ओपनिंग दृश्य-विवाह स्थल का दृश्य।(ठाकुर कामेश्वर सिंह के यहाँ उनकी बेटी की शादी है,
बाराती को भोजन कराया जा रहा है।उसी समय बिसेसरा नामक व्यक्ति पंगत में भोज खाने बैठ जाता है।
ठाकुर-अरे तुम कौन हो?
बिसेसरा- मालिक मैं ,बिसेसरा हूँ।
ठाकुर-कौन बिसेसरा?
बिसेसरा-वही जो इसी गाँव में रहता हूँ,मालिक।
रंजीत सिंह-कामेश्वर भैया,आपने नहीं पहचाना,वही जो की बगल वाली बस्ती में रहता है।
कामेश्वर सिंह-(बिसेसरा से) तुम्हें मालूम नहीं,कि हमारे समाज के पंगत में बैठकर भोज खाना एक अपराध है।तुमने यह दुससाहस कैसे किया (कहते हुये,बिसेसरा को गाल में जोरदार थप्पड़ मारता है,धकेल कर गिरा देता है,बेचारा भूखा बिसेसरा स्तब्ध रहते हुये जूठा पत्तल छोड़कर चला जाता है)।
(पर्दा गिरता है)।
प्रथम अंक,प्रथम दृश्य
गाँव का दृश्य-(बिसेसरा अपनी पत्नी मुनकी के साथ रोजी-रोजगार कमाने की तरकीब सोच रहा है)।
बिसेसरा-(अपनी पत्नी मुनकी से)
यहाँ कोई रोजी-रोजगार भी नहीं मिल रहा है,भोजन के भी लाले पड़ गये हैं,क्या करें,क्या न करें यह समझ में नहीं आ रही है?
मुनकी-(बिसेसरा से) क्यों न हमलोग कहीं किसी प्रांत में रोजगार ढूंढने चलें।
बिसेसरा-हाँ,हाँ रोजगार मिल जायेगा क्या?
मुनकी-सुनिये न!
बिसेसरा-क्या,बोलो मेरी प्राणों से प्रिये मुनकी,बोलो,बोलो।
मुनकी-गाँव के ही रघुवा,पिंकू, गौतम आदि प्रदेश में जाकर मजदूरी करके अपना बाल-बच्चे का पालन-पोषण कर रहे हैं।क्यों न हमलोग भी कहीं बाहर जाकर रोजी-रोजगार करने की बात सोंचे।(पर्दा गिरता है)।
द्वितीय अंक ,प्रथम दृश्य
(बिसेसरा अपनी पत्नी मुनकी के साथ कहीं बाहर जाकर रोजी-रोजगार करने के लिये बाहर चला जाता है तथा
एक फैक्ट्री में काम करने लगता है तथा उसकी पत्नी भी दूसरे फैक्टरी में काम करने लगता है)
बिसेसरा-(अपनी पत्नी से) मुनकी अरे तुम तो बहुत बुद्धिमान हो?
मुनकी-(बीच में ही बात काटते हुये)वह कैसे जी?
बिसेसरा-तुम्हारे कहने पर ही तो मैं अरवल( बिहार) से रोजी-रोजगार के लिये बाहर चला गया।
यदि तुम न कहती तो मैं
आज भी देहात में सामाजिक उपेक्षा का पात्र बनता ही रहता।
मुनकी-आखिर आपकी ही तो पत्नी हूँ न?फिर आपके साथ रहते हुये आपसे बहुत कुछ सीखती भी तो हूँ!
(बिसेसरा दिल्ली में ही एक झोपड़पट्टी बनाकर रहने लगता है) (पर्दा गिरता है)।
तृतीय अंक,प्रथम दृश्य
दिल्ली का दृश्य-(ठाकुर कामेश्वर सिंह अपनी गर्भवती पत्नी प्रियंका को लेकर चिकित्सक को दिखाने दिल्ली गये हुये हैं। देश में कोरोनाा वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है।इसी बीच भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा पूरे देश में लाॅकडाउन लगाने की घोषणा की जाती है)।
कामेश्वर सिंह-(प्रियंका से,आश्चर्य पूर्वक)अरे यह अचानक क्या हो गया,पूरे देश में लाॅकडाउन लगा दिया गया।
प्रियंका-(आश्चर्य पूर्वक)यह लाॅकडाउन क्या होता है?
