पछूवा कंपकपावे भूखवा दौड़ावे- श्री विमल कुमार”विनोद”

Bimal Kumar

गाँव-गंवई भाषा में लिखल लघुकथा।
कैलू नामक एक साधारण व्यक्ति जो कि दैनिक मजदूरी करके अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करता है।इसकी शादी मुनकी नामक एक लड़की से हो जाती है।दोनों की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय है।इसको रहने के लिये मात्र एक छोटा सा फूस का मकान है,जिसको बीच-बीच में वह” ताड़ के डमोला” से छौवनी करके किसी तरह से अपने परिवार के साथ जीवन गुजर-बसर करता है।सौभाग्य या दुर्भाग्यवश इसको बेटा के लालच में पांच लड़की हो जाती है।बड़ा परिवार हो जाने के कारण उसको कठिन मेहनत मजदूरी करनी पड़ती है।दिन-रात, चाहे जेठ की तपती दुपहरिया हो या
पूस की कनकनाती,कंकपाती ठंड या आषाढ़-सावन की मूसलाधार बारिश का मौसम में कृषि कार्य करना ही पड़ती है।चूँकि इसका परिवार बहुत बड़ा है तथा बहुत सारे बाल-बच्चे हैं,जिसके पेट की क्षुधा और लालन-पालन के लिये रूपये कमाना बहुत जरूरी हो गया है।इसलिये बेचारा कैलू दिन-रात मेहनत करता ही रहता है।
खेती का काम धीरे-धीरे जटिल होता जा रहा है,इसलिए लोग कैलू को कहकर अपनी जमीन की खेती- बारी के लिये कहते रहते हैं।गाँव के बगल में सिंचाई की व्यवस्था होने के कारण कैलू लोगों के जमीन पर खेती-बारी करते हैं।इस प्रकार खेती बारी करने के लिये उसे बहुत परेशानी भी होती है।
कहानी का मूल शीर्ष”पछूवा कंपकपावे,भूखवा दौड़ावे” का नायक कैलू जो कि गेहूँ की खेती किये हुये है।रात का समय है,चिलचिलाती ठंड से सभी लोग अपने-अपने घरों में दुबके हुये है।हल्की-हल्की बारिश
हुई है,तेज पछूवा हवा चल रही है।गेहूँ की पटवन करना भी जरूरी है।घनी काली अंधेरी रात का समय है इसी बीच कैलू का भतीजा गुड़कू जो कि कंबल ओड़े हुये एगो हाथ में डंडा तथा दूसरे हाथ में लालटेन लिये हुये कैलू के घरवा के पास आकर किवाड़ खटखटा रहा है और जोर-जोर से बोल रहा है अरे ओ कैलू चाचा,कैलू चाचा।कैलू कौन हो भाई,ई ठंडवा में काहे ले परेशान हो रहे हो?
हमको तो बहुत ठंड लग रही है,अभी हम अप्पन खोली(फूस का घर)में लरूवा के उपर बिछौना करके गेंदरा ओड़ के दुबकल हियो,हमको तंग मत करो।
सुन ले कैलू चाचा हम आपका भतीजा गुड़कू बोल रहे हैं,गेहूँ का खेत पटवन करना जरूरी है।नय पटवन करभिं तो सालो भर भूखे रहना पड़ेगा,बाल बच्चे भी भूखे मर जायेंगे।इसलिए खेत तो जाना ही पड़ेगा।इसके बाद कैलू,गुड़कू के साथ
दू अंटिया पुआल एगो छोटका खटिया,दियासलाई लेकर कंबल ओढ़ कर खेत में पानी पटवन करे खातिर चल देता है।घर से बाहर निकलते ही कनकनी वाली पछूवा हवा दोनों के शरीर के बत्तीसा को हिला रहा है।ठंड से गोड़ थर्र-थर्रा रहा है,मानो कि लग रहा है कि टूट कर गिर जायेगा।इहे बीच कभी-कभी सियार के आवाज तो कभी कुतुवा सब के आपस में छीना-झपटी करे के आवाज सुन के तो अयसन लग रहा है कि जाने-पराने उड़ जायेगा।ऐकरा बाद दुन्नो चाचा भतीजा एगो गाछ के नीचे खटिया बिछाके सूते के कोशिश तो करता है,तभिये एगो बढ़का सूअर इ लोग के तरफ दौड़कर आ रहा है,
जेकरा देख के तो कैलू के प्राणे सुखने लगता है।तभी गुड़कू कहता है कि ऐ हो चाचा डरे के जरूरत नय हो,
हम्मर पास में जे सब्बल हो न,एकरे से उ सियार के पेटवे में भोंक देबो।
गुड़कू के बतिया सुन के कैलू कहता है कि सुन ले भतीजा कउनो जीव के हत्या नय करे के चाहीं,से उ कुच्छू नय करतो।ओकरा बाद तो जे ठंडा लगे लगलो कि उ कनकनी के कोय वर्णन करना लेखक के वश में नय हय।ऐकरा बाद तो मुर्गा बांग देना शुरू कर दे हो।
ई बीच रात भर ठंड से कुकड़ाइल कैलू को गहरी नींद आ रही है।लेकिन गुड़कू को तो घर जाकर अप्पन माल-जाल के कुट्टी पानी भी देना है,
इसलिये कैलू चाचा को जागकर चलने को कहता है।बेचारा कैलू चाचा का कहे,”पूस के पछूवा हवा के ठंड से ठिठुरल कैलू,जिसको पेट की क्षुधा सता रही है,कंबल ओड़े घर लौट जाते हैं।”


श्री विमल कुमार”विनोद”शिक्षाविद की लेखनी से।

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