गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह नेपाली
गोपाल सिंह “नेपाली” का जन्म 11अगस्त 1911को बिहार की सिद्धभूमि और गाँधी की कर्म भूमि पश्चिम चम्पारण के बेतिया शहर में हुआ था। जहाँ वह गीत गाता था वहीं उसकी वीणा भी बजती थी। जहाँ क्रान्ति का आह्वान करता था वहीं सिंह गर्जन सुनाई पड़ता था। उनके पिता का नाम रेल बहादुर सिंह माता का नाम वीणा रानी नेपाली था।
छायावाद के तृतीय उत्थानकाल में मानववादी-स्वच्छन्दतावादी कवियों में नेपाली का स्थान प्रमुख एवं अविस्मरणीय है। इन्होंने हिन्दी के युगप्रवर्तक काव्यकारों में सर्वश्री प्रसाद, पन्त, निराला, मैथिलीशरण, एक भारतीय आत्मा, नवीन और स्नेही के बाद जो पीढ़ी शुरू होती है उसमें अग्रगण्य स्थान पाया है। यह मन हरने वाली शैली के महान कवि थे और सर्वश्रेष्ठ गीतकार भी। प्रकृति के सहज अनगढ़ रूप के प्रति जो तन्मयता नेपाली जी के रचनाओं में है वह इस उत्थान के कवियों में ही नहीं, प्रथम एवं द्वितीय उत्थान के कवियों में भी है। इन्होंने किशोरावस्था 1917 से ही लिखना आरम्भ कर दिया था। इनका प्रथम काव्य संग्रह “उमंग” 1934 की जुलाई में पंक्षी 1934 में रागिनी 1935 में पंचमी 1942 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद कल्पना, आँचल, हिमालय ने पुकारा, नवीन, हम तरुवर की चिड़ियाँ रे, दो तुम्हारे नैन-दो हमारे नैन, नौ लाख सितारों ने लूटा, रोटियों का चन्द्रमा, तूफानों को आवाज दो का प्रकाशन हुआ। 101रुबाइयों का संग्रह “सावन” नाम से भी प्रकाशित हुआ है।
इन्होंने रतलाम टाइम्स, चित्रपट, सुधा एवं योगी पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। 1962 के चीनी आक्रमण के समय इन्होंने कई देशभक्ति पूर्ण गीत लिखे।
उनके गीत नौ लाख सितारों ने लूटा को देखिये-
बदनाम रहेबटमार मगर घर तो रखवारों ने लूटा,
मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा।
दो दिन के रैन बसेरे की हर चीज चुराई होती है,
दीपक तो अपना जलता है पर रात पराई होती है।
गलियों से नैन चुरा लाए तस्वीर किसी के मुखड़े की,
रह गए खुले भर रात नयन, दिल यों दिलदारों ने लूटा।
मेरी दुल्हन रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा।
शबनम सा बचपन उतरा था,
तारा का गुमसुम गलियों में,
थी प्रीति-रीति की समझ नहीं,
तो प्यार मिला था छलियों से,
बचपन का संग जब छूटा तो
नयनों से मिले सजल नयना,
नादान नए दो नयनों को नित नए नजारों ने लूटा।
मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा।
जुगनू से तारे बड़े लगे तारों से सुन्दर चाँद जंचा,
धरती पर देखा तो लाखों चल रहे, चाँद से नजर बचा,
उड़ चली हवा के साथ नजर, दर से दर खिड़की से खिड़की
प्यासे मन को रंग बदल बदल, रंगीन इशारों ने लूटा, मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा।
हर शाम गगन में चिपका दी तारों के अक्षर की पाती,
किसने लिखी किसको लिखी,
देखी तो पढ़ी नहीं जाती,
कहते हैं ये तो किस्मत है धरती रहने वालों की, पर मेरी किस्मत को तो इन ठंढे अंगारों ने लूटा।
मानस में जो भी लहर उठी
वह चली किनारा छूने को,
जीवन की चंचल लहरों ने, मुझसे मझधार छुड़ाई तो,
इस पार किनारों ने लूटा,
उस पार किनारों ने लूटा,
मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा।
काया के वन में हवा चली मुस्काई नयनों की कलियाँ,
फिर साँस देह से निकल चली तो, छोड़ गई सूनी गलियाँ,
जीवन की डोली लचक चली हर समय हवा के कंधों पर,
अवसर पाकर पुरवैया के सुकुमार सहारों ने लूटा।
मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा।
वीरानों को आराम रहे या फूल खिले गुलजारों में,
दुनिया की रचना ऐसी है हर माल बिका बाजारों में ,
मैं बाजारों में निकला तो कौड़ी के मोल बिका सर्वस,
तन मन लूटा व्यवहारों ने,
