स्वतंत्रता दिवस : अरविंद कुमार

भारत-नेपाल अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे अररिया का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है । सन 1857 की पहली जंग-ए-आजादी से लेकर 1942 की अगस्त क्रांति तक अररिया जिले के सपूतों ने हर मौके पर अपनी मातृभूमि के लिए शहादत दी है , और देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है । सन 1857 में जब अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजा तो जलपाइगुड़ी व ढाका में तैनात भारतीय जवानों ने अररिया जिले के नाथपुर में अंग्रेजों को धूल चटाते हुए नेपाल के चतरागद्दी में कोसी पार किया था ।

अगस्त क्रांति के मौके पर अररिया के सेनानियों ने अंग्रेजी बंदूकों का डटकर सामना किया. फारबिसगंज के द्विजदेनी जी गिरफ्तार हो गये, तथा भागलपुर सेंट्रल जेल में पुलिस की यातना का शिकार होकर शहीद हुए ।

20 सितंबर 1942 को फारबिसगंज में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जुलूस निकल रहा था , पुलिस ने जुलूस पर गोली चला दी. बताया जाता है कि इस गोलीबारी में सुंदरलाल ततमा मौके पर ही शहीद हो गये।

उधर कुर्साकांटा, कुंआरी …के रणबांकुरों ने भी जान की परवाह किये बगैर कुंआरी थाना में तिरंगा फहराया।

रानीगंज थाना पर स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा तिरंगा फहराने की कोशिश में काली दास व जगतू हाजरा ने अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन सेनानियों के हौसले पस्त नहीं हुए। रानीगंज प्रखंड के बरबन्ना गांव दीवान टोला के स्वतंत्रता सेनानी कलानंद सिंह भी पूर्णिया व भागलपुर जेल में तीन वर्षों से अधिक दिनों का समय काटा , बाद में कर्पूरी ठाकुर के सानिध्य में आजादी की लड़ाई जारी रही।

इंडो- नेपाल सीमा के जोगबनी के पास के भृगुनाथ शर्मा जी व वशिष्ठ नारायण शर्मा जी भी अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीति तैयार करने में हमेशा जूटे रहे ।

इनके बाद फारबिसगंज के स्वतंत्रता सेनानी रामानंद सिंह भी देश की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए अंग्रेजों के जुल्म का शिकार हुए ।

जिले के स्वतंत्रता सेनानियों में पंडित रामाधार द्विवेदी, जमील जट , कन्हैया लाल वर्मा, कमलानंद विश्वास, धनुषधारी चौधरी, हरिलाल झा, नागेश्वर झा, बुद्धिनाथ ठाकुर, सूर्यानंद साह, फणीश्वर नाथ रेणु, बोधनारायण सिंह, गणेश लाल वर्मा, कलानंद सिंह, भृगुनाथ शर्मा, रामानंद सिंह आदि के नाम प्रमुख है ।

इन रणबाकुरों के बीच भला भरगामा के लाल कहां पीछे हटने वाले थे । उस वक्त भरगामा,खजूरी का गांधीनगर टोला क्रान्तिकारियों का पनाहगार था । जहां देश की आजादी के लिए गुप्त रणनीति बनाई जाती थी ।

भरगामा के क्रान्तिकारीयों में गरीब दास, अनुराग दास, फेकू यादव, तनुकलाल दास ,महेन्द्र यादव, राघव दास ,मोगल सुतिहा , लक्षमण खतवे, इन्द्रानंद झा सरीखे ढेरों रणबांकुरे सदैव पूजनीय रहेंगें ।

जरूरत है इन धरोहरो को उचित सरकारी सुविधा के साथ संजो कर रखने की ताकी आने वाली पीढ़ी अपने पुरखों पर नाज कर सके ।

जय हिन्द,जय भारत

अरविंद कुमार

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply