डी.के. हॉस्पिटल पूर्णियां की दूसरी मंजिल के डायलिसिस वार्ड में मनोज नर कंकाल की तरह मोटे बेड पर लेटा हुआ था । उसके गर्दन से एक पीड़ादायक नेक लाइन बाहर की तरफ निकली हुई थी जो दूसरी तरफ डायलिसिस मशीन से जुड़ा था । डायलिसिस का चक्का घुम रहा था , तो उसकी जिंदगी भी चल रही थी । बग़ल में खड़े लोहे की स्टैंड में खून की बोतल लटकी हुई थी । जिससे थोड़ी- थोड़ी देर पर खून की बूंदें, प्लास्टिक की सफेद पाइप के जरिए लुढ़क कर मनोज के शरीर में प्रवेश कर रही थी । डायलिसिस का समय समाप्त हुआ तो मनोज अपने बेजान जिस्म को संभाल कर बैठना चाहा , मगर सफल नहीं हो सका फिर लड़खड़ा कर वही ढ़ेर हो गया ।
तभी उसकी पत्नी उषा बाहर से दौड़ती हुई डायलिसिस वार्ड में दाखिल हुई और पति को सहारा देकर उसके पीठ को पीछे गद्दे से सटाकर ,उसके बग़ल में बैठ गई । फिर टिफीन से दलिया और रोटी निकालकर मनोज को छोटे बच्चे की तरह खिलाते हुए बोली- “प्रीती के पापा आज आप बहुत सुन्दर लग रहे हैं ।”
मनोज के काले स्याह चेहरे पर कुछ क्षण के लिए फीकी मुस्कान उभर आई बिल्कुल भीषण गर्मी में सिहकती गुमारी हवा की तरह ।
” इलाज के चक्कर में जमीन मत बेचना प्रीती की मां, फिर राजू की पढ़ाई और प्रीती की शादी भी तो है ……। ज़िन्दगी ने ऐन वक्त पर दगा दे दिया । मैं तुम लोगों के लिए कुछ नहीं कर सका प्रीती की मां । मेरी ये बीमारी परिवार के लिए अभिशाप बन गई । मैं तुम लोगों के ऊपर बोझ बन गया हूं, हे भगवान! … बोलते -बोलते मनोज फफक पड़ा।
— चुप रहिए, आपको कुछ नहीं होगा । रानी बनाके रखें है आप हमको, और आपका बेटा-बेटी किसी नौकरीया के बाल-बच्चा से कम है की । पूरे ततमा टोली में इतना रईसी से रहता होगा ,किसी का बाल- बच्चा ?।
— एक छोटा सा ड्राइवरी से बहुत काम किये जमीन लिए , घर बनाए , बच्चों को पढ़ा रहे हैं और क्या चाहिए । आपने हमसब के लिए बहुत कुछ किया है ,एक ही इशारे पर आप हम लोगों के लिए सब कुछ कुर्बान कर देते थे । रात के 12:00 बजे ही क्यों न हो जब भी आपसे कुछ मांगी तो आपने तुरंत लाकर हाजिर कर दिया।
तभी मनोज को एक तेज हिचकीं आई । मानो समुद्र में कोई ज्वार भाटा उत्पन्न हुआ हो । उषा डर गई उसका खून सर्द हो गया , फिर अगले पल मनोज खुद को किसी तरह नियंत्रित करते हुए बोला — ” प्रीती की मां आज तुम भी बहुत सुंदर लग रही हो ।”
उषा झेंपते हुए बोली — मैं नीचे से आपके लिए दवाई लेकर आती हूं।
उषा बाहर निकली तो मनोज को फिर तेज हिचकीं आई, वो बिछावन पर पैर पटकने लगा । फिर देखते ही देखते कटे मुर्गे की तरह कुछ देर तक झटपटाता रहा , फिर सदा के लिए शांत हो गया।
जबतक में उषा दवाई लेकर आती , तबतक में मनोज इस नश्वर संसार से विदा हो चुके थे । उषा पछाड़ें खाकर गिर गई , उसकी चित्कार से अस्पताल की निर्जीव दरों- दीवारें भी रो पड़ी । उसकी दुनियां उजड़ चुकी थी । उषा के साथ उसकी मांघ की सिन्दूर, कलाई की खनकती चुड़ीयां , पायलों की झनकार भी आंसू बहा रहे थे । ख़ामोश डाक्टर का एक दल औपचारिकता निभाने वार्ड में आया और मनोज को आंशिक जांच के बाद मृत घोषित कर दिया।
