मित्रता का मान
विद्यालय में “कृष्ण और सुदामा” नाटक का मंचन किया जाना था। वर्ग सात के अंग्रेजी के किताब का एक लेशन जब से विजय सर ने पढ़ाया तभी से उनके मन में ख्याल आया कि उसका मंचन हो जाए।
सूरज और अकरम विजय सर के प्लान से काफी खुश थे। सूरज और अकरम की मित्रता भी पूरे विद्यालय में काफी चर्चित है। आज विद्यालय में सर जी के द्वारा सुदामा और कृष्ण का रोल दिया जाना था। सूरज का सांवला रंग और घुंघराले बाल को देखते हुए विजय सर ने कृष्ण का पात्र बनने के लिए उसे कह दिया। अब सुदामा की खोज करनी थी क्योंकि सुदामा के लिए पात्र को बाल मुंडा हुआ, लंबी टीक एवं सिर्फ़ धोती में विद्यालय आना था। उसके लिए कोई छात्र तैयार नहीं हो रहा था। विजय सर ने काफी जद्दोजहद के बाद यह कह दिया कि जो छात्र सुदामा बनना चाहता है, वह कल उसी रुप में आ जाए।
दबी जुबान से कुछ छात्र बोल रहे थे कि सूरज का असली मित्र तो अकरम है, परंतु वह टकला तो बनेगा नहीं क्योंकि उसके मजहब में टीक रखना गुनाह है।
एक छात्र चुटकी लेते हुए, सर सूरज का दोस्त ही क्यो न बने सुदामा?
विजय सर – मैंने बोल दिया न कि जिसकी इच्छा है वह उसी तरह तैयार होकर आ जाए। कुछ छात्र छींटाकशी भी अकरम पर किए।
अगले दिन सूरज गले में मोतियों की माला, माथे पर मयूर का पंख, आंखों में काजल, हाथ में बंसी एवं पीला वस्त्र पहने कृष्ण बनकर आया। कुछेक छात्र भी सुदामा बनकर आएं और किसी ने बाल मुंडवाया तो धोती नहीं पहना, किसी ने धोती पहना तो बाल नहीं मुंडवाया। विजय सर को बिरजू कुछ उपयुक्त लगा। अकरम अभी तक नहीं आया था। सूरज बार-बार विद्यालय गेट की तरफ ही देख रहा था। मंचन का समय आ गया।
विजय सर ने बिरजू को कहा कि तुम विद्यालय के गेट के पास से लाठी टेकते हुए स्टेज के पास द्वारपाल खड़े हैं, वहां तक आओगे, तब बोलना है।
बिरजू विद्यालय से बाहर निकल गया। सूरज का मन काफी उदास था। मंचन भी शुरू हो गया। इतने में लाठी टेकते हुए, गंदा धोती पहने, बाल मुंडा, टीक रखे धीरे-धीरे विद्यालय के गेट से एक लड़का घुसता दिखा। सभी छात्र उधर देखने लगे। यह कौन ?
सूरज – अकरम (परंतु यह तो रो रहा है) वह दौड़कर उसके पास गया। रो क्यो रहे हो अकरम ?
अब्बा बाल मुंडवाने के लिए तैयार नहीं थे पर मैं अम्मी जान से बार-बार कहा कि मुझे सुदामा बनना है। तब अम्मी जान ने कहा जाओ तुम बाल मुंडवा लो, टीक रख लो एवं धोती पहन लेना। अब्बा जो कहेंगे मैं देख लूंगी। इसी कारण मुझे विद्यालय आने में देर हुई। तब तक विजय सर बिरजू का चयन कर लिए।
विजय सर – नहीं अकरम सुदामा तो तुम्हें ही बनना है। तुमने सूरज की मित्रता का मान जो रखा है। (उनकी आंखों में आंसू भर आए )
सभी छात्र – अकरम ही सुदामा बनेगा। अकरम और सूरज लिपटकर रोए जा रहे थे।
कुमारी निरुपमा