“कल 01 सिंतबर है, कल से हिंदी पखवाड़ा शुरू होगा। कल से रोज हिंदी के उत्थान के लिए एक विशेष कार्यक्रम आयोजित होंगे। अतः बच्चों आप सब पूरे जोश के साथ तैयारी करना और इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा संख्या में भाग लेना।” यह कहते हुए कॉन्वेंट विद्यालय के प्रधानाचार्य अपने बच्चों को सम्बोधित कर रहे थें।
यह सुनकर मासूम से एक बच्चे ने पूरी सभा में अपने हाथ खड़े कियें। सभी हतप्रभ थे, इस बच्चे को ऐसा क्या कहना है।
फिर भी बच्चे को माइक देकर पूछा गया, बताओ तुम्हें क्या कहना है?
बच्चे ने बड़ी मासूमियत से प्रश्न किया, “सर अगर हम हिंदी दिवस पर हिंदी में कुछ बोलेंगे तो दंड तो नही लगेगा न।”
सभी चुप हो गयें।
बच्चे ने फिर कहा, “दरअसल माँ बीमार हैं, घर में पैसे की कमी है अगर मुझे दंड लगा तो पिताजी कहाँ से लाकर पैसे देंगे।”
प्रधानाध्यापक की बोलती बंद थी।
हिंदी के दिवस विशेष पर प्रचार ने उनके हिंदी प्रेम को उजागर कर दिया था और कई मन में यह प्रश्न उठ खड़े हुए कि यह हिंदी का कैसा सम्मान है।
जो मात्र दिवस विशेष पर प्रदर्शित किया जाता है।
हिंदी हमारे ह्रदय की भाषा है, जो सरल सहज होते हुए सर्वग्राह्य है।
दिवस विशेष को इसके प्रति प्रेम प्रदर्शित करना बाकी दिन इसकी उपेक्षा करना इसके विकास के मार्ग को अवरुद्ध करता है।
इसलिए हिंदी को यथोचित सम्मान मिले इसके लिए प्रतिदिन एकजुट होकर प्रयास करना जरूरी है।
रूचिका
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कुरमौली, सिवान बिहार