जब मीरा की चुप्पी टूटी
उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलह विगहा,चण्डी,नालन्दा में पहली कक्षा में एक बच्ची का नामांकन हुआ। उसका
नाम मीरा था। वह हमेशा चुप-चुप रहती थी। उसके मुंह से आवाज़ निकलते मैंने कभी नहीं सुनी लेकिन जब मैंने बच्चों से पूछा कि यह लड़की इतना चुप-चुप क्यों रहती है। कई बच्चों ने बतलाया, “यह लड़की घर में तो बोलती है
लेकिन विद्यालय में कुछ नहीं बोल पाती।” शायद वह डरती है। वर्ग शिक्षक से पता करने पर पता चला कि वह वर्ग
कक्ष में पीछे कोने में चपुचाप बैठी रहती है। किसी भी बात का वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देती। मैंने मीरा के मन-मस्तिष्क को पढ़ना चाहा। आखिर राज़ क्या है उसकी ख़ामोशी का? पता चला कि उसकी माँ महीना दिन पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गई है। उसका एक भाई है जो नवम कक्षा में पड़ता है और पिता किसी राज मिस्त्री के साथ मज़दूरी करते हैं। मीरा विद्यालय चली आती है। भाई दूसरी जगह, उच्च विद्यालय चण्डी पढ़ने चला जाता है और पिता भी मज़दूरी करने चले जाते हैं। 4:00 बजे छुट्टी के बाद मीरा विद्यालय से जब घर जाती तो उसे ढारस देने वाला कोई नहीं मिलता, न ही भाई और न ही पीता। भाई 2 घंटे बाद आता तो पिता जी
संध्या के बाद ही मिल पाते। मेरे मन में ये बात चलती रहती कि आखिर इस बच्ची की चुप्पी कब टूटेगी। मैंने स्वयं
पहली कक्षा में अपनी एक घंटी समय सारिणी में जोड़वाई, ताकि मैं मीरा से रोज मिल सकूं और उससे बातें कर सकूं। मैं उसके लिए कभी-कभी फल,चॉकलेट या बिस्किट लेते आता। एक छोटा-सा बाल लुभावन बैग और एक रंगीन बोतल उसे लाकर मैंने दिया। एक स्लेट और रंग-बिरंगे चाॅक लाकर भी मैंने उसे दिया।
थोड़ा-थोड़ा वह मुझसे हिलने-मिलने लगी और मेरे प्रश्नों पर मौन व्रत ‘हूं – हां ‘ से तोड़ने लगी। कुछ शारीरिक
प्रतिक्रिया से भी मेरे प्रश्नों का उत्तर देने लगी। मैं उसे रोजाना प्यार से पास बुलाता। मुझे भी उससे मिले बिना नहीं
रहा जाता। उस बच्ची से मेरा भी अटूट भावनात्मक लगाव हो गया। उससे प्यार से बातें करता तो वह कुछ-कुछ
खुलने लगी और कुछ दिनों बाद मुझ से कुछ-कुछ बोलने लगी। वह औरों से अभी तक बातचीत नहीं करती। मैं सभी
बच्चों से बातें करता। सबसे कुछ न कुछ बोलवाता लेकिन फिर भी मीरा दूसरे बच्चों से बातचीत नहीं करती। मैं
संपूर्ण शारीरिक प्रतिक्रिया (Total Physical Response) वाली गति विधियां वर्ग-कक्ष में करवाता। उदाहरण के तौर
पर ‘सीट डाउन’, स्टैंड अप– सीट डाउन, स्टैंड अप। क्लपै योर हैंड–। स्नपै योर फिंगर—। सभी बच्चे बोलते और
एक्शन करते। इस तरह से मीरा भी एक्शन करती। उसे भी मज़ा आने लगा और इस तरह वह बच्चों के साथ भी
कुछ-कुछ बोलने में कंफर्टेबल होने लगी। मैं बच्चों से समूह गान (Chorus) करवाता। वह भी उसमें हिस्सा लेती। उसका
चेहरा जो पहले मुरझाए हुए रहता था, अब चमकने लगा। अब मेरी मेहनत रंग लाने लगी। जब मैं हाव-भाव से कोई कविता पाठ करवाता तो वह भी उमगं-तरंग के साथ करती। अब वह अपने विद्यालय की गति विधियों में भी भाग लेते हुए दिखाई देने लगी। मैदान में अपने सहपाठियों के साथ खेलती, प्रार्थना में अगली पंक्ति में खड़ी होती और प्रार्थना को दोहराने की कोशिश करती। इस तरह वह अब गुंगी गड़िुड़िया नहीं रही बल्कि अब तो चुप में भी उसका मासमू-सा चेहरा कुछ कहता हुआ प्रतीत होता। शायद वह मां के जाने का ग़म अब तक भूल नहीं पा रही है। शायद उसे घर पर माँ याद आती होगी लेकिन विद्यालय में वह दुःख से दूर हो जाती है। अब मेरे सवालों का कुछ-कुछ जवाब मिलने लगा है। मैं उसके प्रिय चीजों के बारे में बातें करता रहता। उसके भाई और पिताजी के बारे में बातें करता ताकि वह कुछ बोलती रहे। मैं निरंतर प्रयास, स्नेह और गतिविधियों के बल पर उसे मुख्यधारा से जोड़ने में सफल हुआ। उसका मौन व्रत को तोड़ने में समय, मेहनत और धैर्य लगा। जो कविता वह वर्ग-कक्ष में सुनी थी, वह उसे आत्मसात भी हो गयी। मुझे जब यह समझ में आया
तो उससे कभी-कभी कविता सुना करता और उसकी ख़ूब प्रशंसा करता। वह बहुत ख़ुश होती। मेरे स्नेह को पाकर
उसे मुझ से काफी लगाव हो गया। फिर वह पढ़ने पर ध्यान देने लगी। वह मूक बच्ची अब वाचाल बन चकी है। उसके चेहरे पर चमक और आंखों में आशा की किरणें नज़र आने लगी। मेरा अफसोस अब संतोष में बदल चुका है। एक
शिक्षक के लिए क्या चाहिए, बच्चे ख़ुश तो शिक्षक ख़ुश।
मो.जाहिद हुसैन
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलह बिगहा
चंडी, नालंदा
मीरा की चुप्पी
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