बाल अधिकार सामाजिक पहल है जरूरी-कुमारी अनु साह

बाल अधिकार : समाजिक पहल है जरूरी

          बाल अधिकार नाबालिगों की देखभाल और विशिष्ट सुरक्षा के रूप मे बच्चों को मिलने वाले व्यक्तिगत मानवाधिकारों को कहा जाता है। 1959 मे बाल अधिकारों की घोषणा को 20 नवम्बर 2007 को स्वीकार किया गया। बाल अधिकार के तहत जीवन जीने का अधिकार, पहचान, भोजन, पोषण और स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा और मनोरंजन, नाम और राष्ट्रीयता, परिवार और पारिवारिक पर्यावरण, उपेक्षा से सुरक्षा, बदसलूकी, दुर्व्यवहार, बच्चों का गैरकानूनी व्यापार आदि शामिल है।

भारत मे सभी बच्चों के लिए वास्तविक मानव अधिकार के पुनर्विचार के लिए 20 नवम्बर को हर वर्ष बाल अधिकार दिवस मनाया जाता है। अपने बच्चों के सभी अधिकारों के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए बाल अधिकार की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय कमीशन के द्वारा 20 नवम्बर सालाना एक राष्ट्रीय सभा आयोजित की जाती है। 20 नवम्बर को पूरे विश्व में वैश्विक बाल दिवस (अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस) के रूप मे भी मनाया जाता है। बाल अधिकारों के अनुसार बचपन अर्थात उनके शारीरिक और मानसिक अपरिपक्वता के दौरान बच्चों की कानूनी सुरक्षा, देखभाल और संरक्षण करना बहुत जरुरी है। बाल अधिकार बाल श्रम और बाल दुर्व्यवहार की खिलाफत करता है जिससे वो अपने बचपन, जीवन और विकास के अधिकार को प्राप्त कर सके। दुर्व्यवहार, गैर व्यापार और हिंसा के पीडित बनने के बजाय बच्चों की सुरक्षा और देखभाल होनी चाहिए। उन्हें एक अच्छी शिक्षा, मनोरंजन, खुशी और सीख मिलनी चाहिए। जैसा कि हम लोग जानते हैं कि आज के समय मे बच्चों के जीवन मे उपेक्षा, दुर्व्यवहार की घटनाएँ काफी बढ गई है। लोग अपने स्वार्थ के कारण बाल मजदूरी, बाल तस्करी जैसे अपराधों को करने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। बच्चों पर विभिन्न रूप मे बाल शोषण होते हैं जिससे उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है। यहाँ तक कि दिव्यांग बच्चे भी बाल शोषण के शिकार हो जाते हैं क्योंकि कुछ माता-पिता के द्वारा और समाजिक रूप से भी दिव्यांग बच्चों के साथ सामान्य बच्चे की तरह व्यवहार नहीं किया जाता है। ऐसे बच्चे शारीरिक रूप से भी अपनी सुरक्षा करने में असर्मथ होते हैं। ऐसे में यह काफी आवश्यक हो जाता है कि बच्चे अपने अधिकारों के बारे में जाने ताकि अपने साथ किसी तरह के भेद-भाव या अत्याचार होने पर वह इसके खिलाफ आवाज उठा सके। कोई भी शोषण के खिलाफ बने कानून तब तक प्रभावी नहीं होते हैं जब तक सभी लोग उसके विषय में न जान ले और उसका पालन करे। आज भी बहुत सारे जगहों पर बाल अधिकारों का हनन हो रहा है इसलिए बाल अधिकारों के लिए समाजिक पहल जरूरी है।

कुमारी अनु साह
प्रा. वि. आदिवासी टोला भीमपुर

छातापुर सुपौल

नोट–लेखक के अपने विचार हैं।

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3 thoughts on “बाल अधिकार सामाजिक पहल है जरूरी-कुमारी अनु साह

  1. प्रकाश प्रभात,बाँसबाड़ी,बायसी,पूर्णियाँ (बिहार) says:

    सुन्दर आलेख । बहुत खूब मैडम ।

  2. वाल अधिकार दिवस पर जो आप प्रकाश डाले है वह बच्चों के अधिकार को बहुत ही सुन्दर ढ़ंग से दर्शाता है।

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