प्यारी लावण्या व अनुष्का,
इस धरा पर जब किसी भी मानव के नवोदित जीवन में जब ज्ञान के नूतन द्वार खुलते हैं, तब भाषा केवल संवाद का साधन नहीं, वह हमारे अस्तित्व की अन्तःसलिला है। हिन्दी हमारी मातृभूमि की वही सुगन्धित मिट्टी है, जिसमें पीढ़ियों की स्मृतियाँ, लोकगीतों की लय और संस्कारों की अमर गूँज समायी है। यह केवल अक्षरों का जाल नहीं, हृदय की अनकही तरंगों का अनादि-स्रोत है। अन्य भाषाएँ ज्ञान का विस्तार देंगी, पर आत्मा की जो ऊष्मा, जड़ों की जो नमी, अपनेपन का जो गाढ़ा रस हिन्दी में है, वह अन्यत्र नहीं।
जब आपदोनों के पाँव विज्ञान और आधुनिकता की दूरगामी पगडण्डियों पर अग्रसर हों, तब भी अपनी जड़ों की यह मृदुल छाया विस्मृत न करना। हिन्दी का हर शब्द हमारे लोक का राग, हमारी मिट्टी का सुवास, और हमारे विचारों की स्निग्ध गहराई समेटे है। यही भाषा आत्मगौरव की वह आभा देगी, जो कृत्रिम चमक से कहीं अधिक स्थायी और सुकूनभरी है। मेरी कामना है कि आपदोनों के स्वप्न नीले गगन को स्पर्श करे, पर हृदय सदैव इस भाषा की करुणा, उसकी सघनता और उसकी अलौकिक कोमलता से आलोकित रहे।