लघुकथा
”गांव में जो सबसे बढ़कर धर्मनिष्ठ होगा, आज की सभा में वे ही पुरस्कार के हकदार होंगे।” ग्राम-समिति की उद्घोषणा सुनते ही रात-दिन ईश्वर नाम की माला जपने वालों के अलावा मंदिर के पुजारी बुझन भगत के मन में भी लड्डू फ़ूटने लगे। बुझन को यह पूरा विश्वास है कि उससे बढ़कर धर्मनिष्ठ गांव में दूसरा नहीं है। वह नित्य घंटों ईश पूजा के बाद गांव वालों को धर्म का ज्ञान भी बांचता रहता है। .
… लेकिन ग्राम-समिति के मंच के नेपथ्य से जब पुरस्कार के लिए बुझन के नाम के साथ भैरव के नाम की भी चर्चा होने लगी तो बुझन भड़क गया , ” भैरव में कौन-सा ऐसा गुण है जो समिति वाले उसे पुरस्कृत करेंगे? पैर से दिव्यांग और अनपढ़ तो है ही, कभी वह पूजा-पाठ भी नहीं करता है। निर्णायक मंडल का फैसला मेरे ही हक में आवेगा ,देख लेना भक्तों।” तभी ग्राम समिति के अध्यक्ष महोदय ने कहना प्रारंभ किया – ” भाइयों…बहनों, समिति के सदस्यों ने काफी सोच-विचार कर भैरव को इस पुरस्कार के लिए चयन किया है। इसलिए कि अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा-सुश्रूषा करने वाला गांव में इससे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है।”
संजीव प्रियदर्शी
फिलिप उच्च विद्यालय
बरियारपुर, मुंगेर