शीशे वाली लड़की (डर से आत्मविश्वास तक की यात्रा) : अवधेश कुमार

करिश्मा नाम की एक लड़की थी, जो पढ़ाई में ठीक थी लेकिन सबके सामने बोलने से डरती थी। उसे लगता था कि लोग उसकी हंसी उड़ाएँगे। उसे करियट्ठी शब्द समाज में सुनकर बहुत बुरा लगता था । हमेशा रंगभेद की शिकार लड़की सबसे ज्यादा होती है , इसलिए उसे डर बना रहता था हमेशा कोई कुछ बोल न दे ।
क्लास में जब भी टीचर कोई सवाल पूछते, वो सही जवाब जानकर भी चुप रह जाती।
धीरे-धीरे वो खुद से ही हार मानने लगी। घर आकर वो अक्सर आईने के सामने खड़ी होकर कहती—
“मैं सुंदर नहीं हूं, मैं कमजोर हूं, मुझमें कुछ खास नहीं…”एक दिन उसकी दादी ने ये सुना। उन्होंने मुस्कुराकर कहा,
“बेटी, अगर शीशा तेरी कमजोरी दिखा सकता है, तो वही तेरी ताकत भी दिखा सकता है।
कल से इसमें खड़ी होकर खुद से कहना— ‘मैं अद्वितीय हूं, मैं कर दिखाऊंगी।’”
शुरू में करिश्मा को अजीब लगा, पर दादी के कहने पर उसने कोशिश शुरू की।
हर सुबह वो आईने में खुद से बोलती—
“मैं डरपोक नहीं, मैं बहादुर हूं। मैं कर सकती हूं।”धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास लौट आया। वो स्कूल की वाद-विवाद प्रतियोगिता में उतरी, जहां उसने शुरुआत में कांपा ज़रूर, लेकिन खत्म उसी ने जोश से किया।
उसके बाद वह कई प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगी, हार-जीत की परवाह किए बिना।तीन साल बाद वही करिश्मा अपने कॉलेज की बेस्ट डिबेटर बनी।
अब वह टीचर बनकर छोटे बच्चों को सिखाती है—
“आईना कभी झूठ नहीं बोलता, उसमें वही दिखता है जो तुम देखना सीख लेते हो। खुद को नकारना बंद करो, खुद को अपनाओ।”
👉सीख:
जो डर को पहचान लेता है, वही उसे हरा सकता है।
हारने से पहले अगर खुद पर विश्वास हो जाए,
तो जीत तय है।
प्रस्तुति – अवधेश कुमार
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय रसुआर , मरौना , सुपौल

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