरती गदगद हो गई। धूलकण तो मानो गहरी नींद में सो गयें। तरु, लगायें सब में तरुणाई सी नजर आने लगी। इतनी तेज बारिश हुई कि छोटे -छोटे गड्ढे भर आयें। सबने भीषण गर्मी से राहत पायी। सबके चेहरे खिल उठे। कुछ देर गहरी बारिश के बाद आसमान साफ हो गया। फिर क्या था, बच्चे कब मानने वाले थें।
राधा, रिया, विवेक, सरला, प्रमाण, नेहा, उत्कृष्ट और भी कई बच्चे बदले मौसम का आनंद लेने निकल पड़े। कुछ बच्चे पोखर के एकत्र जल में छपाक-छपाक, छईं-छपा-छईं करने लगे। वहीं सरला कागज का नाव बनाकर पानी में चलाने लगी। कोई डलिया लेकर आया और उसको नाव जैसा खेने लगा। कोई लकड़ी को लेकर वृक्ष लगाने की बात करने लगा। विवेक, मंटू और कुछ बच्चे पास के पेड़ के पास जमा थें। कोई टहनियों से खेलता, कोई छिप्पम-छिपाई खेलने में मस्त था। सब आनंद विभोर हो गए थें।
तभी राधा अपने घर से कागज, रंग और तूलिका लेकर आती है और वहीं पर चित्र बनाना शुरू कर देती है। मानो प्रकृति में आए इस बदलाव को वह कागज पर उकेर देना चाहती हो। तभी सभी की नजर बबली पर पड़ी जो साइकिल चलाती हुई आ रही थी। सारे बच्चे उसे देखकर चिल्लाने लगे। अपने घर के बाहर खड़े होकर उसके पिता जी भी उसे देख रहे थें। वहीं दूसरी ओर बैठा एक कुत्ता भी बबली को साइकिल चलाते हुए ऐसे देख रहा था, मानों कह रहा हो- जरा सम्हाल कर चलाना, अभी -अभी पानी छूटा है, फिसलन होगी।
वाकई पावस के आगमन का आनंद हीं अलग होता है। यही तो है धरा पर जिससे जल, जीवन और हरियाली है। तभी तो सबके चेहरे पर मुस्कान है और खुशहाली है। इस बार गर्मी ने तो त्राहि-त्राहि हीं मचा रखा था। ऐसे में पावस की पहली बूंँद सबके लिए संजीवनी से कम नहीं था। बच्चे इस मौके को कैसे छोड़ सकतें थें। सभी तब तक खेलते रहे जब-तक अँधेरा का आगमन नहीं हुआ।
सीख:-
१. हमें प्रकृति का आनंद लेना चाहिए।
2. कुछ यादों को सम्हालकर रखना चाहिए।
3. आपस में मिलजुल कर रहना चाहिए।
4. जल अनमोल है, इसका यथासंभव संचय करना चाहिए।
5. वृक्ष और वर्षा का हमारे जीवन में क्या स्थान है, उसे समझना चाहिए।
कहानीकार:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978