मकर संक्रांति वैज्ञानिक तथा धार्मिक आयाम
मकर संक्रांति को देश के लगभग सभी राज्यों में किसी ना किसी रूप में मनाया जाता है। सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो ज्योतिष शास्त्र में इसको संक्रांति कहते हैं। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। एक संक्रांति से दूसरे संक्रांति के बीच का समय ‘सौरमास’ कहलाता है। पौष मास में सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस अवसर को देश के अलग-अलग हिस्सों में त्यौहार के रूप में मनाते हैं। मकर संक्रांति का त्यौहार उत्तर भारत में हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दिन से सूर्य के उत्तरायण हो जाने से प्रकृति में बदलाव शुरू हो जाता है जिससे हमारे दैनिक जीवन में खासा असर पड़ता है। ठंढ की वजह से सिकुड़ते लोगों को सूर्य के उत्तरायण होने से ठंढ से राहत मिलती है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां सभी त्योहारों का जुड़ाव कृषि से होता है। मकर संक्रांति के समय किसान रबि की फसल लगाकर खरीफ की फसल जैसे– धान, मक्का, उड़द, मूंगफली आदि घर ले आते हैं। किसान का घर अन्न से भर जाता है इसलिए संक्रांति पर किसान झूम उठते हैं। देशभर में लोग अलग-अलग रूपों में तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ खाते हैं। इन सभी में सबसे अधिक ‘तिल’ का महत्व दिया गया है। तिल के महत्व के कारण इसे ‘तिल संक्रांति’ के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर भारत के कई हिस्सों में इसे ‘खिचड़ी’ के नाम से भी जाना जाता है। तमिलनाडु में इसे ‘पोंगल’ नाम से मनाते हैं। कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति कहते हैं। देश के कई हिस्सों में इसे उत्तरायनी के नाम से भी जाना जाता है। तिल संक्रांति के दिन जलाशयों में वाष्पन की क्रिया शुरू होती है जिसमें स्नान करने से स्पूर्ति और ऊर्जा का संचार होता है। इस कारण इस दिन पवित्र नदी और जलाशयों में स्नान का विशेष महत्व है।
धार्मिक मान्यताओं में पुराणों में कहा गया है कि शनि महाराज का अपने पिता सूर्यदेव से बैर भाव था क्योंकि सूर्यदेव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेदभाव करते देख लिया था। इस बात से नाराज होकर सूर्यदेव ने छाया और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया था। पिता सूर्यदेव को कुष्ठ रोगों से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की लेकिन सूर्यदेव ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर ‘कुंभ’ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया। इससे शनि और उनके माता को कष्ट भोगना पड़ा। यमराज ने अपनी सौतेली माता छाया और भाई शनि को कष्ट में देखकर अपने पिता सूर्यदेव को समझाया, तब जाकर सूर्यदेव ने कहा कि जब भी वह शनि के दूसरे घर ‘मकर’ में आएंगे तब शनि के घर को धन-धान्य से भर देंगे। प्रसन्न होकर शनि महाराज ने कहा कि मकर संक्रांति को जो भी सूर्यदेव की पूजा करेगा उसे शनि की दशा में कष्ट नहीं भोगना पड़ेगा।
महाभारत में एक कथा आती है कि ‘भीष्म पितामह’ ने अपनी देह त्याग के लिए ‘मकर संक्रांति’ का ही चयन किया था। गीता में ‘भगवान कृष्ण’ ने बताया है कि जो व्यक्ति उत्तरायण में शुक्ल पक्ष में देह का त्याग करता है उसे मुक्ति मिल जाती है। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। इसलिए इस पुण्यदायी दिवस को हर्षोल्लास से लोग मनाते हैं। इस दिन से धरती पर अच्छे दिनों की शुरुआत मानी जाती है। इसकी वजह यह है कि सूर्य इस दिन से दक्षिण से उत्तरी गोलार्ध में गमन करते हैं। इससे देवताओं के दिन का आरंभ होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग का दरवाजा खुल जाता है इसलिए इस दिन किया गया दान-पुण्य अन्य दिनों के किए गए दान-पुण्य से ज्यादा फलदाई होता है।
✍️ शुकदेव पाठक
म. वि. कर्मा बसंतपुर
कुटुंबा, औरंगाबाद
Lovely story