मैं और मेरा सुकून भरा कार्य
वैसे देखा जाए तो सबों के ज़ीवन में ऐसा कोई खास पल या कार्य अवश्य ही होता है जिसमें हमारी आत्मा सुकून का अनुभव कर सकें। अपने ज़ीवन रुपी बगीचा में सुकून रुपी पुष्प हम सभी चाहते हैं और भला क्यूँ न चाहे? सुकून आत्मिक शांति प्रदान करता है, हमारे कार्य को गति प्रदान करता है, हमारे मन-मस्तिष्क को सकारात्मकता की ओर अग्रसर करता है। जीवन में धन-दौलत, ऐश्वर्य, भौतिक सुख-सुविधाएँ इत्यादि सबकुछ होते हुए अगर मन में सुकून न हो तो सब व्यर्थ है। इसलिए हमें ईश्वर से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि चाहे परिस्थितियाँ जो भी हो, हमारा मन-मस्तिष्क सुकून रुपी अमृत से लबरेज रहे।
मैं पेशे से शिक्षिका हूँ। मैं प्राइमरी स्कूल पूर्णियाँ, बिहार में कार्यरत हूँ। मुझे इस बात से काफी गर्व महसूस होता है कि मैं नित्य छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाती हूँ। शिक्षक होना अपने-आप में उत्कृष्ट और संपूर्ण है। मुझे अपनी जिंदगी में अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए बेहद सुकून की अनुभूति होती है। सबसे ज्यादा खुशी तो मुझे तब होती है जब मेरे विद्यालय प्रवेश करते ही बच्चे मेरा अभिनंदन करते हुए अपनत्व का बोध करवाते हैं। सच पूछिए, मेरा मन उस वक्त सुकून से भर उठता है। मेरी आँखें हर उपस्थित बच्चों को निहारते हुए उन्हें सह्रदय आशीष प्रदान करती है। ऐसा लगता है मानों विद्यालय ही मेरा घर हो। मुझे अपने सभी बच्चों से बेहद स्नेह है और बच्चे भी मुझे सदैव चाहते हैं।
बच्चों को पढ़ाते हुए मुझे जो सुखद अनुभूति की प्राप्ति होती है वो कहीं और संभव नहीं। शिक्षा देना ईश्वरीय भक्ति सा प्रतीत होता है। बच्चों से प्रश्न पूछकर उनकी जिज्ञासा बढ़ाना, उन्हें अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करना, अधिगम के विभिन्न आयामों की चर्चा करना, उन्हें नित्य नयी-नयी ज्ञानवर्धक कहानियाँ सुना कर प्रेरित करना, उनके लक्ष्य को दिशा प्रदान करना, विषय का पूर्ण ज्ञान देना, अनुशासन का पाठ पढ़ाना इत्यादि जैसी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए बच्चों को प्रेरित कर सुदृढ़ बनाना चाहती हूँ ताकि वो देश की नींव बन सकें क्योंकि किसी भी देश की सबसे मूल्यवान पूँजी होती है, उस देश की युवा शक्ति। इतना ही नहीं मैं उन्हें नैतिकता, कर्तव्यपरायणता एंव सजगता का पाठ भी पढ़ाती हूँ। इसी संदर्भ में मुझे कुछ पंक्तियाँ स्मरण हो रही है….
अपने दायित्व को सर्वथा निभा सकूँ,
निरंतर यह अथक प्रयास करती हूँ।
अपनी लोभ-लिप्सा को त्याग कर,
बच्चों का यूँ ही शिलान्यास करती हूँ।
वों ख़ुद की रक्षा कर पाएँगे ख़ुद से,
ऐसा मन में दृढ़ विश्वास रखती हूँ।
गर सुकून तलाशूँ तो दे दूँ मैं अमृत-सा ज्ञान,
अपनी झोली में शिक्षा का सैलाब रखती हूँ।
मेरे गुरु ने मुझे हमेशा यही सिखाया कि सुकून अपने कार्यों में ही ढूँढनी चाहिए न कि कल्पनाओं में क्योंकि कल्पना कभी ताउम्र सुकून नहीं दे सकते। बस चंद लम्हों तक ही वो हमें खुशी व सुकून दें सकते हैं। अतः मैंने यह स्पष्ट कर दिया है कि मेरा सुकून भरा कार्य मेरे शिक्षण कार्य में ही समाहित है।
नूतन कुमारी (शिक्षिका)
पूर्णियाँ बिहार
वाह!अपनी झोली में शिक्षा का शैलाब रखती हूँ….बहुत बढ़िया!उत्तम लेखनी मैम! 👌👌👌
बहुत सुंदर लिखा है आपने ।