एक गाँव में सुशीला नामक एक 20 वर्षीय औरत जिसकी शादी रामू नामक एक साधारण आदमी से हुई थी।रामू एक साधारण मजदूर था जो कि प्रतिदिन मजदूरी करके शाम को घर लौट जाता था तथा जो मजदूरी मिलती थी उसी से अपना पालन पोषण करता था।सुशीला जो कि देखने में खुबसूरत थी तथा उसका पहनावा तथा रहन-सहन भी साधारण तरह का था।इनको दो लड़के थे जो कि क्रमशःएक और तीन वर्ष के थे।एक दिन रामू अपनी साइकिल से दिन भर काम करके लौट रहा था,झोला में दाल,सब्जी,बच्चों के लिये बिस्कुट, मिठाई तथा अपनी पत्नी के लिये साबुन,क्रीम,सिन्दूर,केश में लगाने वाला तेल लेकर घर लौट रहा था।
उसी दरम्यान घर पहुंचने के कुछ ही गज की दूरी पर विपरीत दिशा से तेज रफ्तार में आ रही ट्रक के चपेट में आ जाने से उसकी मौत हो जाती है।उसके बाद तो सुशीला के परिवार पर मानो विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ता है।दो छोटे-छोटे बच्चे तथा सुशीला को भोजन के लाले पड़ जाते हैं साथ ही किराये के घर पर रहने वाली सुशीला और उसके परिवार को मकान मालिक घर से निकाल देता है।उसके बाद सुशीला एक रैन बसेरा में किसी तरह से दिन गुजारती है।इसके बावजूद भी वह अपने बच्चों को “डिबरी” की रोशनी में पढ़ाती है। इसी दरम्यान एक शाम जिलाधिकारी महोदय की नजर उस पर पड़ती है,
के बाद उसे रहने के लिये एक सरकारी कमरा दे दिया जाता है।”पेट की क्षुधा और बच्चों को पढ़ाने के लिये”सुशीला सुन्दर कपड़े पहन कर बड़े-बड़े लोगों से मिलने जाती है और घंटों भर उनके साथ बैठकर उन्हें अपनी दुःख-दर्द समझाने की कोशिश करती है तथा देर शाम तक तथा दिन में भी अकेले लोगों से मिलती है।उनसे कुछ सहयोग की अपील करती है तथा उनके सहयोग से आपना तथा अपने बच्चों का काम संभालती है।
लगातार अनेक लोगों से इसी प्रकार से सुशीला मिलती है तथा उनके द्वारा सहयोग लेकर गुमनाम तरीके से दूसरे अनाथ लोगों को भी सहयोग करती है।सुशीला का रहन-सहन देखकर तथा लोगों से अकेले घंटों मिलना तथा लोगों के यहाँ से मुस्कुरा कर निकलना समाज के लोगों को बहुत बुरा लगता है तथा सुशीला के द्वारा बिना कुछ किये ही अपने बाल-बच्चों को पढ़ाना-लिखाना समाज के लोगों के मन-मस्तिष्क में सुशीला के चरित्र तथा जीवन निर्वाह के तरीके पर प्रश्न चिह्न लगाता हुआ नजर आता है।समाज के बहुत सारे लोग तो सुशीला को देखकर ताने मारते हैं कि देखो सज-धज कर चली अपने इज्जत-
आबरू का सौदा करने।इस तरह की नालायक,चरित्र की गिरी हुई औरतों को तो समाज में जीने का कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए।अपने गलत कर्मों के कारण समाज के सभी लड़कियों पर कलंक का ठीकरा मढ़ने जा रही है। छि-छि इस तरह की कलमुंही औरत का मुँह देखने से तो दिन खराब हो जायेगा।समाज के लोगों के इस तरह के ताने सुनने के बाबजूद भी सुशीला अपने दोनों बच्चों को बाहर रखकर बेहतर शिक्षा देने का काम कर रही है तथा समाज के अन्य अनाथ बच्चों को भी शिक्षा देने का प्रयास कर रही है। लगातार समाज के द्वारा मानसिक रूप से प्रताड़ित किये जाने के बाद भी सुशीला अपनी गतिविधि से पीछे नहीं हटती है तथा उसी प्रकार से सुन्दर कपड़े पहनकर,सज-धज कर लोगों से घंटों अकेले में मिलना तथा गरीबों के सहयोग के लिये काम करने का प्रयास करती है। समाज के लोगों के द्वारा लगाये गये चारित्रिक लांछन का सुशीला के मन-मस्तिष्क पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता है।सुशीला के इस प्रकार की बातों को देखकर गाँव समाज के लोग सुशीला को समाज से बहिष्कृत करने का निर्णय लेते हैं तथा उसके कमरे के सारे समानों को सड़क पर फेंक दिया जाता है। सुशीला जो कि बहुत ही सज्जन तथा चुस्त-चालाक,बुद्धिमान औरत है,जो कि अपने बच्चों को इन सभी बातों से दूर रखते हुये उसे अच्छी शिक्षा दे रही है।
