शादी के तुरंत बाद बिटिया की बिदाई हो रही थी और वह माँ के गले लिपट कर जार-जार रोती जाती थी। ऐसी हालत पिछले कई दिनों से थी उसकी।जब से… जिम्मेवारी- संजीव प्रियदर्शीRead more
पछूवा कंपकपावे भूखवा दौड़ावे- श्री विमल कुमार”विनोद”
गाँव-गंवई भाषा में लिखल लघुकथा।कैलू नामक एक साधारण व्यक्ति जो कि दैनिक मजदूरी करके अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करता है।इसकी शादी मुनकी नामक एक लड़की से हो जाती… पछूवा कंपकपावे भूखवा दौड़ावे- श्री विमल कुमार”विनोद”Read more
माँ का साया- श्री विमल कुमार “विनोद”
रबिया नामक एक साधारण परिवार की औरत जो कि बड़े अरमान के साथ अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म देने के लिये उत्साह से ओत-प्रोत होकर उसके सकुशल… माँ का साया- श्री विमल कुमार “विनोद”Read more
असली कमाई-संजीव प्रियदर्शी
चिलचिलाती धूप में ठेले पर ईख का रस बेचने वाले एक दिहाड़ी से मैंने पूछ लिया- ‘ दोपहर की इस भयानक गर्मी में पसीना बहाकर कितनी कमाई कर लेते हो?’‘कमाई… असली कमाई-संजीव प्रियदर्शीRead more
आदर्श-अमरनाथ त्रिवेदी
कहते हैं समय की मार एक न एक दिन सब पर अवश्य पड़ती है; चाहे कोई कितना भी बलशाली और विद्वान क्यों न हो, परन्तु अज्ञानी मनुष्य समय को रो-धोकर… आदर्श-अमरनाथ त्रिवेदीRead more
पागल कौन?” -श्री विमल कुमार”विनोद”
श्री विमल कुमार”विनोद”लिखितनरेश नामक एक छोटा सा बालक जो कि बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का था जिसका जन्म एक साधारण से परिवार में हुआ था।बचपन से ही लोग कहा… पागल कौन?” -श्री विमल कुमार”विनोद”Read more
“चलो विद्यालय चलें”-श्री विमल कुमार
ओपनिंग दृश्य गाँव का दृश्य-बहुत सारे बच्चे-बच्चियाँ खेल रहे हैं।कुछ बच्चे गाय-बकरी चराने जा रहे हैं।इसी समय कुछ बच्चे जिनके कपड़े फटे-पुराने हैं जो कि उसी रास्ते से होकर विद्यालय… “चलो विद्यालय चलें”-श्री विमल कुमारRead more
“आशियाना”-श्री विमल कुमार “विनोद”
मोनू नामक एक छोटा सा बालक जिसकी माता अपने पति के प्रताड़ना से त्रस्त होकर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लेती है।बात ऐसी है कि रबिया नामक एक लड़की… “आशियाना”-श्री विमल कुमार “विनोद”Read more
बेटी की मुस्कुराहट-श्री विमल कुमार “विनोद”
संक्षिप्त सार- शमशान में एक लावारिश लड़की के लाश को जलाया जा रहा है।उसी समय उस रास्ते से मोहन और सोहनदो मित्र गुजर रहे हैं।मोहन अपने मित्र सोहन को कहता… बेटी की मुस्कुराहट-श्री विमल कुमार “विनोद”Read more
तरकीब-संजीव प्रियदर्शी
उस रोज मुझे रात की ट्रेन से घर लौटना था। चूंकि मैंने जाते समय ही यह सोच कर वापसी का टिकट आरक्षित करवा लिया था कि डेढ़-दो सौ रुपए की… तरकीब-संजीव प्रियदर्शीRead more