बाल-अधिकार- श्री विमल कुमार”विनोद”

Bimal Kumar

ओपनिंग दृश्य-(एक शिक्षक जो कि गाँव के विद्यालय में कार्यरत है,जो कि ग्रामीण को अपने बच्चों को पढ़ने के लिये जाने को कहते हैं)
शिक्षक-बहन जी,आपलोग अपने बच्चे-बच्चियों को विद्यालय पढ़ने के लिये भेजिये।जीवन में पढ़ना जरूरी है,क्योंकि शिक्षा के बिना जीवन अधूरी है।
ग्रामीण-हमारे बच्चों को पेट भर कर भोजन नहीं मिल पाता है,तो फिर पढ़ने की बात कैसे सोच सकते हैं।
(कहकर ग्रामीण अपने बच्चों को दूसरे का जानवर चराने भेज देते हैं)(उसी समय एक बच्चा जो कि कुपोषण का शिकार है उस रास्ते से गुजरता है)
शिक्षक-(आश्चर्य से)अरे भाई साहब लगता है कि इस बच्चे को सही रूप से भोजन भी नहीं मिल पा रहा है।
ग्रामीण-(शिक्षक से)गुरूजी हमलोग तो गरीब-गुरबा आदमी हैं भोजन में माड़-भात,सत्तु या जो कुछ भी थोड़ा सा भोजन मिल गया वही खाकर अपना गुजर बसर कर लेते हैं। घर में गरीबी के कारण अच्छा खाना कभी मिला तो कभी नहीं।
शिक्षक-आपलोगों के बाल-बच्चे पढ़ने नहीं जाते हैं।
ग्रामीण-पहले खाने को भोजन मिलेगा तब न पढ़ने की बात सोच सकते हैं।
शिक्षक-(ग्रामीणों से)तो सुन लीजिये,आप लोग अपने-अपने बच्चों को विद्यालय पढ़ने भेजिये जहाँ बच्चों को पढ़ने के साथ-
साथ मध्यान्ह भोजन में अलग-अलग तरह के मीनू के अनुसार भोजन कराया जाता है,जिससे बच्चे कुपोषण से मुक्त होंगे।
ग्रामीण-(आश्चर्य से)सही में गुरुजी, वहाँ पर हमारे बच्चों को खाने का भोजन भी मिलेगा।
शिक्षक-हाँ,हाँ। शिक्षा प्राप्त करना बच्चों को संरक्षण दिया जाना,14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखाने तथा भारी कामों में लगाया जाना कानूनन अपराध भी हैं।साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी बच्चों के शारीरिक, मानसिक, शैक्षणिक,चारित्रिक विकास के लिये बहुत सारे कानून बना रखे हैं,हमलोगों को यह बात जन-साधारण तक पहुँचाने की जरूरत है।
ग्रामीण-ठीक है,भाई साहब अब हमलोग अपने बच्चों को विद्यालय पढ़ने के लिये भेजेंगे।(कहकर सभी का प्रवेश)(पर्दा गिरता है)

प्रथम अंक,प्रथम दृश्य

गाँव का दृश्य-(बच्चे खेल रहे हैं,तथा कुछ बच्चे लोगों का पशु चराने जा रहे हैं।उसी समय शिक्षक का प्रवेश)
शिक्षक-(बच्चों से)बच्चों तुम लोगों को पढ़ने नहीं जाना है क्या?
बच्चे-नहीं।
शिक्षक-क्यों?
बच्चे-हमलोगों को यह पता ही नहीं है कि पढ़ना क्या होता है और पढ़-लिखकर लोग करते क्या हैं?
शिक्षक-पढ़ना बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है।बच्चों तुमलोगों को पढ़ना चाहिये।साथ ही तुमलोगों को 18 वर्ष के पहले तक मजदूरी नहीं करनी चाहिये,
किसी के बहकाने पर भीख नहीं मांगना चाहिये।
बच्चे-आप कौन हैं,यहाँ पर क्यों आये हैं,आपके जीवन का उद्देश्य क्या है।हम बच्चों के बारे में आप इतनी सुन्दर सोच रखते हैं,इसका क्या कारण है?
शिक्षक-मैं एक शिक्षक हूँ,जिसे प्राचीन समय में”गु”अंधकार तथा “रू”जिसे प्रकाश यानि अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला कहा जाता है के नाम से जाना जाता था।मैं लोगों को ज्ञान बाँटने का काम करता हूँ। मैं आप लोगों के पास बालकों के विकास से संबंधित अधिकार के बारे में बताने आया हूँ।
बच्चे-बताइये गुरूजी(बच्चे शिक्षक के सामने बैठ जाते हैं)
शिक्षक-सुनो संयुक्त राष्ट्र संघ ने बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये 1989 में”बाल-अधिकार” और जिम्मेदारियां,संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकार को सुरक्षित रखने के लिये कानून बना रखा है,जिसमें बालकों का शोषण करना मना है।
बाल मजदूरी,बाल लैंगिक शोषण एवं संरक्षण ,बच्चों को भीखमंगी की समस्या से मुक्ति दिलाना,एच•आई•वी•से संक्रमित तथा प्रभावित बच्चों को संरक्षण देना तथा बच्चे-बच्चियों को शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करने से संबंधित अधिकार प्रदान किया गया है।साथ ही बच्चों को कुपोषण से मुक्ति के लिये गर्भवती माताओं के लिये पोषाहार का भी वितरण किया जाता है।
बच्चे-तब तो गुरुजी हमलोग अपने अधिकार को प्राप्त करने के लिये आज से ही पढ़ने के लिये विद्यालय जायेंगे।आप हमलोगों को पढ़ाइयेगा न गुरूजी।लेकिन हमलोग तो गरीब-गुरबा घर के बच्चे हैं,बाप-माँ मजदूरी करते हैं,
भरपेट भोजन भी नहीं मिल पाती है।
शिक्षक-तो सुन लो बच्चों सरकार ने छोटे-छोटे बच्चों के लिये आँगनबाड़ी केन्द्र खोल रखे हैं जहाँ बच्चों को पढ़ने के साथ-
साथ मीनू के अनुसार भोजन भी दिया जाता है।
बच्चे-तब तो हमलोग आज से ही विद्यालय पढ़ने जायेंगे,बाल मजदूरी,भीख मांगने का काम नहीं करेंगे।(सभी का प्रस्थान)
इससे लोग बच्चों का यौन शोषण करने की कोशिश करते हैं,जिससे मुक्ति के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ के एक संगठन”यूनिसेफ”के द्वारा “विद्यालयों में बाल यौन शोषण, सुरक्षा एवं संरक्षण”कार्यक्रम चला रखा है,जिसे भारत में मुंबई की एक संस्था”अर्पण”बिहार शिक्षा परियोजना तथा राज्य शैक्षिक शोध एवं प्रशिक्षण परिषद के सौजन्य से आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है।
बच्चे-ठीक है,गुरूजी हमलोग आज संकल्प लेते हैं कि ऐसा काम नहीं करेंगे।

