अपना कर्तव्य समझकर करें हर कार्य-प्रमोद कुमार

अपना कर्तव्य समझकर करें हर कार्य

          प्राचीन समय की बात है एक राजा था। उसे राजा बने हुए बहुत साल हो गया था। इसलिए राज्य संभालने में उसे कोई परेशानी नहीं आई। फिर एक बार अकाल पड़ा। उस साल लगान न के बराबर आया। राजा को यही चिंता लगी रहती कि खर्चा कैसे घटाया जाए ताकि काम चल सके। उसके बाद यही आशंका रहने लगी कि कहीं इस बार भी अकाल न पड़ जाए। उसे पड़ोसी राजाओं का भी डर रहने लगा कि कहीं हमला न कर दें। एक बार उसने कुछ मंत्रियों को उसके खिलाफ षडयंत्र रचते भी पकड़ा था। राजा को चिंता के कारण नींद नहीं आती। भूख भी कम लगती। शाही मेज पर सैकड़ों पकवान परोसे जाते, पर वह दो-तीन कौर से अधिक न खा पाता। राजा अपने शाही बाग के माली को देखता था। जो बड़े स्वाद से प्याज व चटनी के साथ सात-आठ मोटी-मोटी रोटियाँ खा जाता था। रात को लेटते ही गहरी नींद सो जाता था। सुबह कई बार जगाने पर ही उठता। राजा को उससे जलन होती थी।

एक दिन दरबार में राजा के गुरु आए। राजा ने अपनी सारी समस्या अपने गुरु के सामने रख दी। गुरु बोले वत्स यह सब राज-पाट की चिंता के कारण है इसे छोड़ दो या अपने बेटे को सौंप दो तुम्हारी नींद और भूख दोनों वापस आ जाएगी। राजा ने कहा नहीं गुरुदेव वह तो पाँच साल का अबोध बालक है। इस पर गुरु ने कहा ठीक है फिर इस चिंता को मुझे सौंप दो। राजा को गुरु का सुझाव ठीक लगा। उसने उसी समय अपना राज्य गुरु को सौंप दिया। गुरु ने पूछा अब तुम क्या करोगें। राजा ने कहा कि मैं व्यापार करूँगा। गुरु ने कहा राजा अब यह राजकोष तो मेरा है। तुम व्यापार के लिए धन कहाँ से लाओगे। राजा ने सोचा और कहा तो मैं नौकरी कर लूँगा। इस पर गुरु ने कहा यदि तुमको नौकरी ही करनी है तो मेरे यहाँ नौकरी कर लो। मैं तो ठहरा साधू, मैंं आश्रम में ही रहूंगा लेकिन इस राज्य को चलाने के लिए मुझे एक नौकर चाहिए। तुम पहले की तरह ही महल में रहोगे। गद्दी पर बैठोगे और शासन चलाओगे, यही तुम्हारी नौकरी होगी। राजा ने स्वीकार कर लिया और वह अपने काम को नौकरी की तरह करने लगा। फर्क कुछ नहीं था काम वही था, लेकिन अब वह जिम्मेदारियों और चिंता से लदा नहीं था। कुछ महीनों बाद उसके गुरु आए। उन्होंने राजा से पूछा कहो तुम्हारी भूख और नींद का क्या हाल है? राजा ने कहा- मालिक अब खूब भूख लगती है और आराम से सोता हूँ।

गुरु ने समझाया देखा सब पहले जैसा ही है लेकिन पहले तुमने जिस काम को बोझ की गठरी समझ रखा था, अब सिर्फ उसे अपना कर्तव्य समझ कर रहे हो। हमें अपना जीवन कर्तव्य करने के लिए मिला है। किसी चीज को जागीर समझकर अपने ऊपर बोझ लादने के लिए नहीं।

सीख:- मनुष्य के काम कोई भी हो चिंता उसे और ज्यादा कठिन बना देती है। जो भी काम करें उसे अपना कर्तव्य समझकर ही करें। ये नहीं भूलना चाहिए कि हम न कुछ लेकर आए थे और न कुछ लेकर जाएँगे।

प्रमोद कुमार
प्रखण्ड शिक्षक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय लोहरपुरा
नवादा, बिहार।

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