सावित्री बाई फुले-सुरेश कुमार गौरव

Suresh

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सावित्री बाई फुले

               📖 महान शिक्षा नेत्री और समाज सुधारक सावित्री बाई ने फातिमा शेख के साथ 1 जनवरी 1888 को पुणे, महाराष्ट्र में पहला शिक्षा मंदिर, स्कूल खोला था।

📖 जोतिराव फुले, सावित्री बाई फुले के जीवनसाथी होने के साथ ही उनके शिक्षक भी बने। जोतिराव फुले और सगुणा बाई की देख-रेख में अहमदाबाद में औपचारिक प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। पुणे के अध्यापक प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण भी हासिल किया।

📖 इस प्रशिक्षण स्कूल में उनके साथ फातिमा शेख ने भी अध्यापन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। यहीं इन दोनों की गहरी मित्रता हुई। फातिमा शेख, उस्मान शेख की बहन थीं जो जोतिराव फुले के घनिष्ठ मित्र और सहयोगी थे। बाद में इन दोनों ने एक साथ ही अध्यापन का कार्य भी किया।

📖 फुले दंपत्ति ने 1 जनवरी 1848 को लड़कियों के लिए पहला स्कूल पुणे में खोला। जब 15 मई 1848 को पुणे के भीड़वाडा में जोतिराव फुले ने स्कूल खोला तो वहां सावित्री बाई फुले मुख्य अध्यापिका बनीं।

📖 इन स्कूलों के दरवाजे सभी जातियों के लिए खुले थे। जोतिराव फुले और सावित्री बाई फुले द्वारा लड़कियों की शिक्षा के लिए खोले जा रहे स्कूलों की संख्या बढ़ती जा रही थी। इनकी संख्या चार वर्षों में 18 तक पहुंच गई। लड़कियां और लोग शिक्षा के प्रति जागरुक होने लगे थे।

📖 फुले दंपत्ति के ये कदम अभिवंचित वर्ग के लोगों को शिक्षा नहीं होने देने के पक्षधरों को सीधी चुनौती थी। इससे उनके एकाधिकार को गहरी चुनौती मिल रही थी जो समाज पर उनके वर्चस्व को तोड़ते जा रहा था।

📖 पुरोहितों ने जोतिराव फुले के पिता गोविंदराव पर कड़ा दबाव बनाया। दुर्भाग्य कि गोविंदराव, पुरोहितों और समाज के सामने कमजोर पड़ गए। उन्होंने जोतिराव फुले से कहा कि या तो अपनी पत्नी के साथ स्कूल में पढ़ाना छोड़ें या घर। एक इतिहास निर्माता नायक की तरह दुःखी और भारी दिल से जोतिराव फुले और सावित्री बाई फुले ने खास वर्ग और महिलाओं की मुक्ति के लिए घर छोड़ने का निर्णय लिया।

📖 परिवार से निकाले जाने बाद सामंतवादी और जातिगत भेदभाव करने वाली शक्तियों ने सावित्री बाई फुले का पीछा नहीं छोड़ा। फिर भी उनका लक्ष्य दृढ़संकल्पित था।

📖 जब सावित्री बाई फुले स्कूल में पढ़ाने जाती तो उनके ऊपर गांव वाले पत्थर और गोबर फेंकते। सावित्री बाई रुक जाती और उनसे विनम्रतापूर्वक कहती, ‘मेरे भाई, मैं तुम्हारी बहनों को पढ़ाकर एक अच्छा कार्य कर रही हूं। आपके द्वारा फेंके जाने वाले पत्थर और गोबर मुझे रोक नहीं सकते बल्कि इससे मुझे प्रेरणा मिलती है। ऐसे लगता है जैसे आप फूल बरसा रहे हों। मैं दृढ़ निश्चय के साथ अपनी बहनों की सेवा करती रहूंगी। मैं प्रार्थना करूंगी की भगवान आप को सोचने समझने की अच्छी शक्ति और विचार दें।’

📖 गोबर से सावित्री बाई फुले की साड़ी गंदी हो जाती थी, इस स्थिति से निपटने के लिए वह अपने पास एक साड़ी और रखती थीं। वह स्कूल में जाकर साड़ी बदल लेती थीं।

📖 शिक्षा के साथ ही फुले दंपत्ति ने समाज की अन्य समस्याओं की ओर ध्यान देना शुरू किया। सबसे बदतर हालत विधवाओं की थी। ये ज्यादातर उच्च जातियों की थीं। बाल विवाह पर भी उनका समाज सुधार जारी रहा। कम उम्र के कारण लड़कियों के जीवन जीने की स्वतंत्रता प्रभावित रही थी। इसीलिए उन्होंने इस दिशा में अपनी ओर से पूरा प्रयास जारी रखा। इस दिशा में उन्हें अपेक्षित सफलता भी मिली।

📖 भारत की प्रथम महिला शिक्षिका ने प्रथम खोले गए लड़कियों के स्कूल की शिक्षिका के रुप में कार्य कर पूरे भारत में शिक्षा के प्रति और समाज की रुग्ण मानसिकता भरी सोच पर गहरी चोट थी। धीरे-धीरे इन दोनों के शिक्षा के अलख जगाने की जोत मानो चल पड़ी।

📖 सावित्री बाई फूले और फातिमा शेख ने शिक्षा के लिए खासकर, महिलाओं की शिक्षा के लिए अपने स्तर से एक ऐसी मजबूत नींव रखी जो धीरे-धीरे संपूर्ण भारत में शिक्षा पाने के खास वर्ग के एकाधिकार को तोड़ चुका था। इनके शिक्षा के प्रति खासकर महिला शिक्षा के प्रति किए गए कार्यों को सदैव याद रखा जाएगा। सरकार को चाहिए कि इनके किए उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए तथा इनकी स्मृति में शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा भी शुरु की जाए।
भारत की महान शिक्षा नेत्री को कोटिशः नमन।🙏

✍️सुरेश कुमार गौरव

पटना बिहार

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