वर्तमान परिदृश्य में नैतिक शिक्षा का महत्व : अमृता कुमारी

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“शिक्षा जीवन की तैयारी नहीं है शिक्षा स्वयं जीवन है”- जॉन डेवी


आज हमारे देश में सच्चरित्रता की बहुत कमी दिखती है जहां तक नजर जाती है लोगों में स्वार्थपरता ही दिखाई देती है। 
सरकारी और निजी सभी स्तरों पर लोग हमारे मन में विष घोलने का काम कर रहे हैं। 
इन सब का कारण हमारे स्कूल कॉलेज में नैतिक शिक्षा का लुप्त होना है
नैतिक शिक्षा का अभिप्राय "नीति संबंधित शिक्षा" होता है। 
व्यापक अर्थ में  विद्यार्थियों को नैतिकता ईमानदारी, सदाचरण,सहनशीलता विनम्रता तथा प्रमाणिकता जैसे गुणों को प्रदान करना ही नैतिक शिक्षा है। 
मनुष्य को मनुष्य बनाने में नैतिक शिक्षा की अहम भूमिका होती है।
        सामाजिक क्षेत्र में बच्चों को सही और गलत अंतर करने , सहानुभूति विकसित करने तथा उसे अपने अच्छे कार्यों को करने का प्रभाव सकारात्मक रूप से देखने में इस शिक्षा का गहरा प्रभाव पड़ता है। 
विद्यालय बच्चों के सर्वांगीण विकास का मुख्य माध्यम है। यहां बच्चे अपने सहपाठियों तथा शिक्षकों से व्यवहारिक जीवन के कई पहलुओं को सीखते हैं। जो उनके भविष्य निर्माण में मदद करती है। आगे चलकर व्यावसायिक या सामाजिक जिम्मेदारियों को वहन करना इनके लिए आसान हो जाता है।
वर्तमान समय में गुरु शिष्य की परंपरा अपने मूल स्तर से भटकती जा रही है।
 दोनों के रिश्तों में सम्मान का स्थान सिर्फ सफलता प्राप्ति का ध्येय ले चुका है।
 विद्यार्थी येन केन प्रकार से परीक्षा में उच्च अंक लाने को प्रयासरत रहते हैं इस क्रम में वह आधुनिक शिक्षा पद्धति और सामग्री का उपयोग बढ़ चढ़कर करते हैं
 लेकिन शिक्षकों और छात्रों को यह ध्यान रखना चाहिए कि 
 "विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् । 
   पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥"
अर्थात विद्या मनुष्य को विनम्रता देती है विनम्रता से योग्यता प्राप्त होती है योग्यता से धन मिलता है और धन  से व्यक्ति धार्मिक बनता है जिसे उसे सुख की प्राप्ति होती है। 
ऐसे में जरूरी है कि विद्यार्थी को ऐसी शिक्षा दी जाए जो उसे विषय- वस्तु के ज्ञान के साथ-साथ मानवीय मूल्य ,सिद्धांतों और संस्कृति परंपरा को समझने में मदद करें इसलिए महान विचारक *लॉरेंस कोहलबर्ग* ने शिक्षा के मनोविज्ञान क्षेत्र में नैतिकता को ही केंद्रीय विषय बनाया। 
            मेरा मानना है कि आज पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है जो बच्चों को *संस्कार को आधार बनाकर आधुनिकता के साथ जोड़ सके।*
 उनके नैतिक मूल्यों का ज्ञान इतना प्रभावी हो कि वह कठिन समय में भी गलत कार्य करने को अग्रसर ना हो। हाल में नेपाल में जेन जेड का प्रदर्शन कहीं ना कहीं नैतिक मूल्यों में कमी का प्रमाण था। 
 समाज में व्याप्त बेरोजगारी, गरीबी , अराजकता तथा भ्रष्टाचार व्यक्ति को गलत कृत्य करने को प्रोत्साहित करती है। यदि प्रारंभिक शिक्षा में ही नैतिक मूल्यों को समझ लिया गया तो ऐसे संघर्ष की घड़ी में व्यक्ति धैर्य रखते हुए समाजिक आदर्शों को पकड़े रहने में सक्षम हो सकता है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि नैतिक शिक्षा मानव व्यक्तित्व के उत्कर्ष का, संस्कारित जीवन तथा समस्त समाज हित का प्रमुख साधन है. इससे भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता, प्रमाद, लोलुपता, छल कपट तथा असहिष्णुता आदि दोषों का निवारण होता है। अतः आवश्यक है कि आज छात्रों को विज्ञान, कला और वाणिज्य के साथ साथ नैतिक शिक्षा भी प्रदान की जाए।

अमृता कुमारी 
विद्यालय अध्यापक 
उच्च माध्यमिक विद्यालय बसंतपुर, सुपौल
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