आज भी याद है मुझे वो दिन जब मैंने विद्यालय में योगदान लिया और सभी रसोईया, अभिवावकों ने मुझे देख कर सोचा कि ये कम उम्र की पतली दुबली लड़की बच्चों को क्या संस्कार सिखा पाएगी, सबकी नजरों और फुसफुसाहट ने मुझे कर गुजरने को विवश कर दिया। और वो था बच्चों में नैतिक शिक्षा का विकास करना।
धीरे धीरे मैंने बच्चों से बात करना प्रारंभ किया और प्रतिदिन कुछ समय नैतिक शिक्षा को समर्पित कर दिया। इसे समझना इतना आसान तो नहीं था पर कहा जाता हैं कि शुरुआत तो कही से करनी ही पड़ती है। इसके लिए मैंने बच्चों के सामने खुद को भी वैसा ही प्रस्तुत किया क्योंकि जो वो देखते हैं उसको अनुकरण करते हैं। हमारा बोलना, चलना, पहनावा इन सबका असर उनके चरित्र पर पड़ता हैं। वर्ग कक्ष में उनके लड़ाई झगड़े को उदाहरण द्वारा हल किया और सही गलत में फर्क करना सिखाया। ये भी बताया कि हम जैसा व्यवहार करेंगे वैसा ही हमारे साथ भी होगा। हमारी मीठी वाणी बड़े से बड़ा कार्य करवा भी सकती हैं और रूखी वाणी कार्य बिगाड़ भी सकती हैं। हमारे व्यवहार के कारण ही लोग हमे पसंद और ना पसंद करते हैं। सच का साथ देना है और दिखावे की ओर नहीं जाना है। । बच्चों को सिखाए कि जैसे आप विद्यालय में शिक्षक का सम्मान करें वैसे ही घर जा कर माता, पिता और आस पड़ोस के लोगों का भी सम्मान करें ताकि आप सभी के प्रिय बन जाए।
आज मेरा विद्यालय बदल गया पर मेरे द्वारा सिखाई गई बातें बच्चे आज भी करते हैं। घर से प्रणाम करके निकलते है और विद्यालय में भी सभी गुरुजनों और रसोईया को प्रणाम करते हैं। मैं कहीं भी कभी भी मिल जाऊं तो पैर छू कर प्रणाम करते हैं चाहे कितने ही बड़े हो गए बच्चे।
यह हैं एक शिक्षक की पूंजी, बच्चों को कुछ सिखाने के लिए अपना व्यक्तिव भी वैसा बनाना पड़ता हैं ताकि वे अच्छा अनुकरण कर पाएं ।
नेहा कुमारी ( विद्यालय अध्यापिका)
रा. स. हरावत राज उच्च माध्यमिक विद्यालय, गणपतगंज
जिला – सुपौल