यात्रा लिंगराज मंदिर की- अजय कुमार मीत

डॉ अजय कुमार

कलिंग,यह शब्द सुनते ही बिहारी होने के कारण मेरे मानस पटल पर इतिहास के कालखंड का वह पन्ना अनायास ही खुल जाता है। जिसमें एक सम्राट जिसका साम्राज्य पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में वर्तमान म्यांमार तक था किन्तु उसकी राजधानी से ठीक दक्षिण में स्थित एक छोटे से राज्य ने उसे कभी सम्राट स्वीकार नहीं किया।जी हाँ, मैं भारतीय इतिहास के महान सम्राट अशोक की बात कर रहा हूँ। जिसके मन में यह टीस रही थी और इसके अंत के लिए उसने कलिंग पर आक्रमण कर दिया था।

इतिहासकार बताते हैं कि इस घनघोर युद्ध में कलिंग के सभी पुरुष सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए तो राजकुमारी पद्मावती के नेतृत्व में स्त्री योद्धाओं की छोटी सी टुकड़ी ने अपने राज्य की स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए अशोक की बड़ी सेना के सामने मोर्चा सम्हाला और युद्ध भूमि में उपस्थिति हुई। युद्ध में हुए भयानक नरसंहार से व्यथित अशोक ने स्त्री सेना से नहीं लड़ने का निर्णय लिया और स्वयं को उनके सामने समर्पित कर अहिंसा और बौद्ध धर्म का मार्ग चुना। यह घटना भारतीय इतिहास के सबसे प्रभावी घटनाओं में एक सिद्ध हुई। जिस कारण से भारत ने एक तरफ मानवता के उत्कर्ष को छूआ और शांति तथा अहिंसा के साथ ज्ञान का संदेश विश्व के कई अन्य देशों तक पहुंचाया। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि, बाद में इन्हीं कारणों से दुर्दांत हूणों, शकों, मुगलों द्वारा भारत को भारत पर आक्रमण भी हुए।

कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी (KIIT) से B.Tech हेतु जब छोटे पुत्र संस्कार सुमंत का चयन इस महाविद्यालय में हुआ तो इस संस्थान को देखने और महसूस करने की मेरी जिजीविषा प्रबल हो उठी। कटिहार से भुवनेश्वर के लिए सीधी रेल सेवा सप्ताह में मात्र दो दिन ही उपलब्ध है। जिसमें स्थान सुरक्षित न हो पाने के कारण कटिहार से सियालदह और शालीग्राम से भुवनेश्वर की यात्रा को रेल सेवा में आरक्षित सीट ने काफी आसान बना दिया। कटिहार से शाम सात बजे चलकर दूसरे शाम पांच बजे तक हम सपरिवार भुवनेश्वर पहुंच चुके थे। वर्षा ऋतु, रास्ते में हरे-भरे खेत, नारियल और केले के वृक्षों की प्रधानता संग बीच-बीच में छोटी-छोटी पहाड़ियों की उपस्थिति, जैसे एक गजब की मोहक छटा प्रस्तुत कर रही हो। स्वर्ण रेखा और महानदी के उफान पर सावन का असर प्रत्यक्ष दिख रहा था।

भुवनेश्वर,एक शहर जो प्राचीनता और आधुनिकता का संगम स्थल है और यह दोनों को बड़ी ही सहजता से खुलकर जीता भी है।एक तरफ प्राचीन मंदिर समूहों की उपस्थिति तो दूसरी ओर आधुनिकतम मॉल संस्कृति।एक तरफ शहर की दिवालों पर उड़ीया कला की स्पष्ट छाप तो दूसरी ओर नवयुवक – नवयुवतियों के पहनावे में पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी दिखा।

