श्री विमल कुमार"विनोद" की लेखनी से।
बच्चा जब जन्म लेता है,उसके बाद धीरे-धीरे उसका विकास होता है,जिसमें बच्चा जन्म लेने के बाद सबसे पहले रोना,चूसना और कपड़ा गीला करना ही जानता है।उसके बाद विकास की गति सतत एवं लगातार,अनवरत रूप से चलती रहती है।इसी क्रम में उलटना, बैठना,तुतलाना,बोलने का प्रयास करना आदि है।जहाँ तक बोलने की बात होती है,कुछ शिक्षाविद माता के गोद में बोली जाने वाली भाषा को”बोली”तो कुछ लोग इसे मातृभाषा कहते हैं,लेकिन मेरी निजी राय है कि माता के गोद में सीखी जाने वाली भाषा को मातृ-भाषा के नाम से पुकारा करते हैं। भारत वर्ष में त्रिभाषायी-फार्मूलाा जिसमें क्षेत्रीय स्तर पर क्षेत्रीय- भाषा जिसे मातृभाषा के रूप में भी जाना जाता है,हिन्दी को राष्ट्रभाषा तथा अंग्रेजी को कार्यालय की भाषा के रूप में प्रयोग किया जाता है। मेरा यह आलेख आज”हिन्दी दिवस के अवसर पर”हिन्दी के प्रति हमारी सोच से जुड़ा हुआ है,प्रस्तुत करने जा रहा हूँ।
हिन्दी जिसे हमलोग अपने परिवार में माता के गोद से ही सीखना प्रारंभ कर देते हैं,जिसमें हमलोगों को बहुत आनंद प्राप्त होता है।मुझे ऐसा लगता है कि हिन्दी का प्रयोग करना बहुत ही सुन्दर लगता है।इसे मैं एक उदाहरण के रूप में कह सकता हूँ,कि जब मैंने अंग्रेजी में लिखना प्रारंभ किया तो लोगों ने मुझे हिन्दी में लिखने को प्रेरित किया, और जब मैं हिन्दी में लिखना प्रारम्भ कर दिया तो फिर बहुत आनंद आने लगा।
लेकिन एक अहम् सवाल पैदा होता है कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है,फिर भी हम लोग अपने बच्चे-बच्चियों को अंग्रेजी माध्यम के निजी विद्यालयों में पढ़ाने के लिये लालायित रहते हैं,जो कि इस आलेख के लेखक श्री विमल कुमार”विनोद” ने भी किया है।
यह एक गंभीर प्रश्न है,कि हिन्दी के प्रकांड विद्वान के बच्चे तथा शिक्षा विभाग में ऊँचे-ऊँचे पदों को सुशोभित करने वाले विद्वानों के बाल-बच्चे भी सरकारी विद्यालयों में नहीं पढ़कर निजी विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं,जो कि राष्ट्र,राष्ट्रीय भाषा तथा हम सबों के लिये बहुत दुःख की बात होगी।
इन सभी बातों के लिये मुझे जो मुख्य समस्या नजर आती है,वह है देश में सेवा का अवसर पाने की नीति,देश के लोगों की कुंठाग्रस्त मानसिकता।आम लोगों के मन में इस बात की अवधारणा है कि अंग्रेजी बोलने वाले साधारण लोगों की तुलना में अधिक तीक्ष्ण बुद्धि के विद्वान होते हैं और सेवा में जाने का उनको अधिक अवसर मिल पायेगा।यह बात भी एक समालोचक के रूप में विमल जी की लेखनी से लिखी गई सत्य हो सकती है।
अंत में,मेरी यह सोच है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी माँ, मातृभाषा,मातृभूमि से प्रेम होना चाहिये।जिस मनुष्य में अपनी माँ, मातृभाषा,मातृभूमि के प्रति सम्मान और गर्व नहीं है,वह मनुष्य नर नहीं पशु के समान है के साथ ही,हिन्दी दिवस की बहुत सारी शुभकामनायें।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार
“विनोद”शिक्षाविद