लोकनायक जयप्रकाश नारायण-हर्ष नारायण दास

Harshnarayan

लोकनायक जयप्रकाश नारायण

          लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म बिहार प्रान्त में सारण जिले के सिताबदियारा नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री हरसू दयाल तथा माता का नाम श्रीमती फूलरानी देवी था। इनकी माता एक धर्मपरायण महिला थी। तीन भाई और तीन बहनों में जयप्रकाश अपने माता- पिता की चौथी सन्तान थे। इनसे एक बड़े भाई और एक बहन की मृत्यु हो जाने के कारण इनके माता-पिता इनसे अपार स्नेह रखते थे।अपने गाँव सिताबदियारा में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात जयप्रकाश जी आगे की पढ़ाई के लिए पटना चले गए।

          बिहार के प्रसिद्ध जनसेवी ब्रजकिशोर बाबू की सुपुत्री प्रभावती से जयप्रकाश जी का विवाह 16 मई 1920 को हुआ। सन1921 ईसवी में गाँधी जी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए वे सरकारी कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर राजेन्द्र प्रसाद के नेतृत्व में चल रहे बिहार विद्यापीठ में चले गए। वहीं से उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की।1922 ईस्वी में वे एक छात्रवृति पर अध्ययन के लिये अमेरिका चले गए और वहाँ के ओहियो विश्वविद्यालय से स्नातक एवं स्नातकोत्तर की डिग्रियाँ प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने पी० एच० डी० में प्रवेश लिया पर माँ की बीमारी के कारण 1929 ई० में वापस स्वदेश लौट आने के कारण वे इसे पूरा नहीं कर सके। अमेरिका से लौटने के पश्चात कुछ समय तक वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र के प्रवक्ता रहे।

          देश की आजादी के प्रति उनकी ललक और इसे शीघ्र प्राप्त करने के लिए उनके अदम्य साहस भरे कारनामों के बिना उनकी जीवनगाथा अधूरी ही रह जायेगी। 1942ई०में जब पूरा देश गाँधी जी के “करो या मरो” के नारे के उदघोष के साथ अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब दे रहा था, उस समय ये हजारीबाग जेल से फरार होने के उपाय ढूंढ रहे थे। 9 नवम्बर 1942 को दीपावली की रात्रि का वह समय भी आया जब उन्होंने साबित कर दिया कि दुनिया में कोई ऐसी जेल बनी ही नहीं थी जो अधिक दिनों तक जयप्रकाश को कैद कर रख सकती थी। उस रात जब सभी बंदी दीपावली का त्यौहार मनाने में व्यस्त थे, अपने छह मित्रों के साथ जयप्रकाश धोतियों से बनाई रस्सी की मदद से जेल की दीवार को लाँघकर फरार होने में कामयाब रहे। 1947के बाद वे राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे तथा 1954 तक समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे। उसके बाद1947 में वे सर्वोदय आन्दोलन से जुड़ गए। भूदान, सम्पत्ति दान, जीवनदान के लिये पूर्ण समर्पण से कार्य किया 1970 से तत्कालीन सरकार की नीतियों का विरोध करना प्रारम्भ किया। 1974 में बिहार तथा गुजरात के छात्रों के आन्दोलन का नेतृत्व स्वीकार कर लिया। पटना में एक सभा को सम्बोधित करते हुए “समग्र क्रान्ति” की घोषणा की। 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल लागू किया गया, जिसका जे० पी० ने घोर विरोध किया। उन्हें जेल में डाल दिया गया। 1977 में जनता पार्टी बनाने के अथक प्रयास किये तथा चुनावों में जनता पार्टी को विजयश्री दिलाई।
जय प्रकाश नारायण लोकतंत्र विरोधी नहीं थे लेकिन लोकतंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के आलोचक थे। वह लोकतंत्र की सफलता के लिए यह मानते हैं कि लोगों को परस्पर इतना समीप लाएई कि वह विभिन्नता होते हुए भी स्वशासित, विवेक पूर्ण एवं नियंत्रनीय सम्बन्ध रखते हुए साथ-साथ रह सकें।

          जयप्रकाश नारायण लोकतन्त्र को भ्रष्ट करने में राजनीतिक दलों को सर्वाधिक दोषी मानते हैं। चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल अत्यधिक पैसा खर्च करते हैं, लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सभी प्रकार के तरीके अपनाते हैं। वैमनस्य फैलाते हैं तथा सत्ता में बने रहने के लिए हिंसक तरीके तक का प्रयोग करते हैं। राजनीतिक दलों की इस प्रकार की भूमिका के कारण लोकतंत्र, दल तंत्र(party cracy) में परिवर्तित हो जाता है।उनके अनुसार लोकतन्त्र में राजनीतिक दल नहीं होने चाहिए। दलविहीन लोकतंत्र ही सच्चा लोकतंत्र है। इसप्रकार के लोकतन्त्र में मनुष्य नैतिकता के गुणों को विकसित करके नैतिक लोकतंत्र की स्थापना कर सकता है। जे० पी० ने जीवन के अन्तिम दशक में यह अनुभव किया कि भारत की समस्या अब विकराल रूप धारण कर चुकी है जिसका समाधान पृथक- पृथक सुधारों से सम्भव नहीं है। पटना में 5 जून 1974 को एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह विचार रखे तथा “समग्र क्रान्ति” का उदघोष किया। इसमें 7 क्रांतियाँ सम्मिलित थी। सामाजिक क्रान्ति, आर्थिक क्रान्ति, राजनीतिक क्रान्ति, सांस्कृतिक क्रान्ति, शैक्षणिक क्रान्ति, आध्यात्मिक क्रान्ति, वैचारिक क्रान्ति। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर उन्होंने “फ्रॉम सोशलिज्म टू सर्वोदय”,टू वर्ड्स स्ट्रगल, ए पिक्चर ऑफ सर्वोदय सोशल ऑर्डर, सर्वोदय एण्ड वर्ल्ड पीस” नामक कई पुस्तकें भी लिखीं।
गुर्दे खराब होने के कारण 8 अक्टूबर1979 में दिवंगत हो गए।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जयन्ती पर उन्हें कोटिशः नमन।

हर्ष नारायण दास
प्रधानाध्यापक
मध्य विद्यालय घीवहा (फारबिसगंज)

नोट–ऊपर के सभी आँकड़े लेखक के अपने हैं इसकी सत्यता या असत्यता के लिए टीचर्स ऑफ बिहार जिम्मेदार नहीं है।

टीम टीओबी

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