तितली की उड़ान -स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्य ‘

मुहल्ले के एक चौराहे पर केशव तन्मयता से जूता-चप्पल मरम्मत करता था। जूता पालिश करता था। उसे अपने इस काम से शिकायत नहीं थी लेकिन बड़ी मुश्किल से गुजर -बसर कर पाता था। केशव के दो बच्चे- तितली और किशन। पत्नी घरेलू महिला थी, लेकिन सुलझी हुई। सरल गृहिणी। इतनी कम आमदनी में भी उफ्फ नहीं। झोपड़े में अपने बच्चों को दो जून की रोटी बनाकर खिलाती लेकिन मन भारी रहता आर्थिक तंगी से फटेहाल जिंदगी से तंग -तबाह! वो तो लाल कार्ड का धन्यवाद करती की बच्चों को भरपेट भोजन मिल जाता। केशव पूरी लगन से मिहनत करता लेकिन सामान्य जरूरतों को भी पूरा कर पाना उसके बस में नहीं था।

तितली बड़ी बेटी थी। लेकिन चेहरे पर अद्भुत चमक लिए खुश रहती। माँ के साथ हाथ बटाती और तन्मयता से पढ़ती। स्कूल से किताबें भी मिल जातीं थीं और पड़ोस के श्रीधर पाण्डे , जो बैंक अधिकारी थे, आवश्यक काँपी-कलम, कागज मुहैया करवा देते थे बदले में केशव उनके चप्पल जूतों की मरम्मत कर देता था, पैसा कभी लेता कभी नहीं भी लेता, लेकिन काम में हमेशा तत्पर!
किशन खेल कूद में अव्वल! फुटबाल का अद्भुत प्रतिभावान खिलाड़ी। पढ़ने में सामान्य। तितली से दो वर्ष छोटा। वो बड़ा होकर मडोना जैसा बनना चाहता था। केशव उसे जूता से दूर रखकर साहब बनाना चाहता था। माँ शक्ति जिसे सतिया कहकर केशव फुले नहीं समाता था, का लाडला। शक्ति के लिए किशना सबसे दुलारा और सुंदर था।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। तितली बड़ी हो रही थी। वह मैट्रिक प्रथम श्रेणी से पास कर गई। केशव के मुहल्ले में यह पहली घटना थी। इसके पहले किसी ने मैट्रिक प्रथम श्रेणी से पास नहीं किया था। केशव बहुत प्रसन्न था। मिठाई की दुकान से लड्डू लेकर घर पहुँचा। तितली को देख आँखें डबडबा गईं। तितली कॉलेज जाने लगी। पढ़ने में अव्वल, शालीन और सुशील।
केशव उहापोह में था।आस पास जात बिरादरी के लोग कहने लगे। बेटी बड़ी हो गई, समय से शादी करवा दो। आखिर केशव नें सतिया अपनी पत्नी से चर्चा की।
क्या करना चाहिये? तितली बड़ी हो गई। ई उम्र में तो तितली की अम्मा बन गईं थी।
उ जमाना कुछ और रहे। हम सब अनपढ़ गँवार, हमार बिटिया त कॉलेज जा रहल बाड़ी।
हूँ! केशव ने हामी भरी, तो?–
ई की शादी व्याह से पढ़ाई छूट न जाई का?
हूँ…अच्छा! तो अभी छोड़ दिया जाय। केशव गंभीर होकर बोला।
तितली पानी लेकर आई। बापू! हमारा बी ए कम्पलीट हो जायेफ ,अभी फाइनल ईयर है। आप कहो तो ऑफिसर वाला फार्म भर दें क्या?
केशव अचंभित! सतिया ई बेटी क्या कह रही है?अरे ..कितना बढ़िया बात है।..
अच्छा तू फार्म भरेगी तो ऑफसर बन जाओगी ..
अरे ना बाबा, इम्तहान देना होगा। बापू मैं खूब मिहनत करूँगी और आपके आशीर्वाद से में ऑफिसर जरूर बनूँगी। माई, बापू को बोल ना..
अरे हाँ मोरी बिटिया..बापू काहे मन करीहें ..का जी ठीक बा ना।
हाँ ..हाँ..
तितली बहुत खुश थी। वो मैगजीन के एक लाईब्रेरी से पहले ही जुड़ गई थी। कुछ बच्चों को ट्यूशन भी देती थी। इस बहाने उसने पूर्व से ही अपनी तैयारी जारी रखी थी।
केशव बहुत खुश था, लेकिन समझ नहीं पा रहा था कि बिटिया की उम्र अधिक हो गई तो बिरादरी में रिश्ता मिलेगा या नहीं। इतना पढा लिखा लड़का तो दूर दूर तक नहीं है। लेकिन केशव ऑफसर बेटी का सपना देखने लगा। उसे याद है जब तितली छोटी थी, एक मेम साहब मोटर कार से उतरकर अपनी सैंडल दुकान पर देकर बड़ी घमंड से अनाप शनाप बोलीं फिर अपनी चमचमाती गाड़ी से छूमंतर हो गईं। तितली को यह सब अच्छा नहीं लगा। वो पूछ बैठी . ये कौन है बापू इस तरह आपको क्यो बोली? कहते हुए उस सैंडल को उठाकर कचड़े में फेंक दिया था।
तितली नें रोते हुए कहा था बापू मैं भी मोटरकार लूँगी लेकिन मैं कभी ऐसा नहीं करूँगी.. केशव याद करता हुआ ..तितली के मन में बैठ गया । तितली का संकल्प अडिग था। तितली बड़ी हुई संकल्प दृढ़ होता गया।
कुछ समय बीता! तितली नें बाजी मार ली। तितली अब गंगानगर की जिलाधिकारी .. अपनी कार..अपना बंगला..
अरे क्या बात है..रोवत हो का? शक्ति ने धक्का देते हुए केशव की तंद्रा तोड़ी। अरे ना हम आज यहाँ बैठ के राजा हो गए है! याद आ रहा था अपनी तितली का बचपन। तू त बस सपने में..
ना ना हम सोच रहे थे कि यह सब तितली के ऊँचे सपने की उड़ान है। सब तोहार तितली का।
शक्ति और केशव मुस्कराने भी लगे। तितली सामने खड़ी थी।

स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्य ‘
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार

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