- ईश्वर प्रेरित कार्य करने से, ईश्वर-आज्ञा तथा माता-पिता, गुरुजनों की आज्ञा का सर्वतोभावेन पालन करने से। अपनी अन्तरात्मा की आज्ञा का पालन करने से।
- निस्वार्थ भाव एवं समर्पित भाव से लोक-मंगल या राष्ट्र-हित में कार्य करने अथवा किंचिन्मात्र भी प्रयास करने से।- स्वामी विवेकानंद के शब्दों में, “सफलता की मात्रा नि:स्वार्थता की मात्रा पर निर्भर करती है।”
- स्वान्त:सुखाय(अपने भीतर की खुशी, भीतर के सुख व संतोष के लिए) शुभ व श्रेष्ठ कार्य करने से, केवल उससे दूसरों की हानि न हो ।- स्वान्त:सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा- तुलसीदास जी ने अपने भीतर की खुशी, भीतर के सुख व संतोष के लिए श्रीरघुनाथजी की गाथा श्रीरामचरितमानस नामक महाकाव्य के रूप में लिखी, जिससे सबका कल्याण हो रहा है। “आत्मसंतुष्टि से बड़ी कोई उपलब्धि नहीं।”
- देव-पितर्, अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए कोई कार्य करने से।- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगाजी को धरती पर लाया, किन्तु गंगाजी के सेवन से, नाम-सुमिरन से सबका कल्याण हो रहा है।
- अपने मुख्य कार्य से प्रेम करने से – अपने मुख्य कार्य से प्रेम करने से, निष्ठा और समर्पण भाव रखने से किसी न किसी रूप में समाज का भी हित होता है, आप प्रेरणास्रोत बनते जाते हैं।
- शुभ व श्रेष्ठ विचारों से।- मुंशी प्रेमचंद के शब्दों में, “जीवन विचारों से ही बनता है। विचार वही टिकते हैं, जो आत्मा से निकलते हैं।”
- जीवन वही धन्य है, जो अपनी प्रगति के साथ-साथ परोपकारमय है।
- सदा शुभ व श्रेष्ठ सोचने, शुभ बोलने, शुभ देखने-सुनने, शुभ व श्रेष्ठ करने, अपने-आप में प्रसन्न रहने से।
9.. ईश्वर में आस्था रखते हुए आत्मभाव में स्थित हो स्थितप्रज्ञ होकर कर्म-फल के प्रति अनासक्त होकर निरंतर शुभ व श्रेष्ठ कर्त्तव्यकर्म करने से।- निष्काम कर्मयोग का पालन करने से। - महान से महान कार्यों में कर्तापन के अभिमान से रहित होकर निमित्त मात्र बनकर भाग लेने से।
- ईश्वर, धर्म, लोक और वतन के हित में आत्मत्याग की भावना रखने से, सेवा-भाव रखने से आदि ।
- महापुरुषों के पंथों का अपने भाव से अनुसरण करने से।- महाजनो येन गत: स पन्था: ।- मेरे गुरुदेव डॉ कृपाशंकर ओझा सर कहते थे, “किसी एक के विचारों के अनुसार चलना अनुकरण है, किन्तु सभी की अच्छी बातों को लेकर अपना कुछ देना शोध है।”
- जहां से जो शिक्षा अथवा ज्ञान मिल जाए, उसे ग्रहण कर लेने से।
- अपने कुल-आचार का पालन करने, अपने नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने से।
- सम्पूर्ण मानवता के प्रति सेवा-भाव रखने से।
- पर्यावरण-संरक्षण, वृक्षारोपण, वृक्ष-संरक्षण आदि करने से। पर्यावरण-हित में कार्य करने से।
- ईश्वर-प्रदत्त विधाओं के सदुपयोग से। आदि ।
लोक-मंगल तथा राष्ट्र-हित में किया गया किंचित् प्रयास भी व्यर्थ नहीं जाता। हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में, “ईमानदारी और बुद्धिमानीपूर्वक किया गया कार्य व्यर्थ नहीं जाता।”
गिरीन्द्र मोहन झा
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