हमारा व्यक्तित्व : राम किशोर पाठक

बात आज से 27 वर्ष पूर्व की है। उस समय मोबाइल का नामोनिशान नहीं था। कम्प्यूटर की शुरुआत हो चुकी थी। मैं पटना के एक निजी उच्च विद्यालय में अंग्रेजी विषय का शिक्षण किया करता था। उस समय मेरे शिक्षण का तरीका शायद अधिक सख्त था। मैं गृहकार्य न करने, अनुपस्थित रहने, बाल या नाखून बढ़ाने अथवा अनेकानेक अनुशासनिक कार्यो के लिए दंड विधान तैयार कर दिया था। जिससे सभी शिक्षक और छात्र सुपरिचित थें। मैं अपना शिक्षण उसी विधान के साथ करता था। सभी बच्चों में मैं एक क्रूर अध्यापक के तौर पर जाना जाता था। जबकि कुछ शिक्षक बच्चों के काफी निकटस्थ थें। उनमें से एक शिक्षक विद्यालय संचालक सह निदेशक के अपने साले भी थें।
कुछ समय बाद समयाभाव के कारण मैं विद्यालय में त्याग पत्र दे दिया किन्तु वही पास के एक शिक्षण संस्थान में शाम को एक घंटा पढ़ाने जाया करता था। विद्यालय छोड़ने के २० दिन बाद ही पता चला कि अष्टम वर्ग का एक छात्र निदेशक महोदय के उसी साले को अपने वर्ग में ही अध्यापन करते समय पिटाई कर दी।
अगले दिन शाम के समय मैं नित्य की भाँति शिक्षण कार्य हेतु गया था। कक्षा संचालित होने में १५ मिनट शेष थें तो मैं बाहर सड़क पर ही टहल रहा था कि तभी वही लड़का आया और पैर छू लिया। मैंने आशीर्वाद कहा और वह ज्यों ही चलने लगा मुझे कल की सूचना याद आ गयी। मैं उससे पूछ बैठा, सुना है तुम आजकल रंगदार हो गया है, शिक्षक को भी पीट दिया। मैं नहीं समझता हूँ कि मुझसे ज्यादा आजतक किसी ने पिटाई की होगी, मुझपर हाथ भी तो उठाकर देखते। वह सिर झुकाए खड़ा था लेकिन उसने जो उत्तर दिया, उससे मैं निरुत्तर हो गया।
उसने कहा कि आप पढ़ाने के साथ जब पिटाई करते थें तो हम सबको अपनी गलती का एहसास होता था। आप में कोई खामियाँ दिखाई नहीं पड़ती थी। लेकिन वे कक्षा में आकर सिर्फ पुस्तक पढ़ देते हैं, मुझसे ही गुटखा मँगाते हैं और गुटखा खाकर वर्ग में आते हैं, हंँसी ठिठोली भी करते हैं फिर उनकी पिटाई कैसे बर्दाश्त कर लें। मैंने उसे समझाया और मन लगाकर पढ़ने की हिदायत देते हुए जाने को कहा। वह एक अबोध बालक की तरह मेरे सामने से सिर झुकाए चला गया और मैं सोचता रहा कि क्या एक शिक्षक का व्यक्तित्व बच्चों के लिए इतना मायने रखता है। फिर समय हो गया और मैं शिक्षण करने चला गया।

नैतिक शिक्षा – नैतिक शिक्षा का विकास पुस्तकों, अथवा शिक्षक के द्वारा बताए गए बातों से ज्यादा शिक्षक के व्यवहार, गुण और आदर्श को देखकर बच्चे सीखते और आत्मसात करते हैं। एक शिक्षक के रूप में हमें सदा बच्चों के लिए आदर्श होना चाहिए।

लेखक:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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