कभी हार मत मानो-निधि चौधरी

Nidhi

कभी हार मत मानो

          कनक मध्यम वर्गीय परिवार की एक 10 साल की लड़की है। एक दिन वह अपनी माँ के हाथों बनी आलू के पराठे स्कूल लेकर जाती है और कुछ सहेलियों के साथ बांटकर खाती है। उसकी दो सहेलियों रीमा और पिंकी को पराठे बहुत पसंद आते हैं।

रीमा – वाह कनक तेरी मम्मी तो बहुत सुंदर पराठे बनाती है।
कनक – मेरी मम्मी हर खाना बहुत सुंदर बनाती है।
पिंकी – हम ऐसे कैसे मान लें किसी दिन घर पर बुलाओ तब माने।
कनक घर पर आकर माँ को यह सब बात बताती है और कहती है माँ मेरी सहेलियां घर आना चाहती है खाने पर।
माँ – ठीक है कनक कल ही बुला ले अपनी सहेलियों को खाने के लिए।

दूसरे दिन कनक की सहेलियां कनक की माँ की हाथों का बना खाना खाते हैं और उनको बहुत अच्छा लगता है।
रीमा – वाह कनक तेरी मम्मी के हाथों में तो जादू है।
पिंकी – सच मे आंटी के हाथों का खाना खाकर मज़ा आ गया।

एक दिन कनक की फेवरेट टीचर का जन्मदिन था और कनक के पास उनको बधाई देने के लिए कुछ नही था। तब माँ ने कनक को केक बनाकर दिया और कहा यही तुम्हारी गिफ्ट है।
कनक ने खुशी-खुशी केक अपनी टीचर को दिया।
टीचर – वाह कनक इतना टेस्टी केक तुम्हारी मम्मी ने बनाया।
तभी कनक की सहेलियों ने कहा – कनक की मम्मी बहुत अच्छे-अच्छे व्यंजन बनाना जानती है।

स्कूल में कनक की टीचर को यह बात पता चलता है कि कनक की मम्मी बहुत लजीज खाना बनाती है। वह कनक से फेसबुक और यूट्यूब के बारे में बताती है कि मम्मी से कहो कि अपनी रेसिपी का वीडियो बनाकर फेसबुक और यूट्यूब पर डाले। और हां यूट्यूब अधिक व्यूज होने पर पैसे भी देती है।

कनक ने माँ को सारी बात बताई। फिर माँ जो भी बनाती उसकी रेसिपी इंटरनेट पर डाल देती। देखते ही देखते फेसबुक और यूट्यूब पर कनक की मम्मी के बहुत सारे फॉलोवर्स हो गए।

कुछ दिनों बाद ही कोरोना का कहर फिर से छा जाता है और सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा हो जाती है। कनक का स्कूल, कनक के पिता की दुकान सब बन्द हो जाते हैं। अब कनक के परिवार की स्थिति काफी खड़ाब हो जाती है।
घर मे खाने – पीने की भी समस्या हो जाती है।
कनक की माँ – पता नहीं घर का गुजारा कैसे होगा?
कनक के पिता – अब तो राशन के पैसे भी नहीं बचे हैैं भगवान कुछ तू ही कोई राह दिखा।

कनक कोने में खड़ी होकर यह सब सुन रही थी।
तब ही कनक के दिमाग मे एक विचार आया।
कनक – माँ क्यों ना आपकी बनाई हुई रेसिपी हम ऑनलाइन बेचना शुरू कर दें और पैसे भी हम एकाउंट में ट्रांसफर करा लेंगे या फिर केश ले लेंगे। और हमने जो फेसबुक और यूट्यूब पर अपना एकाउंट बनाया है उसके द्वारा इस काम का प्रचार कर देंगे।

कनक के पिता – पर क्या ऐसा सच में हो सकता है?
कनक – बाबा कोशिश करके देखते हैं।
अगले दिन कनक को आस-पास के गाँव से बहुत सारे ऑर्डर मिलने लगते है। देखते-देखते दो चार दिनों में ही कनक का ऑनलाइन व्यवसाय बहुत चल जाता है, और आमदनी भी बहुत होने लगती है।
घर का खर्च चलाकर जो पैसे बचते हैं कनक के पिता उनमें से कुछ पैसे भविष्य के लिए सुरक्षित करके रखतें है और कुछ पैसों से हर इतवार को मास्क और सेनेटाइजर गाँव के जरूरतमंद व्यक्तियों को बांटते हैं। देखते-देखते कुछ दिनों में कोरोना महामारी का प्रकोप भी कम हो जाता है। और फिर से स्कूल, दुकानें सब खुल जाती हैं। लेकिन अब भी कनक का ऑनलाइन व्यापार अब और अच्छे से चलने लगता है। उसके पिता गाँव के कुछ जरूरतमंद बेरोजगारों को काम भी देते हैं।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो हमे कोशिश करनी चाहिए और हार नहीं माननी चाहिए।

निधि चौधरी

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2 thoughts on “कभी हार मत मानो-निधि चौधरी

  1. डा.के.के.चौधरी,आकाशवाणी मार्ग,पूर्णिया, बिहार। says:

    बहुत सुंदर और प्रेरक कथा के माध्यम से विपरीत परिस्थिति में भी हार नहीं मानने की सीख मिलती है।अंतस की गहराई से अनुराग भरा स्नेहाभिनंदन!

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