एक छोटा-सा गाँव था — आलोकपुर।
वहाँ के लोग पहले बहुत खुशहाल थे, पर अब गाँव पर अंधकार छाया हुआ था। बिजली नहीं थी, रास्ते गंदे थे, और सबसे बड़ी बात — गाँव के लोग डर और निराशा में जी रहे थे। भ्रष्ट सरपंच ने सबकी मेहनत की कमाई हड़प ली थी।
एक शाम, छोटी दिवाली के दिन, जब सबके घरों में सन्नाटा था, एक घर में एक छोटा-सा दीपक जल उठा। वह घर था सुमन दीदी का — जो गाँव के बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाती थीं। गाँव के लोग बोले – “दीदी, अब दीया जलाकर क्या होगा? अंधकार इतना गहरा है!” सुमन दीदी मुस्कुराईं और बोलीं – “जब समाज अंधकार में डूबा हो, तो एक दीपक भी क्रांति की शुरुआत बन सकता है।”
फिर क्या था — उन्होंने बच्चों को बुलाया और कहा : “आज हम सब मिलकर अपने गाँव की सफाई करेंगे, हर घर में एक दीपक जलाएँगे और कल की मुख्य दीपावली की तैयारी करेंगे।” बच्चे निकल पड़े — कूड़ा उठाया, दीवारें सजाईं, दीए जलाए। धीरे-धीरे गाँव वाले भी जुड़ते गए। देखते ही देखते पूरा आलोकपुर उजाले से चमक उठा।
यह देखकर सरपंच गुस्से में आया — “तुम सब क्या कर रहे हो?” सुमन दीदी ने शांत स्वर में कहा —“हम अन्याय और भय के अंत का उत्सव मना रहे हैं।
सत्य और साहस की जीत ही असली दीपावली है।”
उस दिन गाँव वालों ने निश्चय किया — अब वे डरेंगे नहीं, सच्चाई के साथ खड़े होंगे। और कुछ ही दिनों में नया, ईमानदार नेतृत्व चुना गया।
निलेश कुमार मंडल
10+2th शिक्षक मनोविज्ञान
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय गौरीपुर चान्दन