नित नये प्रेरक आयाम, लेकर आये शिक्षक,
प्रकाशपुंज का आधार बन, जग में छाये शिक्षक
यह सर्वविदित है कि शिक्षक होना बड़े गर्व की बात है। एक शिक्षक द्वारा ही सभ्यता, संस्कृति, आचार-व्यवहार, संसार का उज्जवल भविष्य निर्मित होता है। हमारी घनघोर सफलता के पीछे हमारे गुरू का ही हाथ होता है। हमारे शिक्षक हमें ज्ञान देकर हमारे शैक्षणिक स्तर को तो बेहतर बनाते ही है , साथ ही हमें कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन, परोपकारिता, विश्वसनीयता आदि के पाठ पढ़ा कर हमारे नैतिक स्तर को भी ऊँचा उठाते हैं। जिस प्रकार कुम्हार गीली मिट्टी को कोई भी आकर दे सकता है ठीक उसी तरह शिक्षक भी हमारे भविष्य के निर्माता होते है। शास्त्रों में गुरू को ब्रह्मा, विष्णु और महेश की संज्ञा दी गई है।
गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु,
गुरु देवो महेश्वरा,
गुरू साक्षात् परब्रह्मा,
तस्मै श्री गुरूवे नमः !!
अपने जीवन में शिक्षकों की अहमियत को समझते हुए उनकी भूमिका उनके कार्यों को सम्मान देने के लिए हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर ही हम शिक्षक दिवस मनाते हैं। सर्वपल्ली राधाकृष्णन बहुत बड़े शिक्षाविद, दार्शनिक व शिक्षक थे। उन्हें पढ़ने पढ़ाने में बहुत रुचि थी। एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण उनमें मौजूद थे।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था और 1909 में चेन्नई के प्रेसिडेंसी काँलेज में दर्शनशास्त्र शिक्षक के रूप में उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत की। उन्होंने देश में मैसूर, कोलकाता, बनारस, चेन्नई जैसे कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों तथा विदेशों में लंदन के आक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र पढ़ाया तथा अपनी अमिट छाप छोड़ी।

डॉ. राधाकृष्णन अपने राष्ट्रप्रेम के लिए विख्यात थे। अहंकार तो उनमें किंचित मात्र भी नहीं था। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया व प्रेरित किया। सारे विश्व में उनके लेखनी की प्रशंसा की गई। सन् 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति नियुक्त हुए। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने इस महान दार्शनिक, लेखक व शिक्षाविद को देश का सर्वोच्च अलंकरण “भारत रत्न” से विभूषित किया। 13 मई 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने। 1967 तक वो इस पद पर आसीन रहकर देश की अमूल्य सेवा की। डॉ. राधाकृष्णन लंबे समय तक देश सेवा के उपरांत 17 अप्रैल 1975 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह अंतिम साँस ली।
जीवन में माता-पिता से बढ़ कर शिक्षक की अहम भूमिका होती है, क्योंकि माता पिता तो हमें सफलता की ओर अग्रसर करते हैं लेकिन एक शिक्षक सफलता की राह आसान करते हैं। एक शिक्षक अपने आप को तभी सफल और श्रेष्ठ समझते हैं जब उनके द्वारा पढ़ाए गए बच्चे बड़े होकर विश्व भर में नाम करे, अपनी सफलता का परचम लहराता हुआ अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ले।
हमारे भीतर अगर साहस है, विश्वास है तो वह हमारे गुरू ने हमें सिखाया है। हमें हर कठिनाइयों से जूझना, हर चुनौतियों का सामना करना, समय का पाबंद होना यह सब हमें हमारे गुरू ने ही सिखाया। शिक्षक ईश्वर का दिया हुआ वह तोहफा है जो हमेशा निःस्वार्थ भाव से बच्चों को अच्छे बुरे का बोध कराते हैं। वह हमें इस काबिल बनाते हैं कि पूरी दुनिया भले ही अंधकार में डूब जाए लेकिन हम प्रकाश की भांति जलते रहें और हम अपने प्रकाश से ही दुनिया को प्रकाशमान कर पाएं।
एक शिक्षक के द्वारा दी गई शिक्षा ही शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास का मूल आधार है। शिक्षक को ईश्वर तुल्य समझा जाता है। शिक्षक वह पथ प्रदर्शक व मार्गदर्शक होता है जो हमें न केवल किताबी ज्ञान ही देता है अपितु जीवन जीने का कला भी सिखाता है।
अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षक हमारे भविष्य के निर्माता हैं। हमें अपने गुरू का सर्वदा सम्मान करना चाहिए।
नूतन कुमारी (शिक्षिका)
प्राथमिक विद्यालय पोखड़िया, पूर्णियां