हमारे जीवन में शिक्षक का बहुत हीं बड़ा स्थान है। शिक्षक अर्थात जिसमें शिक्षा हो, क्षमा हो करूणा हो।इस संसार में शिक्षक का पद सर्वोच्च है ,यह बातें शास्त्र सम्मत भी हैं।
जब हम मां के गर्भ में रहते हैं तब हम हाथ पैर हिलाते हैं, सांस लेते हैं, घूमते फिरते हैं। संसार की बातें भी सुनते हैं वहां हम परमात्मा रूपी शिक्षक के सानिध्य में सब करते हैं और जब जन्म होता है तब परिवार रूपी प्रथम पाठशाला में माता पिता रूप में गुरु हमें अच्छी आदतें, शिष्टाचार सुचि आचार, प्रेम आदर सम्मान संस्कृति और संस्कार की सीख देती है। हम प्रकृति रूपी शिक्षक जैसे फूल, भौंरें, वृक्ष, हवा, जल, आकाश, धुंआ, लता, नदी, पहाड़, झरनें, जलधारा, चंद्र, सूर्य, पृथ्वी आदि से ऐसी-ऐसी बातें सीखते हैं जो हमें मानवता के उच्च शिखर पर ले जाती है। जितने भी बड़े-बड़े सफल लोग हुए, महापुरुष एवं महाज्ञानी हुए सबने गुरु की महत्ता का बखान किया है।
‘गु’ का अर्थ होता है- अन्धकार और ‘रू’ का अर्थ होता है- प्रकाश। जो हमारे अन्दर के अज्ञान रूपी अन्धकार को हटाकर हममें ज्ञान रूपी प्रकाश भरते हैं वह गुरु होते हैं। शिक्षक हमें “स्व” से परिचय करवाते हैं। शिक्षक सिर्फ शिक्षक नहीं वह बच्चों के सबसे अच्छे मार्गदर्शक और मित्र भी होते हैं। बच्चे राष्ट्र के भविष्य होते हैं तो शिक्षक राष्ट्र निर्माता। शिक्षक बच्चों के अन्दर नैतिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का संचार करते हैं। वह बच्चों को सिर्फ पाठ नहीं पढ़ाते बल्कि विभिन्न समस्याओं एवं चुनौतियों का सामना करने, समस्याओं का समाधान ढूंढने, तर्क करने, चिंतन करने एवं सही समय पर उचित निर्णय लेने हेतु सक्षम बनाते हैं।
बच्चे शिक्षक का अनुकरण करते हैं। वह सबसे ज्यादा अपने शिक्षक से प्रभावित होते हैं और उन्हीं के तरह बनना चाहते हैं। इसलिए हम शिक्षकों को सदाचारी होना चाहिए। हम समय के पाबंद हों। हमारा चरित्र साफ और पवित्र होना चाहिये। हम अच्छे रहेंगे तभी हम अच्छे समाज का निर्माण कर पायेंगे। शिक्षक को स्वाध्यायी एवं अपने पेशे से प्रेम होना चाहिए। सीखने की कोई उम्र नहीं होती है। पढ़ना, चिंतन करना, नवाचार का प्रयोग, नये उपागम, नयी तकनीक नये शोध से हम बच्चों के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य प्राप्त करने में निश्चित रूप से सफल हो जायेंगे। गुरु और पारस में बस फर्क इतना होता है कि पारस के स्पर्श से लोहा कुंदन बन जाता है और गुरु अपने समान या अपने से भी विशेष अपने शिष्यों को बना देते हैं।
एक शिक्षक के रूप में बच्चों के प्रति हमारा बहुत बड़ा कर्तव्य है जिसे निष्ठापूर्वक निभाना हम सबकी जिम्मेदारी है। बच्चे विभिन्न परिवेश, समाज से आते हैं। विविधता हमारी ताकत है। विविधतापूर्ण माहौल में सबके साथ मिलकर रहना एक समतामूलक समाज की स्थापना करना बच्चों के उत्तम चरित्र का निर्माण करना उन्हें स्व से अवगत कराना यही हमारा ध्येय है।
हमारे देश के प्रथम उपराष्ट्रपति डॉo सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने एक शिक्षक के पद से राष्ट्रपति तक का सफर तय किया। आज उनके जन्मदिन को हम सभी शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं।
डॉo सर्वपल्ली राधाकृष्णन का कहना था -” शिक्षक देश के सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क होते हैं और उन्हें छात्रों में नैतिक बौद्धिक व आध्यात्मिक मूल्यों का संचार करना चाहिए । उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य एक स्वतंत्र और रचनात्मक व्यक्ति का निर्माण करना है जो प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर सके। शिक्षकों का कार्य केवल ज्ञान देना नहीं बल्कि छात्रों में जिज्ञासा, आलोचनात्मक सोच और मानवतावाद का विकास करना है।”
हम सभी डॉo सर्वपल्ली राधाकृष्णन के आदर्शों पर चलें उनकी शिक्षा एवं ज्ञान को अपने जीवन में उतारें,बच्चों को सिखाने हेतु सदा तत्पर रहें ,शिक्षक दिवस यही याद दिलाता है।
महाजनों येन गत: स: पन्था:। अर्थात महापुरुष जिस रास्ते से गये हैं वही रास्ता है हमें उसी पर चलना है।अंत में समस्त गुरूजनों को मेरा सादर प्रणाम।
मनु कुमारी, विशिष्ट शिक्षिका, प्राथमिक विद्यालय दीपनगर बिचारी ,राघोपुर ,सुपौल ।