गर्मी की छुट्टी में इस बार भी सभी बच्चे अपने गाँव आये थे । अनु,तनु,मंगल,सोनू,सबके सब। अपने गाँव, अपनी दादी माँ के गाँव।
मजे की बात। गाँव का नाम था बसन्तपुर और दादी माँ का नाम बसन्ती! बसन्ती देवी।
यह गाँव भी प्यारा-सा। दादी भी प्यारी-सी। सबको प्यार करने वाली।सबकी दुलारी।सभी बच्चे उन्हें हमेशा घेरे रहते थे।
बच्चे शरारती भी कम न थे। खेल-खेल में एक-दूसरे से भिड़ जाते। कभी-कभी झगड़े,मारपीट तक की नौबत हो जाती थी।
आज सुबह से ही बच्चों ने शोर मचा रखा था। कभी छत पर,कभी बरामदे में,कभी बगीचे में उछल-कूद मचा रहे थे।
तभी मंगल ने तनु को धकेल दिया।उधर अनु और सोनू आपस में तू-तू,मैं-मैं कर रहे थे।
‘अरे,देखो, दादी माँ आ रही है। आज मैं सभी की शिकायत करूँगी। दादी सभी को डाँटेगी। सभी को मारेगी! ‘बातूनी तनु की बात झूठी न थी। दादी माँ सचमुच आँगन से निकलकर बच्चों की तरफ आ रही थी।
पहले तो सभी बच्चे सहम गए। फिर सभी ने एक-दूसरे की गलती गिनानी शुरू कर दी। मगर दादी ने किसी को कुछ न कहा। न डाँट लगाई। न फटकार।
‘देखो,मैं तुम सबको अच्छी लगती हूँ न!’
‘हाँ… दादी माँ!’सभी ने एक साथ कहा।
‘वह इसलिए बच्चों, कि मैं तुम सभी से प्यार करती हूँ। किसी का दिल नहीं दुखाती। न कुछ ऐसा करना चाहती हूँ कि मेरे व्यवहार से किसी को पीड़ा पहुँचे… समझ रहे हो न मेरी बात?’
‘हाँ…’सभी ने सिर हिलाया।
‘तो मेरे बच्चे!यही तो असली की पढ़ाई है। अच्छे बनो। नेक बनो। सभी से प्यार करो। सबके प्यारे बनो।…’
फिर दादी माँ ने सभी को प्यार से अपने साथ बिठाया और अच्छी-अच्छी चीजें खाने के लिए दीं।
सभी खुश थे। कोई फल खा रहा था। कोई आलू के चिप्स और मंगल तो रेबड़ी पीने में मगन था!
बच्चों के खुशियों की कोई सीमा न थी। वह सचमुच दादी माँ की बात को समझने लगे थे।
गिरिधर कुमार
उमवि जियामारी, अमदाबाद, कटिहार