सपरिवार सुबह तैयार होकर सबसे पहले शिव को समर्पित विश्वविख्यात मंदिर लिंगराज मंदिर पहुंचा।मन को हजारों साल की तपस्या का जैसे फल मिल गया हो। अद्भुत शांति में डूबे इस मंदिर समूह की बात ही क्या है। अतीत से जुड़ाव होता ही ऐसा है,मन जैसे उस कालखंड में जाकर जीने लगता है। 7वीं शताब्दी में नींव पड़ने के बावजूद 11वीं शताब्दी के राजा ययाति को इसके निर्माण का श्रेय दिया जाता है। कलिंग स्थापत्य शैली बलुआ पत्थरों से निर्मित यह मंदिर उड़ीसा के विशिष्ट मंदिर वास्तुकला का सर्वोच्च उदाहरण है। मंदिर के भीतरी और बाहरी दिवालों पर विभिन्न देवी -देवताओं, पौराणिक कथाओं के संग पशु-पक्षियों की नक्काशी भी देखते ही बनती है। लिंगराज मंदिर में पूजा-अर्चना के पश्चात स्टेशन से मात्र आठ किलोमीटर दूर स्थित उदयगिरि -खंडगिरि जुड़वां पहाड़ियों पर ईसापूर्व दूसरी शताब्दी की गुफाओं को देखने पहुंचे। एतिहासिक, स्थापत्य और धार्मिक दृष्टिकोण से ये गुफाएं काफी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। कलिंग के राजा खारवेल के शासन काल में इन गुफाओं का निर्माण पत्थरों को काटकर-तराशकर किया गया है। ज्यादातर गुफाएं जैन साधकों को समर्पित हैं। जबकि कुछ गुफाओं में हिन्दू तथा बोद्ध आकृतियों से यह प्रमाणित होता है कि इनका भी यहाँ प्रभाव रहा है। गुफाओं में उत्कीर्ण मुर्तियां और शिलालेख न सिर्फ एतिहासिक, धार्मिक, स्थापत्य बल्कि शिलालेखीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।राजा खारवेल के शिलालेख विशेष रूप से पर्यटकों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करते है, जो बहुत महत्वपूर्ण है। पत्थरों को काटकर-तराशकर ध्यान – साधना हेतु निर्मित इन गुफाओं में जीवन के लिए अत्यावश्यक सुविधाओं का बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से ध्यान रखा गया है।सोने के लिए सिरहाने में थोड़ा ऊंचा चट्टानी भाग,गुफा द्वार पर पर्दे टांगने की दोहरी व्यवस्था, अत्यावश्यक पदार्थ रखने के लिए ताखा,जल निकासी हेतु नालों तक जैसी सुविधाओं की व्यवस्था,सभी का निर्माण पत्थरों को काटकर ही किया गया है। आटो रिक्शा वाले ने पहले ही सावधान कर दिया था कि गुफाओं को देखने के लिए पहाड़ियों पर चढ़ने के पूर्व खाना या नाश्ता बिलकुल ही‌ न करें वरना उल्टी की शिकायत होने से परिभ्रमण का सारा मजा समाप्त हो जाएगा।हम सबने उसकी सीख का भरपूर उपयोग करते हुए उतरकर ही बिना लहसुन – प्याज वाली सब्जी से बजे थाली‌ का आनंद लिया और प्रथम दिन के प्रवास पूर्ण कर अपने होटल लौट आए।

प्रवाहका दूसरा दिन कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी, विश्वविद्यालय के नाम रहा। अपने नए छात्रों के स्वागत को तैयार यह विश्वविद्यालय अपने पूर्ण वैभव में दिखा। साफ-सुथरा, हरा-भरा व्यवस्थित 160एकड़ में फैला यह विश्वद्यालय का कैम्पस पूर्णतः अत्याधुनिक सुख-सुविधाओं से लैस भवन, प्रयोगशाला, इंटेलिजेंट ई- केम्पस, वाई-फाई आप्टिकल फाइबर नेटवर्क, विडियो काउंसिल जैसी सुविधाएं यहां उपलब्ध है। आगंतुकों को भ्रमण कराने के लिए जगह -जगह ई रिक्शा की सुविधा थी। नामांकन की औपचारिकता को काफी सरल और सहज बनाया गया था।सारी औपचारिकताएं पूर्ण कर वापस होटल और फिर सुबह की ट्रेन से हावड़ा होते हुए वापस कटिहार अपने निज आवास पर। सच कहूं तो यह यात्रा न सिर्फ भारत के समृद्ध प्राचीन सभ्यता -संस्कृति के दर्शन की थी बल्कि आधुनिक भारत के निर्माण की जरुरतों को पूरा करने में लगे नवयुवक -नवयुवतियों को तैयार करने वाले अत्याधुनिक संस्थान के दर्शन और उसमें अपनी सहभागिता को समर्पित रही। आधुनिक भारत के निर्माण को समर्पित ऐसे ही संस्थान हमारे आधुनिक मंदिर भी हैं।इस यात्रा ने हमें हमारे समृद्ध सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और धार्मिक पहलुओं से न सिर्फ परिचय करवाया बल्कि उसके अत्याधुनिक विकल्प के प्रति जागरूक कर उसमें सहभागिता हेतु प्रोत्साहित भी किया।

अजय कुमार मीत, कटिहार

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