रिशु जो दस साल का एक बालक था, स्वभाव से काफी शरारती था। रिशु को खाने-पीने में काफी नखरा था। कभी भी वो खाना अच्छी तरह से नहीं खाता था। थोड़ा खाता,थोड़ा फेंकता था। उसके माता-पिता उसकी इस आदत से काफी परेशान रहते थे। वे रिशु को बहुत समझाते परंतु रिशु कुछ नहीं समझता था।
एकदिन रिशु अपने माता-पिता के साथ ट्रेन से कहीं जा रहा था।किसी स्टेशन पर ट्रेन काफी देर से रुकी हुई थी। रिशु खिड़की से बाहर प्लेटफॉर्म पर आने-जाने वालों को देख रहा था तभी उसकी दृष्टि प्लेटफार्म पर बैठी एक भिखारन पर पड़ी । उस भिखारन के गोद में एक छोटा बच्चा था। उस बच्चे के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। वह भिखारन एक थाली में थोड़ा चावल नमक के साथ खा रही थी। बच्चा माँ के गोद में खेल रहा था। रिशु काफी गौर से उस बच्चा को देख रहा था तभी वह छोटा बच्चा सू-सू (मूत्र त्याग) कर देता है जिसका कुछ अंश भिखारन के थाल में भी चला जाता है। भिखारन जो काफी भूखी थी थाली में से सू-सू को गिराकर फिर उस बचे हुए खाने को खाने लगती है। यह देख रिशु अवाक रह जाता है। तभी उसके माता-पिता एक बार फिर से भोजन के महत्व को बताते हैं। अब रिशु अन्न के महत्व को समझने लगा।
कुमकुम कुमारी "काव्याकृति"
शिक्षिका
मध्य विद्यालय बाँक, जमालपुर