पिंजड़ा
संध्या जयनगर (मधुबनी जिला) में स्थित मध्य विद्यालय की छात्रा थी। वर्ग कक्ष में हमेशा प्रथम स्थान रखती थी। उसके माता-पिता मधु पालन का रोजगार करते थे। एक दिन संध्या एवं उसके माता-पिता हरिहर क्षेत्र मेला देखने सोनपुर (बिहार) गए। वे लोग सोनपुर मेला के चिड़िया बाज़ार में घूम रहे थे। संध्या को तोता पालने का बहुत शौक था। संध्या अपने माता-पिता से तोता खरीदने की ज़िद करने लगी। उसके माता-पिता ने पिंजड़े में बंद एक तोता खरीद दिया। संध्या पिंजड़े में बंद तोते को घर ले आईं। प्रत्येक दिन संध्या सुबह-शाम तोते को चना खूब खिलाती थी। तोता भी पिंजड़े के अंदर से संध्या-संध्या बोला करता था। तोता हमेशा पिंजड़े से बाहर निकलकर घूमना चाहता था परंतु वह तो पिंजड़े में कैद था। एक दिन संध्या की तबीयत खराब हो गई। डॉक्टर ने संध्या को सलाह दिया कि तुम समय पर दवा खाओ और घर से बाहर नहीं जाओगे। संध्या के माता-पिता उसे शयनकक्ष से बाहर नहीं निकलने देते थे। वह शयनकक्ष के अंदर बिस्तर पर लेटी रहती थी। जब-जब वह बाहर निकलना चाहती थी तब-तब उसके माता-पिता संध्या को डांट कर शयन कक्ष में ही रहने को सलाह देते। संध्या की तबीयत धीरे-धीरे ठीक होने लगी। वह अंदर ही अंदर सोचने लगी कि मैं पाँच दिनों से शयन कक्ष से बाहर नहीं निकल रही हूँ और लगता है कि जेल में कैद हूँ। संध्या चुपके से तोते के पास आ गई और बोली मेरा तोता तो हमेशा पिंजड़े में कैद रहता है। तोता भी बार-बार बाहर निकलने की कोशिश करता होगा। मनुष्य तोते को क्यों पिंजड़े में बंद कर गुलाम बना लेता है? गुलाम बनाने की संस्कृति कब खत्म होगी? संध्या पिंजड़े में कैद तोते को आज़ाद कर देती है। तोता आकाश में उड़ता हुआ बोलता है- शुक्रिया संध्या!
सुधांशु कुमार चक्रवर्ती
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
जाफराबाद खो कसा बुजुर्ग
देसरी वैशाली