कामेश्वर सिंह-ई कोरोना वायरस के संक्रमण के काल में पूरे देश में आने-जाने वालों पर रोक सी लगा दी गई है,इसी को लाॅकडाउन कहते हैं।
प्रियंका-(आश्चर्यचकित होकर)तब क्या होगा,अब हमलोग यहाँ बाहर में क्या करेंगे।सभी होटल,गाड़ी,
मेडिकल,दुकान आदि भी बंद कर दिये गये।बहुत जोर की भूख लगी हुई है,(अपने पति से)कुछ खिलाइये न!साथ ही मेरी स्थिति भी ऐसी है,जब बहुत भूख लगती है,मैं भूखी नहीं रह सकती हूँ।
(पर्दा गिरता है)
अंतिम दृश्य
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दिल्ली के मलीन बस्ती का दृश्य-(रात के आठ बज चुके हैं,भूख से परेशान ठाकुर कामेश्वर सिंह अपनी पत्नी के साथ परेशान है)
प्रियंका-अब मैं भूख से चल भी नहीं पा रही हूँ,मुझे कुछ खिलाइये न?(जमीन पर बैठ जाती है)अब मुझसे चला नहीं जा रहा है,लगता है,मेरी जान चली जायेगी।(कराहते हुये)आह,कुछ भी खिलाइये,बहुत जोर की भूख लगी है।(तभी एक झोपड़ी में रोशनी दिखाई देती है)
कामेश्वर सिंह-(प्रियंका के साथ, झोपड़ी का दरवाजा खटखटाते हुये)अरे भाई कोई है,भाई साहब दरवाजा खोलो न,बहुत परेशान हूँ।
झोपड़ी का मालिक-(अंदर से) से)कौन हो,इतनी रात में कहाँ से आये हो।
ठाकुर-(गिड़गिड़ाते हुये)भाई साहब जरा दरवाजा खोलो न, भूख से दम निकला जा रहा है। मेरी पत्नी जो गर्भवती है,वह भी दिनभर भूखी है,दरवाजा खोलो न भाई!
बिसेसरा-(अपनी पत्नी से)तब तो दरवाजा खोलना चाहिये(कहकर
दरवाजा खोलता है,सामने ठाकुर
कामेश्वर सिंह को देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।बिसेसरा में मन में वह दृश्य उभरने लगता है,जब कि एक भोज के दरम्यान,भूख से तड़पते हुये बिसेसरा को भोज के पत्तल से उठा दिया गया था। उसके साथ की गई सामाजिक
भेदभाव ,बदतमीजी,अभद्रता का दृश्य नाचने लगता है।फिर भी बिसेसरा ठाकुर से) अरे ठाकुर साहब,आप यहाँ कहाँ से आ गये।
ठाकुर-(रूआंसे मुद्रा में)मुझे बचा लो भाई साहब ,मेरे द्वारा की गई पिछली भूल के लिये मैं बहुत शर्मिंदा हूँ ग्लानि महसूस कर रहा हूँ,मुझे माफ कर दो भाई साहब,(तभी बिसेसरा उनके हाथों में हाथ डालकर उसको प्रेम से अंदर ले जाने लगता है)।
(इतने में बिसेसरा की पत्नी मुनकी दरवाजे पर आती है,
प्रियंका को भूख से कराहती हुई देखकर कहती है)दीदी जी घर के अंदर आइये न,इसे अपना ही घर समझिये। धीरे-धीरे प्रियंका को झोपड़ी के अंदर ले जाती है।(फिर दोनों को भोजन कराती है)
बिसेसरा-भाई साहब आज आप जिस तरह से भूख से तड़प रहे हैं,उसी तरह उस दिन भी जब मैं भूख से तड़प रहा था मुझे भी उस पंगत में भोजन करते समय जूठे पत्तल से उठा दिया गया था,आज आप भी उसी तरह के भूख की ज्वाला में तड़प रहे हैं।
मुनकी-(ठाकुर साहब को भोजन कराती हुई)भैया भोजन कीजिये न। भैया भूख और भोजन की कोई जाति नहीं होती है।लोगों को जीवन जीने के लिये वह जूठा भोजन भी काम आता है।आप लोग इस झोपड़ी को अपना ही घर समझ कर यहाँ ठहरिये।
(पटाक्षेप)
(नेपथ्य से)गीत-न हिंदु बनेगा,न
मुसलमान बनेगा,इंसान की औलाद है,इंसान बनेगा।
(समाप्त)
आलेख साभार-श्री विमल कुमार “विनोद” प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,बाँका(बिहार)