शिक्षक वह है जो मस्तिष्क के बंद दरवाजे को खोल दे : गिरीन्द्र मोहन झा

आज के शिक्षा की हकीकत यह हो चुकी है कि सरकारी विद्यालयों में वैसे बच्चे उपस्थिति के साथ पढ़ रहे हैं, जिनके अभिभावक निजी विद्यालयों में पढ़ाने में अक्षम हैं। कुछ बच्चों का नाम अंकित इसलिए है कि उन्हें सरकारी प्रमाण-पत्र मिल जाए। निजी विद्यालयों की हाई-फाई जितनी अधिक, शिक्षा की गुणवत्ता उस अनुपात में बहुत कम। अभिभावकों का ध्यान रखना विशेष आवश्यक होता है। मुझे एक पदाधिकारी ने कहा था, “पढ़ता कॉलेज नहीं, प्रोफेसर नहीं, माहौल नहीं, पढ़ता है स्टूडेंट।” आज के समय की मांग है कि शिक्षकों तथा अभिभावकों को भी बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ उसके सर्वांगीण विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
शिक्षक के तीन महत्वपूर्ण गुण- विषय का गंभीर ज्ञान (content knowledge), सम्प्रेषण कौशल(communication skill) और शिक्षण-शास्त्र (Pedagogy) उन्हें निरंतर अपने विषय में योग्यता के साथ दक्षता और शिक्षण-कौशल को बढ़ाने की आवश्यकता होती है।
अनुशासन बहुत आवश्यक है। मैंने अनुभव किया है कि आपके पास कक्षा-कक्ष में कंटेंट डिलीवर करने के लिए है, तो बच्चे स्वयं ही अनुशासित रहते हैं। इसके लिए पहले तैयारी की आवश्यकता हो जाती है।
शिक्षक के अनुशासन और डांट में भी विद्यार्थियों के लिए जीवन-संदेश निहित होता है।

कबीरदास के शब्दों में, “गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, गढि गढि काढै खोट । अन्तर हाथ सहारा दे बाहर बाहै चोट ।।”

गुरु शब्द का अर्थ ही है – भारी । जो ज्ञान, अनुभव, विद्वत्ता और ईश्वरीय साधना में उच्चतर हो, वही गुरु है।
शिक्षक, वकील और चिकित्सक का जीवन-पर्यन्त अध्ययनशील रहना आवश्यक है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में, “एक शिक्षक वास्तव में तभी शिक्षण कर सकता है, जब वह स्वयं अध्ययनशील रहता है। एक जलता हुआ दीपक ही दूसरे को प्रज्ज्वलित कर सकता है।”
NEP-2020 में बहुत सारी ऐसी बातों का उल्लेख है जिनके अनुपालन से शिक्षा का विकास निरंतर हो रहा है। Mentors और Mentee अपनी भूमिका अच्छे ढंग से निभा रहे हैं। विद्यार्थियों को intelligent से पहले diligent और curious होना आवश्यक होता है। Genius से पहले पढ़ाई के लिए conscious होना आवश्यक होता है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जापान की घोर अवनति हुई । सर्वविदित है कि 6 अगस्त, 1945 को जापान के हिरोशिमा शहर पर और 9 अगस्त, 1945 को नागासाकी शहर पर क्रमशः लिटिल बाय और फैटमैन नामक परमाणु बम गिराया गया । जापान के अभ्युदय, उत्थान और उन्नति में वहां के शिक्षकों की महती भूमिका रही है। समय-प्रतिबद्धता, कार्यसंस्कृति, आत्मसम्मान, उत्तरदायित्व के प्रति प्रतिबद्धता और व्यवस्था द्वारा हर पग पर उनको यह आभास दिलाया गया कि वे ही राष्ट्र के निर्माता हैं, वे भविष्य के कर्णधार तैयार कर रहे हैं। उनसे व्यक्ति और व्यक्तित्व निर्माण के जो तत्व बच्चे सीख कर जाएंगे, वे बड़ी-बड़ी शोधशालाओं, अस्पतालों, प्रशासनिक कार्यालयों में भी कुछ वर्ष बाद दिखायी देंगे। आज जापान में कोई अपने कार्यस्थल पर विलंब से नहीं पहुंचता है। भारत के अध्यापक यदि चाहें तो कुछ वर्षों के अंतराल में यहां भी यह स्थिति आ सकती है। राष्ट्र निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण दायित्व निर्वाह शिक्षकों को ही करना है। समाज में नैतिकता और मानवीय मूल्यों की स्वीकार्यता भी अध्यापकों के अनुकरणीय आचरण से ही आएगी ।
“शिक्षकों की साख अवश्य संभाली जाय ।”


गिरीन्द्र मोहन झा, +२ भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर-पड़री, सहरसा

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