मैजिक का भ्रम -मीरा सिंह

Meera Singh

अंशु कक्षा पांच का छात्र था। पढ़ाई में वह बहुत तेज था। परंतु इधर कुछ दिनों से वह खेल में ज्यादा रुचि लेने लगा था।इस बदलाव से उसके माता-पिता बहुत चिंतित रहने लगे।उसे कई बार उसे समझाने का प्रयास कर चुके थे कि पढ़ाई के प्रति लापरवाही ठीक नहीं है। खेलने के साथ पढ़ाई करना भी बहुत जरूरी है। पर वह उनकी बातों पर थोड़ा भी ध्यान नहीं देता था ।दरअसल कम पढ़ने के बावजूद भी कक्षा में वह सदैव अव्वल स्थान पाता था। इस कारण उसके मन में विश्वास हो गया था कि वह कक्षा में सबसे तेज है और बगैर पढ़े भी अव्वल आ सकता है।
फर्स्ट टर्म की परीक्षाएं शुरू होने वाली थी। पर वह पढ़ाई में थोड़ा सा भी रुचि नहीं ले रहा था। मां उसे अक्सर समझाती ” बेटा पढ़ाई कर ले वरना बाद में पछताना पड़ेगा।” इस पर वह मां के गले में लिपटते हुए कहता” चिंता मत कर मां ।मुझे पूरा पाठ याद है। थोड़ी देर मोबाइल से खेल लेता हूं। फिर पढ़ लूंगा” इसके बाद मां घरेलू कार्यो में व्यस्त हो जाती और वह देर तक चोरी-छिपे मोबाइल पर गेम खेलते रहता।यह उसका रोज का रूटीन था।
फर्स्ट टर्म की परीक्षाएं शुरू हो गई थीं। गणित के पेपर वाले दिन जब वह स्कूल से घर से आया तो उसका चेहरा बुझा हुआ था ।उसकी मां पूछ बैठी “क्या बात है? तबीयत ठीक नहीं है क्या ? इस पर वह मुझे स्वर में बोला ” कुछ नही मां ।मैं ठीक हूं ।” उसकी मां उसे घूरते हुए बोल पड़ी ” जब सब ठीक ही है तो मुंह क्यों लटका हुआ है तेरा ” स्कूल जाते समय तो बहुत खुश था ।अब क्या हुआ? किसी से लड़ कर आया है क्या? या बस में किसी ने तुझे डांटा ?कुछ तो गड़बड़ है बाबू?” मां का ध्यान बांटने के उद्देश्य से वह सामान्य होने का स्वांग करते हुए बोला “छोड़ो ना मां। मुझे बहुत तेज भूख लगी है। जल्दी से खाना निकाल दो ।मैं ड्रेस बदल कर आता हूं ।” उसका यह व्यवहार बदला हुआ था ।दरअसल रोजाना स्कूल से आते ही सबसे पहले टीवी पर अपना पसंदीदा चैनल लगाता था ।जूते मोजे और स्कूल बैग अर्थात सब जहां तहां रख देता था जिसे बाद में उसकी मां जगह पर रखते हुए नसीहत देती कि बेटा सुधर जा वर्ना बाद में बहुत पछताएगा। पहले मुंह हाथ धोकर खाना खा ले फिर थोड़ी देर टीवी देख लेना।मगर उसके कानो पर जूं तक नही रेंगती थी।उसकी इस आदत से तंग आकर उसकी मां केबल कटवाने का भी फरमान जारी कर दी । इस पर वह मां को चिरौरी करते हुए बोला” प्लीज मां गुस्सा मत हो। मेरे पास टीवी देखने का समय ही कहां रहता है?कुछ देर में ट्यूशन पढने चला जाऊंगा फिर शाम को होमवर्क वगैरह ।” पर आज कायदे से अपने सब समान रखकर टेबल पर खाने बैठा। बगल में बैठी मां की आंखें अपने बेटे का अध्ययन कर रही थी ।आखिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक इतना बदल गया।तभी वह पूछ बैठा ” मां तुम क्यों नहीं खा रही हो?” मैं खा लूंगी पर तू यह बता कि तेरा एग्जाम कैसा गया ? इस प्रश्न पर वह कुछ परेशान सा हो गया।फिर कुछ सोचते हुए बोला “बस ठीक ही गया।प्रश्न बहुत कठिन था।कहते हुए उसकी आंखें डबडबाई हुई थी।क्या प्रश्न सिलेबस के बाहर का था?मां ने प्रश्न किया तो वह सच बता दिया कि पढ़ाई करके नहीं गया था ।बेटे के मुंह से सच सुनकर मां का हृदय पसीज गया। वह प्यार से समझाते हुए बोली ” देख बेटा, अब उदास होने का कोई फायदा नहीं है। एक बात ध्यान में रख — अगर तू मन लगाकर पढ़ा होता तो आज इतना दुखी नहीं होता। इंसान से गलतियां हो जाती है।पर जो इंसान गलतियों से सबक लेता है न वह कभी नहीं हारता। अब तू भी शपथ ले कि मन से पढ़ाई करेगा।अब कोई लापरवाही नहीं करेगा ।इस पर वह बोल पड़ा “मां ये सब तो ठीक है ।पर मैं रोज की तरह आज भी पूजा करके गया था ।भगवान जी के पास अपना लकी पेन भी रखा था । फिर भी मेरा एक्जाम क्यों खराब गया ?” उसके इस मासूम सवाल पर मां मुस्काते हुए समझाई “बेटा पूजा करना अच्छी बात है ।पर सिर्फ पूजा से भगवान खुश नहीं होते हैं ।वहां कलम रख देने से भगवान तुम्हें पास होने का आशीर्वाद नहीं देंगे । इसके लिए तुम्हें मन से पढ़ाई करना होगा।मन से पढोगे, परिश्रम करोगे तभी भगवान का आशीर्वाद मिलेगा ।यह बताओ बिना आम का पेड़ लगाए, आम का फल मिल सकता है क्या? बगैर आटा गूंधे मैं तुम्हें रोटी पका कर खिला सकती हूं क्या ?टी वी सीरियल वाला मैजिक असल जिंदगी में नहीं होता है।असल जीवन में परिश्रम के बदौलत मैजिक होता है।बगैर श्रम के तुम क्या कोई भी व्यक्ति कुछ हासिल नहीं कर सकता है। समझ रहे हो ना ?जीवन में सफल होने के लिए सच्चे मन से प्रयास करना पड़ता है। मां की बातें सुनकर अंशु की आंखें खुल गई । उसने अपनी मां से वादा किया कि अब वह शिकायत का कोई मौका नहीं देगा। उसके आंखों से मैजिक का भ्रम टूट चुका था ।

मौलिक/स्वरचित बाल कहानी

मीरा सिंह “मीरा”
प्लस टू महारानी उषारानी बालिका उच्च विद्यालय डुमरांव जिला -बक्सर, बिहार 802119

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