साहित्यिक लेखन प्रतियोगिता , संगीता कुमारी – Sangita Kumari

हमें हिंदी क्यों अच्छी लगती है


विश्व पटल पर सदियों से जो भाषा अप्रभंश से परिष्कृत होते-होते आज जिस सुंदर,सरल,सुगम्य एवं सफलतम् परचम फहरा रही है वो भाषा किसे नहीं अच्छी लगेगी!जिस भाषा के अक्षर वेदों के मंत्र, सूक्तियों के श्लोक हवन- धुम्र में बहकर ब्रह्मांड में घूमते हुए उपनिषदों में आत्मसात होकर अनहद-नाद में

गुँजरित होते हैं, उस भाषा से किसे परहेज होगा?


      जिस भाषा के शब्द

धरती माँ के उदर से निकल पावन अग्नि को आत्मसात कर शीतल जल में स्नान कर,वायु के आँचल में लिपट,शून्य

से एकाकार करती है, जो भाषा पंचभूत तत्वों से युक्त अपने आप में

सुघड़-सुंदर स्वरूप में

परिलक्षित होती है उस

भाषा पर किसका मन

सम्मोहित नहीं होगा?


अलंकृत अलंकारों से होकर छंदों की लय पर

थिरकती हुई गीत,गजल,

कथा-कहानियों में ठेका देती,उपन्यासो में स्थिर होती है।जो मानस के हंसा(तुलसी दास) से

रामायण में संस्कृति और संस्कार की आरती उतरवाती है तो,

गीता में कर्मयोगी का

आह्वान करा जमीं पर

महाभारत के कुरुक्षेत्र का अर्थ भी समझाती है, 

प्रलय से आनंद तक की

यात्रा (कामायनी)भी तो

हिंदी भाषा ही कराती है।


      इसकी नींव में अक्षरों की जड़े फैलती हैं और अन्य भाषाओं की

खाद डलती है,जिसमें 

रलमिलकर शब्दों के पात विविध विधाओं में

पल्लवित होते हैं और

वाक्यों में सांगोपांग बंध

कर सभ्यता, संस्कृति, संस्कारों, रीति-नीति,

नियम-कायदों के वटवृक्ष

बन जाते हैं।वह भाषा

कब किसी के हृदय को

आंदोलित नहीं करेगी?


     हिंदी भाषा तो बच्चों में बच्चा बन तुतलाती है,जवानों में इश्किया, जोश से भर इतराती है,

बढ़ती उम्र-सी आशिर्वाद

बन जाती है।खेलती है

धूप से,बारिश में भीगती है,लहराती बलखाती नदिया-सी बहती, पत्तों-

सी तालियां बजाती है।


    उच्चारण के हर अक्षर,विज्ञान के मापदण्डों पर खरी उतरती है,विश्व के महान देशों में भी मान-सम्मान

पाती है।संवाद और संप्रेषण की सरल,सहज

अग्रगणिय भाषा मेरी प्यारी हिंदी है,इसीलिए तो हमको लगती सबसे प्यारी हिंदी है।


          संगीता कुमारी ✍️🙏

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply