आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व की बात है,किसी गाँव में एक मध्यम वर्गीय परिवार था,जिसमें परिवार के मुखिया रेलवे में टाॅली मैन की साधारण सी नौकरी कर रहे थे,कम मजदूरी की बात पर अपने विवाह के बाद ही उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी।चूँकि उस समय इन लोगों का मुख्य काम था आलू,मिर्च की खेती करना जिसमें अच्छी खासी कमाई हो जाती थी।बाद में कृषि कार्य में कमायी कम होने के चलते आर्थिक स्थिति दयनीय होती गई तथा इनको अपने एक स्वजन का साथ मिला लेकिन बैशाखी के सहारे कितना दिन चला जा सकता था।इनको दो पुत्र एवं एक पुत्री थी।पुत्री भी बहुत भाग्यवान थी कि एक अच्छे लड़के के साथ विवाह हो गया।इनका बड़ा बेटा भी किसी तरह से कमा कर अपना परिवार लेकर पास के ही एक बाजार में मकान बनाकर रहने लगा।छोटा बेटा भी बेरोजगारी और समय की मार के चलते घर से बाहर एक बड़े शहर में रोजी-रोजगार करने के लिये निकल गया तथा किसी प्रकार से अपना जीवन यापन करने के लायक कमाने लगा।चूँकि बुद्धि, व्यवहार,हुनर आदि यदि किसी भी व्यक्ति में हो तो तो वह दुनियाँ का कोई भी काम कर सकता है।इनके दोनों पुत्रों में यह गुण भरा हुआ था,
जिसके बदौलत इनकी तरक्की होती गयी।
कहा जाता है कि”तूफान आने के पहले खामोशी छा जाती है,वहीबात इस व्यक्ति के साथ भी हुआ।आज मुझे छठ पर्व के शुभ-अवसर पर इनके घर पर सपरिवार आने का सुअवसर प्राप्त हुआ जिसे देखकर मुझे ऐसा महसूस हुआ कि”दुःख में भी सुख छिपा हुआ रहता है”।
कहानी कुछ ऐसी है कि इसी वर्ष बरसात के समय में जब यह अपने बड़े बेटा के यहाँ पर गये थे अचानक इनके मन में हुआ कि मैं अपने जन्म स्थान पर ही जाकर रहूँगा और वह अपने परिवार के साथ वहाँ पर चले आये।अपने दुखदायी जीवन के घोर अंधेरे समय में,जबकि बरसात की वह घोर-अंधेरी रात,इन्द्र देव की भारी कृपा से इनके फूस के घर में जगह- जगह पर पानी चू रहे हैं।भादो की वह अंधेरी रात तेज हवा के झोंके के साथ मूसलाधार वर्षा हो रही है,जिसमें एक ओर तो इनको तथा इनकी पत्नी को निद्रा देवी सता रही थी तो दूसरी ओर बरसात की रात में मेढ़क,कीड़े- मकोड़े के आनंद का पल तो कभी सर्प के मेढ़क को अपने मुँह में जकड़े रहने की आवाज,बीच-बीच में तेज गर्जना के साथ बिजली का चमकना,मानो कि इनके घर पर ही कहीं बिजली तो नहीं गिर जायेगी ने रात-दिन इनका जीना मुश्किल कर रखा था।जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य कि ऐसी स्थिति देखकर अगल-बगल के परिवार वाले भी अपने-अपने घरों के दरवाजे बंद कर लेते थे,क्योंकि उन लोगों को लगता था कि कहीं मेरे घर पर तो शरण लेने नहीं आयेंगे।सबसे बड़ी बदनसीबी तो यह थी कि इस बरसात ने तो इनके भोजन पानी के लिये रखे गये अन्न को भी अपनी आगोश में लेकर मटियामिट कर दिया।
इनकी बदनसीबी ने इनके जीवन पर खुलकर तांडव नृत्य करने का प्रयास किया।यह बात इनके छोटे पुत्र के कानों तक पहुँची,जो कि परिवर्तन का एक भू-चाल लेकर आया और बरसात के दिनों में ही इन्होंने मकान बनाने के लिये तरी कटवाकर मकान बनाना प्रारंभ कर दिया। देखते-ही- देखते सभी सुख-सुविधा से युक्त एक सुन्दर मकान का निर्माण हो गया तथा इनकी जिन्दगी में एकाएक परिवर्तन आ गया जिसे देखकर लोगों को महसूस हो रहा था कि आखिर एकाएक यह चमत्कारिक परिवर्तन का होना,जीवन में एक बदलाव को दर्शित करता है।
लेकिन एक लेखक तथा शिक्षक होने के नाते मुझे यह लगता है कि इस प्रकार का परिवर्तन किसी ने दान के रूप में नहीं दिया है,किसी ने एहसान नहीं किया है,बल्कि यह सब कुछ मेहनत के फला-फल प्राप्त हुआ है।
इसलिए किसी विद्वान ने कहा है कि “परिश्रम वह कुंजी है तो सफलता का द्वार खोलती है”।इसलिए जीवन में लगातार परिश्रम कीजिये,परिस्थित से संघर्ष कीजिये,सफलता आपके कदमों को चूमेगी।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार “विनोद”प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय विद्यालय पंजवारा,बांका(बिहार)