जीवन व्यापारों ने लूटा ।
मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा।
अब जाना कितना अंतर है नजरों के झूकने झुकने में,
हो जाती है कितनी दूरी थोड़ा सा रुकने में,
मुझ पर जो जग की नजर पड़ी वह ढाल बनी मेरे आगे,
मैंने जो नजर झुकाई तो फिर मुझे हजारों ने लूटा,
मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा।
जो दिया शाम को जलता है,
वह सुबह सुबह बुझ जाता है।
मैं हँसता हूँ फिर परवाना
किस लौ पर जलने आता है।
पनघट की हलचल सीसा है
तो पत्थर मरघट की चुप्पी
दुनियां ने लूटे मजे यहाँ,
संसार मजारों ने लूटा,
मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा।
पूनम की उड़ती चुनरी ने चहुँ ओर मचा दी चहल पहल
तिर गए दूध की गंगा में,
क्या राजमहल क्या ताजमहल,
बादल गरजा तो उठी गिरी,
हर कुटी-अटारी पर बिजली,
मिलगया जहाँ भी जो,
उसको पश्चिमी बयारों ने लूटा
मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा।
जग में जो भी जने मिले, उनमें रुपयों का नाता है।
जाती है किस्मत बैठ यहाँ
पतला कागज चल जाता है।
संगीत छिड़ा है सिक्कों का,
फिर मीठी नींद नसीब कहाँ,
नींद तो लूटी रुपयों ने,
सपना झकारों ने लूटा।
मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा।
आजादी हो कि गुलामी
दोनों की जंजीरें टूट गयी,
कमजोर लुटे बलियों से,
दोनों की तदबीरें लूट गई,
तदबीरों से जंजीरों से दीवारें भी कमजोर नहीं,
पण्डित-मुल्ले तका किए
मजहब दीवारों ने लूटा।
मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा ।
वन में उड़ने वाला पंछी,
घर लौट शाम को आता है।
जग में जाने वाला पंछी तो घर भी पहुँच न पाता है।
ससुराल चली जो डोली तो बाराती द्वारे ले आए,
नैहर को लौटी डोली तो, बेदर्द कहारों ने लूटा।
मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा ।
युवावस्था में नेपाली जी के गीतों की लोकप्रियता से प्रभावित होकर उन्हें आदर के साथ कवि सम्मेलन में बुलाया जाने लगा। उस दौरान एक कवि सम्मेलन में राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर उनके एक गीत को सुनकर गदगद हो गए। वह गीत था-
सुनहरी सुबह नेपाल की,
ढलती शाम बंगाल की,
करदे फीका रंग चुनरी का,
दोपहरी नैनीताल की,
क्या दरस परस की बात यहाँ,
जहाँ पत्थर में भगवान है,
यह मेरा हिन्दुस्तान है,
यह मेरा हिन्दुस्तान है।।
निर्माता निर्देशक के तौर पर नेपाली जी तीन फीचर फिल्म नजराना, सनसनी और खुशबू का निर्माण भी किए थे।
साहित्य और सिनेमा में इस योगदान के बाबजूद उनको जीते जी वह सम्मान नहीं मिल सका जिसके वे हकदार थे। उन्होंने लिखा भी-
अफसोस नहीं हमको जीवन में कुछ कर न सके।
झोलियाँ किसी की भर न सके।
सन्ताप किसी का हर न सके।
अपने प्रति सच्चा रहने का जीवनभर हमने यत्न किया।
देखा देखी हम जी न सके,
देखा देखी हम कर न सके।
एक कविता की बानगी देखिए
बहारें आएँगी, होठों पे फूल खिलेंगे।
सितारों को मालूम था, हम दोनों मिलेंगे।
सितारों को मालूम था छिटकेगी चाँदनी।
सजेगा साज प्यार का बजेगी पैंजनी।
बसोगे मन में तुम तो मन के तार बजेंगे।
सितारों को मालूम था हम दोनों मिलेंगे।
मिलाके नैन हम तुम दो से एक हो गए। अजी हम तुम पे पलके उठाते ही खो गए।
नैना झुकायेंगे, जिया निछावर करेंगे।
सितारों को मालूम था, हम दोनों मिलेंगे।
कली जैसा कच्चा मन कहीं तोड़ न देना।
बहारों के जाने पे कहीं छोड़ न देना।
बिछड़ने से पहले हम अपनी जान दे देंगे।
सितारों को मालूम था हम दोनों मिलेंगे।
गीतों के इस राजकुमार का 17 अप्रैल 1963 को अपने जीवन के अन्तिम कवि सम्मेलन से कविता पाठ करके लौटते समय बिहार के भागलपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म न० 2 पर अचानक निधन हो गया।
गीतों के इस राजकुमार को कोटिशः नमन।
हर्ष नारायण दास
म० विद्यालय घीवहा
फारबिसगंज अररिया