मनोज की कीडनी की लम्बी बीमारी ने घर में दरिद्रता को जन्म दिया था । हंसता – मुस्कुराता बाग , विधवा की तरह उजड़ चुका था । मनोज की खरीदी जमीन बिक चुकी थी । उसे बचाने के लिए सूद – ब्याज पर भी पैसे उठाये गए थे । उसका परिवार एक-एक दाने को मोहताज हो गया था । आस-पड़ोस के लोग तो उसके यहां जाना पहले ही छोड़ दिया था । फिर रिश्तेदारों ने भी उससे दूरी बना ली थी , उन्हें डर था कहीं पैसे की मांग न हो जाय। मनोज का घर बिरान बिल्कुल भूत-बंगले की तरह लग रहा था । जो पड़ोसी रोज उसके यहां फोकट की चाय की चुस्की लेने जाया करते थे , वो अब उधर देखना भी मुनासिब नहीं समझते थे ।
खैर अभी सबसे बड़ी समस्या थी मनोज की लाश को हॉस्पिटल से निकालने की ? । हॉस्पिटल की टीम बगैर फीस चुकता किये तत्काल लाश देने के पक्ष में नहीं थे । उषा सबके आगे गिड़गिड़ाई , मिन्नतें की मगर हॉस्पिटल के डाक्टरों का दिल नहीं पसीजा । जैसे बकरे के रोने पर कसाई को कोई फर्क नहीं पड़ता है उसी तरह उषा के रोने पर डाक्टर को भी कोई फर्क नहीं पड़ा। अस्पताल प्रबंधन का अकाउंट डिपार्टमेंट ने आई.सी.यू.बिल, डायलिसिस चार्ज तथा विभिन्न प्रकार के चेकअप से अच्छा खासा बिल निकालकर उषा के हाथ में थमा दिया।
सुबह के दस बजे से शाम के पांच बज गए , उषा लाश के पास रोती-बिलखती रही उसकी आवाजें शहर की चकाचौंध , भाग-दौड़, भारी भीड़ , शोरगुल तथा गाड़ीयों के सायरन के बीच दबकर रह गई।
उधर मनोज का बेटा राजू आंखों में आसूं लिए टोले का हर एक दरवाजा खटखटाया मगर किसी ने मदद नहीं की । अंततः राजू के कुछ दोस्तों ने आसपास के टोले से चंदा इकट्ठा कर हॉस्पिटल भेजवाया तब जाकर उषा को मनोज की लाश मिली।
खबर सुनते हैं मनोज का दोस्त चंदू ड्राइवर भी अपने मालिक से आरजू-मिन्नतें कर उसकी गाड़ी लेकर डी.के. हॉस्पिटल पूर्णियां पहुंचा । डाक्टर से जब चंदू ने मनोज के बारे में पूछा तो डाक्टर डांटते हुए बोले — अरे भाई! कहां था , इतना देर से.. जल्दी लाश हटाओ । ये उषा देवी यहां रो.रो कर सारे मरीज को डरा रही है । पूर्णियां का नम्बर वन हॉस्पिटल है मेरा, ऐसे में तो सारा रेपुटेशन ही खराब हो जाएगा।
चंदू डरते हुए ऊपर गया, मनोज की लाश गाड़ी में डाली गई। उषा और चंदू मनोज रुपी नर कंकाल के साथ घर लौट रहे थे ….।
इधर डायलिसिस टेक्निशियन ने नर्स को आवाज लगाते हुए कहा — ” ए सिस्टर वो जो डैथ हुआ है बैड नम्बर सिक्स का ,उसको जल्दी साफ करवाओ , पूरा कचरा कर दिया है ।” इतना बोलते -बोलते डायलिसिस टेक्निशियन अपने मोबाइल के स्क्रीन को ऊपर की ओर स्क्रोल करने लगा ।
हाल ही में मनोज की बरसी हुई है , राजू परिवार चलाने के लिए घर से कोसों दूर मजदूरी करने चला गया है। इधर आज भी एकांत में उषा मनोज के पूराने कपड़े को पकड़ कर रोने लगती है। उसके आंखों से निकले गर्म आंसू तत्काल उसके ह्रदय को ठंडक पहूंचाती है।
अरविंद कुमार, भरगामा, अररिया