एक दिन की बात है कि सुशीला को समाज के सभी लोगों के द्वारा बीच चौराहे पर खड़ा करके उसके कर्मों की भर्त्सना की जा रही थी तथा लोगों की योजना थी कि उसके सिर का मुंडन कराकर उसके माथे पर चूना चपोत कर तथा चेहरे पर “चरित्रहीन”लिखकर चेहरे पर कालिख पोत,गधे पर बैठाकर पूरे समाज में घुमाया जाय ताकि समाज की कोई भी औरत इस तरह अकेले में देर रात तक मर्दों से न मिलने की कोशिश करे।एक ओर इस तरह की बात चल रही थी तो दूसरी ओर उसके दोनों बच्चों ने सरकारी सेवा में अवसर प्राप्त कर लिया था।
इसी बीच जब सुशीला को शहर के बीच चौक पर खड़ा कर इसके सिर का मुंडन करने की बात की जा रही है तभी सुशीला जोर से चीखकर कहती है कि अरे ओ समाज के ठीकेदारों तुम जो मेरे बारे में सोच रहे हो वह मैं नहीं हूँ।समाज के गंदी नाली के कीड़े तुमने कभी मेरे द्वारा किये गये कार्यों को समझने की कोशिश की है।हरामखोरों,कमीने तुम्हारे घरों में तुम्हारी मां-बहन नहीं है,तुमने कभी उसको चरित्रहीन कहने का कोशिश किया है,नालायक कहीं का।
तो लो अब मेरी जीवन की कहानी सुनो,आज से लगभग 20 वर्ष पहले जब मेरे पति रामू का एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी तो कोई भी मेरी सुधि लेने वाला नहीं था।मैं शहर के फुटपाथ पर अपने दो छोटे- छोटे बच्चों को लेकर सड़क के रैन बसेरा में अपनी जिन्दगी गुजार रहा था,कभी आप समाज के ठेकेदारों ने मेरी सुधि लेने की कोशिश की।तुम जिस सुशीला को सुन्दर कपड़े पहनकर लोगों से अकेले मिलते देखते थे वह मैं सुन्दर तरीके से अकेले कुछ लोगों को अपनी जीवन के दुखड़े सुनाता था तथा उनसे अपने बच्चों की परवरिश के लिये अनुरोध करता था।इसके अलावे मैं लोगों से मिलकर कुछ अनाथ बच्चों के लिये काम करती थी,जिसके चलते आज समाज के हजारों हजार बच्चे अपनी जिन्दगी को सुधार रहे हैं।समाज के गद्दारों तुम यह कान खोलकर सुन लो कि “जिस सुशीला को तुमलोग चरित्रहीन कहते हो वह आज भी पवित्र है,गंदी है तो तुम्हारी सोच।नीच अब भी तो तुम अपनी सोच को बदलो,तुम और तुम्हारा समाज यदि किसी को जीने का हक नहीं दे सकता है,तो उसे चरित्रहीन भी कहने की ताकत न रखे”। इतनी सारी बातों को कहते हुये अचानक उसे दिल का दौरा आ जाता है,वह गिर पड़ती है तथा मौके पर ही उसकी मौत हो जाती है।चारों और हाहाकार मच जाती है,सुशीला पर गलत लांछन लगाने वाले लोग भागने लगते हैं।उसी समय पुष्पवृष्टि होती है तथा देववाणी होती है कि हाय रे समाज तुने जीवन से संघर्ष करती एक अनाथ महिला को”चरित्रहीन” कह डाला,तरस है ऐसे समाज पर”।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार “विनोद”प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा, बांका(बिहार)
चरित्रहीन”-02 -श्री विमल कुमार”विनोद”
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