खेल के मैदान में सारे बच्चे व्यस्त थे। एक टोली कबड्डी खेल रहा था तो दूसरी टोली खों-खों। कुछ बच्चे यूँही आपस में एक दूसरे को भगा रहे थे।
बच्चों की खिलखिलाहट, हँसी, शोर से पूरा वातावरण ही गुंजयमान था। मगर एक कोने में एक बच्चा चुपचाप बैठा था, चेहरे पर छाई उदासी उसे भीड़ से अलग कर रही थी।
वह बच्चा बड़ी हसरत से खेलते हुए बच्चों को देख रहा था।
शिक्षिका ने जब कोने में उसे चुपचाप बैठे देखा तो बोली, “क्यों मोहन, यहाँ चुपचाप क्यों बैठे हो। दोस्तो के बीच क्यों नहीं बैठ रहे। देखो वहाँ बच्चे कबड्डी खेल रहे जाओ उनके पास मैदान में बैठ जाओ और देखो।”
मोहन चुपचाप अपना सिर इनकार में हिला दिया।
शिक्षिका ने पूछा, “कोई बात हुई क्या, किसी ने कुछ कहा? डरो नहीं, मुझे साफ साफ बताओ।”
तब मोहन ने रोते हुए कहा, “बच्चे मुझे लँगड़ा कहकर चिढ़ा रहे हैं।
तब शिक्षिका ने खेलते बच्चों के पास आकर सीटी बजाई। सारे बच्चे रुक गए और मन ही मन सोचने लगें ये मैम ने खेल क्यों रुकवा दिया। अभी तो तुरंत हमलोग खेलना शुरू ही किये थे।
शिक्षिका ने बच्चों से कहा, “सुनो बच्चों एक बात तुमसे पूछनी है, इसलिए ही मैंने खेल रोकने को कहा है।”
बच्चों ने कहा, “पूछिये मैम”।
तब शिक्षिका ने दो बच्चों को सामने बुलाकर कहा, ये लोग दिखने में स्वस्थ हैं, कही कोई परेशानी नहीं।
अगर कल को इनमें से किसी का एक्सीडेंट में पैर टूट गया और उसे चलने में दिक्कत होने लगेगी तो क्या तुम इससे बात नही करोगे? या लँगड़ा कहोगे?
बच्चों ने एक सुर में कहा, “नहीं मैम, हम ऐसा कैसे कर सकते हैं।”
फिर इस बच्चे के साथ ये व्यवहार क्यों? हाँ इसे खेलने में दिक्कत है तो अपने खेल का इसे रेफरी बनाओ। प्रेम से इससे बात करो। यह तुम्हारे बीच का ही है और तुम्हारे जैसा ही है। बस उसे पैर में थोड़ी तकलीफ है। और अपने इस व्यवहार से तुमलोग इसकी तकलीफ़ बढ़ा ही रहे हो। आगे से ऐसा नहीं करना है। सबके साथ मिलजुलकर रहना है और सबसे अच्छा व्यवहार रखना है किसी के रूप रंग आकार इत्यादि का मजाक नहीं बनाना है। तभी तुमलोग वास्तव में पढ़े-लिखे बच्चे कहलाओगे।”
रूचिका
प्रधान शिक्षिका
प्राथमिक विद्यालय कुरमौली गुठनी सिवान बिहार