द्वितीय अंक,प्रथम दृश्य

गाँव का दृश्य-(कुछ बच्चे जो कि कुपोषण से युक्त है।उनके माता- पिता उसे देखकर चिंतित हैं)।
आंगनवाड़ी दीदी का प्रवेश-(बहुत सारी महिलायें जमा हो जाती हैं) बहन जी यह सारे बच्चे आप लोगों के परिवार के हैं।
एक महिला-जी मैडम यह बिक्की मेरा ही बेटा है और वह मंटू मेरी गोतनी का बेटा है।
आँगनबाड़ी दीदी-(महिलाओं से) लगता है कि आपलोग जब गर्भवती थे ,उस समय आपलोग स्वास्थ केन्द्र नहीं गये थे तथा
आँगनबाड़ी केन्द्र से सरकार द्वारा वितरित किये जाने वाले पोषाहार भी प्राप्त नहीं किये थे।
महिलायें-हमलोगों को कोई भी बताने वाला नहीं था।साथ ही हमलोग देहात में रहते हैं,कुछ भी पता नहीं चल पाता है।
आँगनबाड़ी दीदी-ठीक है अब पहले वाली गलती नहीं दोहराइयेगा।
महिलायें-ठीक है हमलोग आपका बात मांनेगे।(सभी का प्रस्थान)
(पर्दा गिरता है)

अंतिम दृश्य

गाँव का चौपाल का दृश्य-(सभी ग्रामीण पुरुष-महिलायें,बच्चे- बच्चियाँ गपशप करते हुये एक साथ)आज से हमलोग अपने बच्चे-बच्चियों को किसी के यहाँ मजदूरी करने नहीं भेजेंगे,अपने-अपने बच्चों को पढ़ने के लिये भेजेंगे,गर्भवती महिलाओं का
गर्भावस्था के दरम्यान सही तरह से इलाज करायेंगे।बच्चों को को किसी भी प्रकार का बाल शोषण नहीं करेंगे।बच्चे जो कि कल के भविष्य हैं,को बनाने का प्रयास करेंगे।बच्चों के विकास के लिये एक सुन्दर,शिक्षित, बाल अधिकारों से युक्त समाज का निर्माण करेंगे ताकि देश के आने वाले भविष्य को सजाया-संवारा जा सके।
शिक्षक का प्रवेश-(चौपाल में उपस्थित लोगों से)आज किस बात का चौपाल लगी हुई है)
सभी-बच्चे-बच्चियों के भविष्य को सजाने-संवारने,बाल शोषण मुक्त समाज का निर्माण करने,
समाज को कुपोषण मुक्त बनाने तथा सभी को शिक्षा दिलाने का हमलोगों ने एक मुहिम छेड़ रखा है।
शिक्षक-आप सभी ग्रामीणों को मेरे ओर से बहुत-बहुत बधाई।
ग्रामीण-बधाई तो हमलोग आपको दे रहे है कि आपने हमलोगों के जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाकर शिक्षा का अलख जगाते हुये
“बाल अधिकार”से परिचित कराया और हमारे बच्चों के जीवन में प्रकाश बिखेरने का कीमती काम किया।(पटाक्षेप)
(समाप्त)
कथा लेखक-श्री विमल कुमार”विनोद” प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय
पंजवारा,बांका(बिहार)।

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