दिसंबर के महीना! दिल्ली की ठंड। शीत लहरी! रात के 10 बज रहे थे। ऊना अपनी माँ और पापा के साथ मौसी के घर से अपने घर आ रही थी।… शिशिर ऋतु का मध्य! : डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्याRead more
Category: प्रसंग
मैं भी तो बेटी हूं : डॉ. स्नेहलता द्विवेदी आर्या
सलमा धीरे धीरे आकर मेरे बगल में झिझकते और शर्माती हुई ख़डी हो गई। पहले तो मैंने उसे तवज्जो नहीं दी लेकिन ज़ब वो किंकर्तव्यविमूढ़ होकर इधर उधर देखती हुई… मैं भी तो बेटी हूं : डॉ. स्नेहलता द्विवेदी आर्याRead more
सुनीता का त्याग : लवली कुमारी
खट-खट की आवाज सुन कर सुनीता ने कहा, “नैना देखो तो दरवाजा पर कोई आया है।” “मां, पार्सल वाले भैया हैं”, सुनीता आश्चर्य से बोली। “पार्सल वाले क्यों?” “पता नहीं… सुनीता का त्याग : लवली कुमारीRead more
हरित धरा- रुचिका
आज सुबह से ही हर जगह बड़ी धूमधाम थी। फावड़ा, कुदाल, बाल्टी मग और नर्सरी से लिये कुछ पौधों के साथ नेताजी और उनके समर्थक चल रहे थे।जहाँ भी खाली… हरित धरा- रुचिकाRead more