माँ का आँचल-विमल कुमार “विनोद” 

माँ का आँचल

          जैसा कि सभी लोग जानते हैं कि एक माँ उत्तर बाल्यावस्था, किशोरावस्था से लेकर पूरी जिन्दगी बच्चे का पालन-पोषण करने में अपना पूरा जीवन न्योछावर कर देती है। साथ ही बच्चे की सेवा तथा विकास कराने में अपना समय लगा देती है। माँ दुनियाँ की एक बहुत खुबसूरत नाम या कृति है जिसकी तुलना इस पृथ्वी के किसी भी मूर्त या अमूर्त चीज से नहीं की जा सकती है। जीवन में माँ तो बस माँ होती है, तेरी-मेरी कहाँ कौन होती है, विश्व में दूसरी कोई भी चीज नहीं होती है। माँ हर पल बच्चे की प्रत्येक गतिविधि पर पैनी नजर रखती है। माँ अपने बच्चे को पल भर के लिए भी अपने से दूर देखना पसंद नहीं करती है। एक माँ अपने बच्चे के साथ भावनात्मक प्रेम को देखकर कहती है कि, “तूझे न देखूँ तो चैन मुझे आता नहीं है, एक तेरे सिवा दिल में कोई भाता नहीं है।” बच्चा जब छोटा रहता है तो माँ उसको हर हाल में सुन्दर, सुशील, कर्मठ तथा एक पूर्ण नागरिक बनाकर विश्व का एक परिपक्व नागरिक बनाना चाहती है।

पृथ्वी पर मृत्यु के लिए बहुत से रास्ते हैं लेकिन जन्म के लिए बस एक माँ ही है। माँ जीवन की एक अनमोल कृति है जिसके बिना बच्चे का जीवन एक पतवार विहीन नाव के बराबर है तथा माँ के बिना बच्चे का जीवन ढह जायेगा। बच्चा जन्म के बाद से अपनी “माँ के आँचल” के तले पलता रहता है तथा पूरी जिन्दगी में माँ से अधिक कोई भी बच्चे की सेवा नहीं कर सकता है लेकिन बाद में जब बेटे की शादी हो जाती है, वैसी स्थिति में माँ को बहुत समय दो जून की रोटी भी मयस्सर नहीं हो पाती है। इसी पर किसी चिंतक ने कहा है कि, “कल भी माँ रोती थी जब बेटा नहीं खाता था और आज भी माँ रोती है, जब बेटा नहीं खिलाता है। वर्तमान परिवेश में भी माँ को बेटे के बड़ा हो जाने के बाद भी बेटे की हर घड़ी याद आती रहती है। यदि बेटा घर से बाहर रहकर शिक्षा प्राप्त करता है तो माँ कभी भी संतुष्टि के साथ बेटे की याद में चैन से नहीं खाती है। हर वक्त लगता है कि मेरा बेटा मेरे पास ही रहता तो कितना अच्छा होता। एक बेटा जिसकी याद में माँ अपनी सारी खुशी को कुर्बान कर देती है वैसी स्थिति में बच्चा कहता है कि “माँ मूझे आँचल में छुपा लो, गले से लगा लो क्योंकि मेरी दुनियाँ में कोई नहीं”।

आज के समय में जब लोग शादी करने के बाद पत्नी के साथ जीवन व्यतीत करने लगते हैं तो कुछ लोग अपने बूढ़े माता-पिता को पास रखना नहीं चाहते हैं।इसीलिए उस बेटे के साथ जीवन व्यतीत करना मुश्किल हो जाता है।

अंत में हम कह सकते हैं कि यदि माँ का साया तथा पिता का साथ रहेगा तो आपको कोई भी कष्ट नहीं दे सकता है। इसलिए जीवन में अपने माता-पिता की सेवा करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। माता-पिता का सम्मान कीजिये नहीं तो जीवन की हर सुख-सुविधा रहने के बावजूद आपका भला नहीं होने वाला है क्योंकि माता-पिता तथा परिवार वालों ने कितना कष्ट सहकर आपकी सेवा की है तथा आपको जीवन के उच्च स्थान प्राप्त कराने के लिए जिन्दगी के हर काम को करने का प्रयास किया है। किसी विद्वान ने लिखा है कि, “काँपते हुए हाथों को झटकिये मत, कसकर थाम लीजिये क्योंकि कुछ रोगों का इलाज दवाओं से नहीं बल्कि माँ की दुआओं से होता है।

मेरा भी मानना है कि “संघर्ष पिता से सीखें, संस्कार माता से, बाकी सब कुछ दुनियाँ सिखा देगी”। माँ के पहनावे तथा बाप की गरीबी पर कभी शर्म नहीं करनी चाहिये क्योंकि “माँ की ममता और पिता की क्षमता का भी अंदाजा लगाना मुश्किल है।

श्री विमल कुमार “विनोद” 

राज्य संपोषित उच्च विद्यालय

पंजवारा बांका

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