शिक्षक राष्ट्र निर्माता : आशीष अंबर

ashish ambar

शिक्षक ( गुरु) की महिमा पुरातन काल से ही राष्ट्रनिर्माता एवं पथप्रदर्शक के रूप में गाया गया है । यही कारण है कि गुरु की महिमा गोविंद से भी ज्यादा है । कबीर ने कहा है –
” गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय,
बलिहारी गुरु आपनै गोविन्द दियो बताय ।”

भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अंतर्गत शिक्षक को राष्ट्रनिर्माता के रूप में प्राचीनकाल से ही प्रतिष्ठा दी जाती रही है । जिस समाज में शिक्षक को जितना ही अधिक आदर प्राप्त होता है, वह समाज उतना ही प्रबुद्ध माना जाता है । प्राचीन काल में वशिष्ठ , विश्वामित्र, द्रोण, चाणक्य, संदिपणि आदि ने गुरु के रूप में अत्यधिक प्रतिष्ठा अर्जित की । आधुनिक भारत में गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डा. जाकिर हुसैन, प्रो. जे. के. मेहता आदि को भी यह सम्मान प्राप्त हुआ है । दुर्भाग्यवश पिछले दशकों में कतिपय कारणों से शिक्षकों की प्रतिष्ठा में ह्रास हुआ है । शिक्षकों का कार्य अध्यापन एवं छात्रहित के साथ – साथ समाज के विकास में भी अपनी महती भूमिका निभाना है परन्तु आये दिन शिक्षकों से लिए जाने वाले गैर – शैक्षणिक कार्यों के चलते उनके साख पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि शिक्षकों से इस प्रकार के कार्य जो लिए जा रहे हैं कहाँ तक उचित है? मेरा भी मानना है कि शिक्षकों को इन सब अतिरिक्त कार्यों से मुक्त कर केवल विद्यालीय गतिविधि पर नजर रखने एवं उन्हें सुचारू रूप से प्रतिपादित करने की आवश्यकता है । शिक्षक भी विद्यालय में पूरी तन्मयता से अपना सबकुछ दें रहें हैं । नवोन्मेषी शिक्षा, नवाचार एवं विज्ञान आधारित शिक्षण भी विद्यालय के माहौल में सकारत्मक बदलाव ला रहें हैं । सरकार द्वारा भी शिक्षकों के हित में कार्य करने एवं उनके समस्याओं को संवेदन शील ढंग से निष्पादन करने की आवश्यकता है । अतः हम कह सकते कि शिक्षक दिवस के इस विशेष अवसर पर उन सभी शिक्षकों ( गुरुओं) को हमारा शत – शत वंदन है जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रनिर्माण में अपनी महती भूमिका निभाई है ।

शुभकामाओं के साथ ।

आशीष अम्बर
( विशिष्ट शिक्षक)
उत्क्रमित मध्य विद्यालय धनुषी
प्रखंड – केवटी
जिला – दरभंगा
बिहार

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