भाई और बहन दोनों एक दूसरे की रक्षा का लें संकल्प
जिस देश मे भाइयों को देख बहन के मुख से हमेशा उसकी सलामती की दुआ ही निकले तो वहाॅं रक्षाबन्धन का पर्व और भी बहनों के मन मे उत्साह भर देती है। भारतीय समाज का यह पवित्र त्योहार भाई-बहन के रिश्तों को एक धागा मे बांधकर रखती है। बहनें, भाइयों को रक्षा सूत्र बांधकर उनसे अपनी रक्षा की इच्छा रखती है। विश्वास के बन्धन का प्रतीक यह त्योहार यदि व्यापक परिपेक्ष्य मे मनाया जाए तो निश्चय ही यह समाज को उत्कृष्ठ धरातल पर बैठा देगा और वसुधैव कुटुंबकम की भावना मजबुत होगी।भाई-बहन के बीच नेह-उत्सव के रुप मे स्थापित हो चुके इस त्योहार के आरम्भ में ही रक्षा का मूल भाव निहित होती है। जब पुरोहित अपने यजमान के यहाॅं पूजा कराते हैं तो पहले उन्हे रक्षा सूत से बांधते थे।
जब पूर्व के इतिहासों को देखा जाए तो युद्ध के समय भगवान कृष्ण ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारा था तब कृष्ण के बाएँ हाथ की अँगुली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रौपदी बहुत दुःखी हुई। द्रौपदी से रहा नहीं गया और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अँगुली में बाँधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन स्वीकार लिया। वर्षो बाद जब पांडव द्रौपदी को जुए में हार गए और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा तब कृष्ण ने उनकी लाज बचाई थी।
राखी शब्द संस्कृत के “रक्षा” शब्द से बना है और बंधन का अर्थ बांधने से है। यानी रक्षाबंधन सिर्फ धागों का त्योहार नहीं है बल्कि यह एक विश्वास और प्यार का त्योहार है जो हमें अपने बंधन में जुड़े रहने का संदेश देती है। रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के रक्षा करने का त्योहार है यानी बहन अगर अपने भाई को राखी बांधती है तो वो भी संकल्प ले कि भाई की रक्षा करना हमारा भी फर्ज है। समाज के लोगो का भी दायित्व बनता है कि वो महिला और पुरुष को एक नजरिए से देखें जिससे एक बेहतर समाज का निर्माण हो। एकतरफा समर्थन बहुत घातक होती है।
आज अनायास यजुर्वेद की वो पंक्ति याद आ रही है जिसमें कहा गया है कि यदि सबका मन कल्याणकारी संकल्पों वाला हो जाए तो हिंसा और अपराध समाज से स्वत: खत्म हो जाएंगे। हम महिला और पुरुषों को समाज के प्रति एक समदर्शी सोच का विकास करना होगा। जिस तरह महिलाओ को भी सशक्त होने की बात करते हैं उसी नजरिए से पुरुष को भी देखना होगा। महिला को पुरुष एवं पुरुष को महिला की रक्षा करना और उत्थान का संकल्प लेना होगा। आज जरुरत है सकारात्मक सोच के साथ महिला और पुरुष समाज के प्रति रक्षा संकल्प लेने और रक्षाबन्धन के इस उत्सव को परिवार के स्तर मात्र से ऊपर उठकर राष्ट्रीय उत्सव मनाये जाने की तभी हम सुन्दर और सशक्त समाज का निर्माण कर सकते हैं।
✍️शिवम प्रियदर्शी
प्रशिक्षु, प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय, सोरहत्था