असली कमाई-संजीव प्रियदर्शी

Sanjiv

चिलचिलाती धूप में ठेले पर ईख का रस बेचने वाले एक दिहाड़ी से मैंने पूछ लिया- ‘ दोपहर की इस भयानक गर्मी में पसीना बहाकर कितनी कमाई कर लेते हो?’
‘कमाई क्या होगी साहब,बस बच्चों को तालीम दिलाते हुए किसी भांति परिवार का पेट भर लेता हूँ।’ – रस बेचने वाला चेहरे पर हल्की मासूमियत लाकर जवाब दिया था।
गन्ने का रस बेचकर परिवार का भरण-पोषण करते हुए बच्चों को भी तालीम दिला देता है, सुनकर थोड़ा अचरज जरुर हुआ क्योंकि मेरे जैसे साठ -सत्तर हजार वेतन पाने वाले को इस बढ़ती मंहगाई में बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पाना दुष्कर हो जाता है। लेकिन यह इतनी कम आय में कैसे सब कर लेता है? फिर सोचा,हो सकता है किसी सरकारी स्कूल-कॉलेज में भगवान भरोसे लड़कों को पढ़ाता होगा। क्योंकि यहां तो लाखों लुटाने के बावजूद मेरा बबलू कोई उम्दा परिणाम नहीं दे सका था। हां, यदि पांच लाख रुपये उत्कोच में नहीं दिया होता तो आज वह क्लर्की भी नहीं कर पाता। फिर इसका लड़का क्या करेगा?बाद में इसी की भांति कहीं ठेला- रिक्शा चलाते हुए नजर आ जाएगा।भला सरकारी स्कूलों में अब पढ़ता ही कौन है? बजाय दरिद्र सुतों के । परन्तु रस बेचने वाले का जवाब सुन मेरे तो होश उड़ गए। जैसे अचानक आसमान से जमीन पर आ गिरा था मैं। पूछने पर उसने बताया कि उसका लड़का अभी-अभी बीपीएससी की फाइनल परीक्षा में अव्वल स्थान लाकर एस डी ओ पद के लिए चयनित हुआ है। और लड़की इंटरमीडिएट परीक्षा में जिले भर में टाप की है। बस यही तो मेरी कमाई है साहब। और हां, मेरे दोनों बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़कर ही इतना कुछ किए हैं।
मेरी तो सारी हेकड़ी जाती रही थी। फिर सोचने लगा। असल कमाई तो इसी ने की है।माँ- पिता के लिए सबसे बड़ा धन तो उनकी संतानें होती हैं। यदि वे सुशिक्षित, संस्कारी और गुणी हों तो और भी उत्तम। मैं उसके जज्बे को मन ही मन नमस्कार करते हुए वहां से चल पड़ा था।

संजीव प्रियदर्शी
फिलिप उच्च माध्यमिक विद्यालय बरियारपुर, मुंगेर

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