लैंडमार्क
अंश आज अपने गांव आठ वर्ष के बाद जा रहा था। उसके पापा को उनकी कम्पनी एक प्रोजेक्ट को पूरा करने न्यूयार्क भेज दिया था। वह भी छः वर्ष पापा के साथ ही रहा। इंडिया लौटने पर दो वर्ष बेंगलुरु से इधर नहीं आना हो सका। परंतु प्रत्येक साल गर्मी की छुट्टियों में गांव जाना, स्टेशन से उतरकर छोटी गाड़ी से गांव तक पहुंचने तक जैसे ही फतेहपुर चौक आता पेड़ा खरीदते ही अंश की खुशी बढ़ जाती। अम्मा मोड़, पीपल चबूतरा और उसके नीचे करीमन मियां का बडखानी रोटी। फिर आता पुल के नीचे संकरी नदी और तब अपना लालाचक वाला खेत आता था। वाह! कभी कभी बाबा खेत पर ही दिख जाते थे।
आज जैसे ही स्टेशन से उतरा, पापा ने टैक्सी बुक कर लिया। अंश अब पहले से बड़ा हो गया था परंतु उसकी उत्सुकता बनी हुई थी। वह ज्यों-ज्यों गाड़ी आगे बढ़ रही थी अपने लैंडमार्क के आने की प्रतिक्षा में था। फतेहपुर चौक पारकर गया, जब एक बड़े से वेयरहाउस के पास से टैक्सी गुजर गयी तब उसने पापा से पूछा करीमन चाचा की बकरखानी रोटी नहीं दिखा। पापा बोले वही तो वेयरहाउस बना है। उसने कहा तब तो पीपल का पेड़ भी कट गया। पापा की हामी के बाद दिल बैठ गया। अब उसे लालाचक वाले खेत का इंतजार था। जब टैक्सी एक बायोफ्यूल पेट्रोल पंप के पास से क्रास किया तब पापा ने बताया यह तुम्हारा नया लैंडमार्क है। अंश का मन रुआंसा हो गया ।
उसने बस इतना ही कहा कि आने वाले समय में लैंड ही नहीं रहेगा तब फिर मार्क कहाॅं ?
कुमारी निरुपमा
बेगूसराय बिहार