।। उगिहअ..में..उगिहअ..हो.. “दीनानाथ….”
” दीनानाथ..अरगअ.. के.. हो ..बेर …..”।।
फिजाओं में गूंजते इस तरह के मधुर गीत के बीच जब छठ घाट पर व्रतियों की लंबी कतारें , माथे पर सिंदूर के लम्बे टीके, हाथों में फलों से सजी सूप लेकर , व्रतियां माता- बहनें पानी में उतरती है, तो ऐसा लगता है मानो संपूर्ण सृष्टि रूककर उनकी आस्था में खुद को समाहित कर लेना चाहता हो । ऐसा प्रतीत होता है जैसे खूद सूर्य उनके सूप में बच्चा बनकर खेलने लगा हो । व्रतियों के इस वैभव रूप को देखकर मन खुद ही उनके प्रति श्रद्धा से भर जाता है । लाख परेशानीयों के बावजूद भी बरसो से हमारी परंपराओं को आगे बढ़ाने वाली मां-बहनों के साहस , धैर्य, परोपकार के सामने हमारा ह्रदय नतमस्तक हो जाता है ।
डूबते सूर्य के साथ-साथ उगते सूर्य को अर्घ्य देने की पौराणिक परंपराओं की जन्मस्थली बिहार, की मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबू छठ पर्व के माध्यम से आज देश-दुनिया के कोने-कोने में फैलती ही जा रही है । जो हमें हमारी गौरवशाली संस्कृति का एहसास कराती है ।
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की पौराणिक परंपरा जहां हमें इतिहास से सीख लेने की प्रेरणा देती है, वही उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा हमें वर्तमान और भविष्य को बेहतर बनाने का भी संदेश देती है ।
फलो से सजी छठ घाट हमें प्रकृति प्रेम का पाठ तो पढ़ाती ही है ,साथ ही लोक आस्था का ये महापर्व हमें एकता, अखंडता व भाईचारे का भी संदेश देती है ।
छठ घाट पर न कोई राजा होता है, न रंक ना ही फकीर ना ही अमीर-गरीब या ऊंच -नीच । इन तमाम खाइयों का यहां कोई स्थान नही होता है ।
बच्चों के कौतूहल , घाट पर उड़ाते पटाखे तथा उनकी चंचलता , घाट की तरफ टकटकी लगाये नासक बुजुर्गों की चमकती आंखें तथा महिला व्रती के स्वागत के लिए तैयार खड़ा पुरूषों को देखकर मन प्रसन्नचित्त हो जाता है ।
हे छठ व्रतियां मां -बहनें ! हमेशा की तरह इस बार भी जब आप छठ घाट पर उतरना तो हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत ,अमन चैन ,भाईचारे , एकता ,अखण्डता को मजबूत बनाने के साथ-साथ देश की तरक्की की भी दुआ करना ।।
लोक आस्था का महापर्व छठ की ढेरों शुभकामनाओं के साथ आपका भाई
अरविंद कुमार
भरगामा, अररिया