जीवन उत्सव है
मानव जीवन पाना सौभाग्य की बात है। इस धरती पर तो बहुत सारे जीवधारी रहते हैं जैसे कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंस, कौआ, तोता आदि। मगर मैं शुक्रगुजा़र हूं ऊपर वाले का जिन्होंने मुझे ये सब न बनाकर इंसान बनाया और खुशियों से भरा संसार दिया। इसलिए हमें सदा खुश रहना चाहिए, लोगों से मिलकर प्यार बांटना चाहिए। हर दिन हर पल हमारे लिए उत्सव के समान है। जीवन सिर्फ उत्सव ही नहीं है बल्कि महोत्सव है या हम यूं कह सकते हैं मानव जीवन का हर पल त्योहारों का त्योहार है। इसलिए हर पल को हमें यादगार बनाना चाहिए।ह
मारा एक पल भी ऐसा न गुज़रे जिसमें हम उत्सव से वंचित रह पाएँ। जब हम हर पल को ही उत्सव में व्यतीत करेंगे तो जिस वक्त हमारी मौत आएगी हम उत्सव के सागर में डुबकी लगा रहे होंगे। वैसे भी हम मौत के वक्त उत्सव क्यों नहीं मनाएं? वह भी हमारे लिए नया ही होगा जिसका जाय़का भी तो हमें चखना है। यह जीवन तो एक किराए का मकान है और हम उसके किराएदार ही तो हैं। जैसे ज़रुरत पड़ने पर एक मकान को ख़ाली करके दूसरे मकान में जाना पड़ता है ठीक उसी तरह जीवन भी है। हमारे शरीर से आत्मा (रूह) निकल जाती है तो हमारा शरीर मृत हो जाता है। हमारा शरीर मरता है आत्मा नहीं, यह सोचकर हमें खुशी होगी कि या तो हमें नया शरीर मिलेगा या फिर मुझे मुक्त रखा जाएगा।
ईश्वर की सृष्टि में कुछ अमंगल नहीं होता। यहां जो होता है सब मंगल ही होता है। जब जन्म की बेला मंगल है तो मृत्यू की बेला भी मंगल है। बस हमारी नज़रों का दोष होता है। जो जिंदा है वह मृतक को स्वार्थ भरी नज़रों से देखता है कि मेरा जो स्वार्थ था इससे अब वह सिद्ध नहीं हो पाएगा। यही सोचकर वह दुखी होता है। लेकिन मरने वाला तो उत्सव में होता है क्योंकि मरने वाले को पता होता है हम नहीं मरते हैं बल्कि हमारा शरीर मरता है। हमारी आत्मा अमर और अजर है।
हमें मानव जीवन जो मिला है उसका भरपूर उपयोग मानव सेवा में होना चाहिए क्योंकि मनुष्य जन्म से बेहतर कोई जन्म ही नहीं है। हमें एक-दूसरे से हमेशा प्रेम परस्पर रखना चाहिए। जब हमारे व्यवहार से किसी को आजीवन ठेस ना पहुंची हो तब जाकर हमारा मानव जीवन सार्थक होता है। हमारा हर शाम, हर काम और हर नाम में उत्सव होना चाहिए तभी हम जीवन उत्सव हो सफल बना पाएंँगे।
एम० एस० हुसैन “कैमूरी”
उत्क्रमित मध्य विद्यालय
छोटका कटरा
मोहनियां कैमूर बिहार
टीम टीचर्स आफ बिहार का सहृदय आभार 🙏🙏🙏
बहुत अच्छी रचना कैमूरी साहब