बोध – संजीव प्रियदर्शी

एक लघुकथा लकड़ा जेब से पिस्तौल निकालकर ज्यों ही गोलियाँ चलाता कि यकायक उसके हाथ रुक गये। यह क्या? ये तो विभाष सर हैं! भला इन्हें कैसे मार सकता है… बोध – संजीव प्रियदर्शीRead more

परिवार – संजीव प्रियदर्शी

अपनी सहेली द्वारा ससुराल के बारे में पूछे जाने पर मनोरमा बोलने लगी -‘ अरे राधा, मैं ससुराल में भले रह रही हूंँ, परन्तु यहां के लोगों का हमारे ऊपर… परिवार – संजीव प्रियदर्शीRead more

दृष्टिकोण – संजीव प्रियदर्शी

लघुकथा सुनीता अपनी ननद की लड़की की शादी में काफ़ी लल्लो-चप्पो के बाद जाने को राजी हुई थी।ननद शोभा और ननदोई सुनील शादी-विवाह का घर होते हुए भी सुनीता का… दृष्टिकोण – संजीव प्रियदर्शीRead more

कर्मों का फल – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

दीपू अपने माता-पिता का एकलौता पुत्र था। देखने में गोरा, लंबा और हृष्ट-पुष्ट था। उसने बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त किया था। परन्तु उसका स्वभाव गंदा था। उसकी पत्नी रितिका एम.ए.… कर्मों का फल – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’Read more

वचनसीमा – संजीव प्रियदर्शी

एक लघुकथा कपड़े के दो डिब्बे पति मनोहर को देती हुई बोली-‘ एक में तुम्हारी पसंद के शर्ट-पैंट हैं और दूसरे में रामू के कपड़े।’ मनोहर डिब्बों को खोलने के… वचनसीमा – संजीव प्रियदर्शीRead more

जनता – संजीव प्रियदर्शी

एक बार किसी राजा के कुछ सभासदों ने उनसे पूछ लिया- ‘सच्चा देवदूत, जनता क्या होती है? आजतक हमलोग इसके वास्तविक वजूद को देख-समझ नहीं पाये हैं। कृपया हमें संतुष्ट… जनता – संजीव प्रियदर्शीRead more

पगला है- संजीव प्रियदर्शी

लघुकथा सनोज दास जिस दिन नौकरी में आये,उस दिन उनके हिस्से की ऊपरी कमाई ढ़ाई सौ रुपये बनती थी।साथी अहलकार ईमानदार थे,सो बड़ा बाबू रुपये बढ़ाते हुए बोले-‘ देखिए सनोज… पगला है- संजीव प्रियदर्शीRead more

समझ- संजीव प्रियदर्शी

लघुकथा पत्नी ने आकर कहा-‘ अजी सुनते हो! मनोरमा को जिस पूज्य बाबा जी की अनुकंपा से लड़का हुआ है,चलो न चलकर उनका आशीर्वाद ले लें।सुना है, वे पहुंचे हुए… समझ- संजीव प्रियदर्शीRead more